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रविवार, 29 दिसंबर 2013

पुरस्कार

फ़्रीलांस कार्टूनिस्ट का पुरस्कार चन्दर को
पिछले दिनों महामना मदन मोहन मालवीय जयन्ती के अवसर पर २४ दिसम्बर २०१३ को मेवाड़ इंस्टीट्यूट, वसुन्धरा (गाज़ियाबाद) में वरिष्ठ पत्रकार श्री बनवारी ने कार्टूनिस्ट चन्दर को वर्ष २०१३ का अच्छे स्वतन्त्र व्यंग्यचित्रकार (फ़्रीलांस कार्टूनिस्ट) का पुरस्कार प्रदान किया। कार्टूनिस्ट को प्रशस्ति पत्र, मेवाड़ इंस्टीट्यूट के प्रतीक चिन्ह व शॉल के साथ-साथ एक लिफ़ाफ़ा भी दिया गया।
इस अवसर पर संयोग की बात- मंच पर उपस्थित सर्वश्री बनवारी, राम बहादुर राय, अरविन्द मोहन और जगदीश उपासने सभी उस समय के धांसू अखबार ‘जनसत्ता’ में कार्यरत थे जब मैंने एक साल जनसत्ता में नियमित कार्टूनिस्ट के रूप में कार्य किया। और काक साहब जनसत्ता के पहले कार्टूनिस्ट थे ही, सभी जानते हैं। दूसरा नम्बर अपना था।
वरुण


शुक्रवार, 27 दिसंबर 2013

मुस्कान

जय मुस्कान!
मेरे कार्टूनिस्ट और कर्टूनप्रेमी मित्रो,
मेरा विचार है कि अच्छे कार्टूनों का हिन्दी में एक टेब्लॉइड पीडीएफ़ अखबार निकाला जाए। इस अखबार में कार्टून की अधिकता हो और टाइप की हुई सामग्री न्यूनतम हो यानी आम अखबारों के उलट। यों अभी अखबारों ने कार्टून कला की ओर से मुंह फ़ेर लिया है। कार्टून फ़ोकट की चीज़ बनकर रह गये हैं जो कार्टूनिस्टों के द्वारा इण्टरनेट पर सहज उपलब्ध करा दिये जाते हैं।
इस कार्टून प्रधान अखबार को अभी या बाद में अखबारी कागज़ पर छापा जाए- साधन होने पर। अभी इस अखबार को पीडीएफ़ के रूप में देस-विदेश में ई-मेल द्वारा सदस्यों को भेजा जाए। ज़ाहिर है इसके लिए अच्छे कार्टूनों की आवश्यकता होगी ही। रोना वही कि फ़िलहाल मेहनताना नहीं दिया जा सकता। इसके लिए सक्षम होने का प्रयास किया जाएगा, शुरूआत तो हो! सामग्री में विविधता होगी. यह पक्का है। आप लोगों की सहमति हो तो एक अंक बनाया जाए। पर इसके लिए कुछ कार्टूनिस्ट मित्रों के ५ (छपे/बिन छपे) कार्टून/कार्टून स्ट्रिप/कैरीकेचर/फ़ीचर, सचित्र (फ़ोटो सहित) आत्म परिचय वगैरह चाहिए ही चाहिए।
कार्यक्रम तय होने पर व्यवस्था हेतु दक्षिणा १०१ (101) या ९९ (99) रुपये रुचि रखने वाले कार्टून प्रेमी यह मामूली सहयोग देंगे तो गाड़ी चल पड़ेगी। इस कार्य में प्रायोजक या विज्ञापन दाता का सहयोग सन्देहात्मक है। वैसे यदि आपके सम्पर्क में कार्टून प्रेमी प्रायोजक या विज्ञापन दाता हैं तो उनको इस पावन कार्य में पुण्य कमाने का न्यौता हैं। 
उल्लेखनीय है कि मेरा यह प्रयास हम सभी या अधिकतम कार्टूनिस्टों का एक अच्छा मंच बनाने की दिशा में एक कदम है व्यवसाय या धन्धा नहीं।
कुछ और जानना-पूछना चाहें तो बिना संकोच सम्पर्क करें- फ़ेसबुक के माध्यम से या cartoonistchander@gmail.com
(यहां मेरे हिन्दी पाक्षिक ‘मीडिया नेटवर्क’ के एक पुराने अंक के २ पृष्ठ दिये गये हैं, देखें)
लिन्क- http://www.medianetworkweb.blogspot.in/
 

