चले गये सुशील कालरा
सुशील कालरा जन्म 13 जून, 1940 में गुजरांवाला (अब पाकिस्तान) में हुआ था। बहुत भटकाव के बाद उन्होंने अपनी अभिरुचि को समझते हुए नयी दिल्ली में कॉलेज ऑफ़ आर्ट्स में प्रवेश ले लिया। एक एड मेन के रूप में उत्पादों के विज्ञापन अभियानों ने उन्हें लोकप्रिय बनाया। उन्होंने व्यंग्यचित्र बनाने की शुरूआत की। बाद में वे पूरी तरह से १९६८ में व्यंग्यचित्रण के क्षेत्र में उतर गये। हिंदुस्तान टाइम्स प्रकाशन के दैनिक हिन्दुस्तान, ईवनिंग न्यूज़, साप्ताहिक हिन्दुस्तान, नन्दन, कादम्बिनी आदि के लिए सुशील कालरा ने कार्टून और रेखांकन बनाए। उन्होंने व्यापक रूप से विदेश की यात्राएं की, यहां तक कि उत्तरी ध्रुव की भी। उनके किया काम कई पश्चिमी और यूरोपीय देशों में प्रदर्शित और प्रकाशित हुआ। उन्होंने राजनीतिक कॉलम भी लिखे। बच्चों की पत्रिका नन्दन में नियमित छप्ने वाली उनकी बनायी चित्रकथा चीटू-नीटू काफ़ी लोकप्रिय थी। उन्होंने यह कार्टून स्ट्रिप 44 साल बनायी। उन्होंने एक उपन्यास लिखा था निक्का निमना, जिसका बाद में पंजाबी और अंग्रेजी में अनुवाद भी हुआ।
वे छोटे पर्दे के एक जानेमाने व्यक्तित्व थे। उनका साक्षात्कार बीबीसी पर प्रसारित हुआ था और भारत के जानेमाने १० कार्टूनिस्टों की एक टीवी श्रंखला में भी उन्हें शामिल किया गया था। उन्होंने ३८ श्रंखलाओं में प्रसारित हुई रविवारीय क्विज़ को प्रस्तुत किया। हिन्दुस्तान टाइम्स से रिटायर होने पर उन्होंने अपने बेटों के साथ काफी समय अमेरिका में बिताया। वहां वे इच्छुक कलाकारों की मदद के लिए अंतर्राष्ट्रीय कलाकार समर्थक समूह (IASG), एक (आइएमजी) वॉशिंगटन डीसी, संगठन में शामिल हो गये। उन्होंने अकेले दम पर ललित कला अकादमी नयी दिल्ली में इस समूह के लिए ६ अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शनियों का भी आयोजन किया।
सन् २०११ में स्वास्थ्य जांच में उन्हें चौथे चरण का कैन्सर बताया गया। जब उनकी कैंसर चिकित्सक पुत्रवधु ने यह समाचार दिया तो उन्होंने अपने परिजनों से इस बात का खुलासा किसी से न करने को कहा। केमोथेरेपी इलाज के द्दौरान उनकी स्थिते में काफ़ी तेजी से सुधार आया। इसी बीच उन्होंने निक्का-निमना के अनुवाद कार्य की गति तेज कर दी। वे वहां से भी नियमित रूप से हर महीने नन्दन के लिए चीटू-नीटू बनाकर भारत भेजते रहे। निका-निमना का अनुवाद खत्म करने पर उन्होंने अपने जीवन के एक महत्वपूर्ण भाग यानी भारत-पाक बंटवारे के दौर, जब वे मात्र ७ साल के बालक थे, के तमाम अनुभवों को लिखने का निर्णय लिया। ये पुस्तकें एक मत, कयामत अब प्रकाशनाधीन हैं।
कस्तूरबा गांधी रोड स्थित हिन्दुस्तान टाइम्स कार्यालय में उनसे अक्सर मेरी भैंट हो जाती थी। अक्सर बीते दिनों को लेकर चर्चा शुरू हो जाती थी। गुजांवाला उनके मन-मस्तिष्क में बसा हुआ था। एक दिन उन्होंने बताया कि करोलबाग में उनके यहां साड़ियों की रंगाई का कार्य होता था। वे प्राय: विभाजन के काल को याद कर काफ़ी भावुक हो जाते थे। कार्टूनिस्ट्स क्लब ऑफ़ इण्डिया की स्थापना के मामले में जब मेरी उनसे चर्चा हुई तो उन्होंने पर्याप्त रुचि ली। वे चाहते थे राष्ट्रीय स्तर पर कार्टूनिस्टों की कोई अच्छी संस्था हो।
सुशील कालरा का देश से दूर मैरीलेण्ड, अमरीका में ८ सितम्बर २०१३ को निधन हो गया। वे अपने पीछे परिवार में पत्नी, २ बेटे, बहुएं और पोते-पोतियां छोड़ गये हैं।
कार्टून न्यूज़ हिन्दी की श्रद्धांजलि!
• टी.सी. चन्दर
सुशील कालरा जन्म 13 जून, 1940 में गुजरांवाला (अब पाकिस्तान) में हुआ था। बहुत भटकाव के बाद उन्होंने अपनी अभिरुचि को समझते हुए नयी दिल्ली में कॉलेज ऑफ़ आर्ट्स में प्रवेश ले लिया। एक एड मेन के रूप में उत्पादों के विज्ञापन अभियानों ने उन्हें लोकप्रिय बनाया। उन्होंने व्यंग्यचित्र बनाने की शुरूआत की। बाद में वे पूरी तरह से १९६८ में व्यंग्यचित्रण के क्षेत्र में उतर गये। हिंदुस्तान टाइम्स प्रकाशन के दैनिक हिन्दुस्तान, ईवनिंग न्यूज़, साप्ताहिक हिन्दुस्तान, नन्दन, कादम्बिनी आदि के लिए सुशील कालरा ने कार्टून और रेखांकन बनाए। उन्होंने व्यापक रूप से विदेश की यात्राएं की, यहां तक कि उत्तरी ध्रुव की भी। उनके किया काम कई पश्चिमी और यूरोपीय देशों में प्रदर्शित और प्रकाशित हुआ। उन्होंने राजनीतिक कॉलम भी लिखे। बच्चों की पत्रिका नन्दन में नियमित छप्ने वाली उनकी बनायी चित्रकथा चीटू-नीटू काफ़ी लोकप्रिय थी। उन्होंने यह कार्टून स्ट्रिप 44 साल बनायी। उन्होंने एक उपन्यास लिखा था निक्का निमना, जिसका बाद में पंजाबी और अंग्रेजी में अनुवाद भी हुआ।
वे छोटे पर्दे के एक जानेमाने व्यक्तित्व थे। उनका साक्षात्कार बीबीसी पर प्रसारित हुआ था और भारत के जानेमाने १० कार्टूनिस्टों की एक टीवी श्रंखला में भी उन्हें शामिल किया गया था। उन्होंने ३८ श्रंखलाओं में प्रसारित हुई रविवारीय क्विज़ को प्रस्तुत किया। हिन्दुस्तान टाइम्स से रिटायर होने पर उन्होंने अपने बेटों के साथ काफी समय अमेरिका में बिताया। वहां वे इच्छुक कलाकारों की मदद के लिए अंतर्राष्ट्रीय कलाकार समर्थक समूह (IASG), एक (आइएमजी) वॉशिंगटन डीसी, संगठन में शामिल हो गये। उन्होंने अकेले दम पर ललित कला अकादमी नयी दिल्ली में इस समूह के लिए ६ अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शनियों का भी आयोजन किया।
सन् २०११ में स्वास्थ्य जांच में उन्हें चौथे चरण का कैन्सर बताया गया। जब उनकी कैंसर चिकित्सक पुत्रवधु ने यह समाचार दिया तो उन्होंने अपने परिजनों से इस बात का खुलासा किसी से न करने को कहा। केमोथेरेपी इलाज के द्दौरान उनकी स्थिते में काफ़ी तेजी से सुधार आया। इसी बीच उन्होंने निक्का-निमना के अनुवाद कार्य की गति तेज कर दी। वे वहां से भी नियमित रूप से हर महीने नन्दन के लिए चीटू-नीटू बनाकर भारत भेजते रहे। निका-निमना का अनुवाद खत्म करने पर उन्होंने अपने जीवन के एक महत्वपूर्ण भाग यानी भारत-पाक बंटवारे के दौर, जब वे मात्र ७ साल के बालक थे, के तमाम अनुभवों को लिखने का निर्णय लिया। ये पुस्तकें एक मत, कयामत अब प्रकाशनाधीन हैं।
कस्तूरबा गांधी रोड स्थित हिन्दुस्तान टाइम्स कार्यालय में उनसे अक्सर मेरी भैंट हो जाती थी। अक्सर बीते दिनों को लेकर चर्चा शुरू हो जाती थी। गुजांवाला उनके मन-मस्तिष्क में बसा हुआ था। एक दिन उन्होंने बताया कि करोलबाग में उनके यहां साड़ियों की रंगाई का कार्य होता था। वे प्राय: विभाजन के काल को याद कर काफ़ी भावुक हो जाते थे। कार्टूनिस्ट्स क्लब ऑफ़ इण्डिया की स्थापना के मामले में जब मेरी उनसे चर्चा हुई तो उन्होंने पर्याप्त रुचि ली। वे चाहते थे राष्ट्रीय स्तर पर कार्टूनिस्टों की कोई अच्छी संस्था हो।
सुशील कालरा का देश से दूर मैरीलेण्ड, अमरीका में ८ सितम्बर २०१३ को निधन हो गया। वे अपने पीछे परिवार में पत्नी, २ बेटे, बहुएं और पोते-पोतियां छोड़ गये हैं।
कार्टून न्यूज़ हिन्दी की श्रद्धांजलि!
• टी.सी. चन्दर
ओह.
जवाब देंहटाएंसुशील जी के कार्टून तो हम बचपन से ही हिंदुस्तान ग्रुप के प्रकाशनों में देखते ही आए थे. उनकी अपनी एक धाराप्रवाह शैली थी.
दिवंगत आत्मा को नमन.
सुशील जी का मैं भी बड़ा भारी प्रशंसक रहा हूं. बड़ा हो जाने के बाद भी नन्दन पढ़ता था तो केवल चीटू-नीटू के लिए.
जवाब देंहटाएंईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करें.