कैरीकेचर

साई स्वरूप के कैरीकेचरों की प्रदर्शनी
सम्पर्क: वीजी नरेन्द्र, प्रबन्ध न्यासी,
इण्डियन कार्टून गैलरी,
इण्डियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ कार्टूनिस्ट्स, 1, मिडफ़ोर्ड हाउस के, मिडफ़ोर्ड गार्डन्स, एम.जी. रोड के बाहर, बंगलौर -560001 
फ़ोन: ०८०+४१७५८५४०,: ९९८००९१४२८
WebSite: www.cartoonistsindia.com 
E-mail: info@cartoonistsindia.com cartoonistsindia@gmail.com

रविवार, 1 दिसंबर 2013

केशव के चित्र

कार्टूनिस्ट केशव के म्यूज़िक स्कैचेज़
इण्डियन इन्स्टीट्यूट ऑफ़ कार्टूनिस्ट्स की कार्टून गैलरी में इस प्रदर्शनी ’म्यूज़िक स्कैचेज़’ का शुभारम्भ ७ दिसम्बर, २०१३ को सायं ४ बजे डॉ. एमआरवी प्रसाद (अध्यक्ष, बंगलोर ज्ञान समाज) के द्वारा होगा। यह कार्टून प्रदर्शनी २१ दिसम्बर, २०१३ तक कला प्रेमियों के लिए खुली रहेगी। 
सम्पर्क: वीजी नरेन्द्र, प्रबन्ध न्यासी, 
इण्डियन कार्टून गैलरी,
इण्डियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ कार्टूनिस्ट्स, 1, मिडफ़ोर्ड हाउस के, मिडफ़ोर्ड गार्डन्स, एम.जी. रोड के बाहर, बंगलौर -560001 
फ़ोन: ०८०+४१७५८५४०,: ९९८००९१४२८
WebSite: www.cartoonistsindia.com 
E-mail: info@cartoonistsindia.com cartoonistsindia@gmail.com

सोमवार, 23 सितंबर 2013

गुरुवार, 19 सितंबर 2013

प्रदर्शनी

श्रेयस नवारे की कार्टून प्रदर्शनी


आम आदमी




गुरुवार, 12 सितंबर 2013

श्रद्धांजलि

चले गये सुशील कालरा 
सुशील कालरा जन्म 13 जून, 1940 में गुजरांवाला (अब पाकिस्तान) में  हुआ था। बहुत भटकाव के बाद उन्होंने  अपनी अभिरुचि को समझते हुए नयी दिल्ली में कॉलेज ऑफ़ आर्ट्स में प्रवेश ले लिया। एक एड मेन के रूप में  उत्पादों के विज्ञापन अभियानों ने उन्हें लोकप्रिय बनाया। उन्होंने व्यंग्यचित्र बनाने की शुरूआत की।  बाद में वे पूरी  तरह से १९६८ में व्यंग्यचित्रण के क्षेत्र में उतर गये। हिंदुस्तान टाइम्स प्रकाशन के दैनिक हिन्दुस्तान, ईवनिंग न्यूज़, साप्ताहिक हिन्दुस्तान, नन्दन, कादम्बिनी आदि के लिए सुशील कालरा ने कार्टून और रेखांकन  बनाए। उन्होंने व्यापक रूप से विदेश की यात्राएं की, यहां तक कि उत्तरी ध्रुव की भी। उनके किया काम कई पश्चिमी और यूरोपीय देशों में प्रदर्शित और प्रकाशित हुआ। उन्होंने राजनीतिक कॉलम भी लिखे। बच्चों की पत्रिका नन्दन में नियमित छप्ने वाली उनकी बनायी चित्रकथा चीटू-नीटू काफ़ी लोकप्रिय थी। उन्होंने यह कार्टून स्ट्रिप 44 साल बनायी। उन्होंने एक उपन्यास लिखा था निक्का निमना, जिसका बाद में पंजाबी और अंग्रेजी में अनुवाद भी हुआ। 
वे छोटे पर्दे के एक जानेमाने व्यक्तित्व थे। उनका साक्षात्कार बीबीसी पर प्रसारित हुआ था और भारत के जानेमाने १० कार्टूनिस्टों की एक टीवी श्रंखला में भी उन्हें शामिल किया गया था। उन्होंने ३८ श्रंखलाओं में प्रसारित हुई रविवारीय क्विज़ को प्रस्तुत किया। हिन्दुस्तान टाइम्स से रिटायर होने पर उन्होंने अपने बेटों के साथ काफी समय अमेरिका में बिताया। वहां वे इच्छुक कलाकारों की मदद के लिए अंतर्राष्ट्रीय कलाकार समर्थक समूह (IASG), एक (आइएमजी) वॉशिंगटन डीसी, संगठन में शामिल हो गये। उन्होंने अकेले दम पर ललित कला अकादमी नयी दिल्ली में इस समूह के लिए ६ अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शनियों का भी आयोजन किया।
सन् २०११ में स्वास्थ्य जांच में उन्हें चौथे चरण का कैन्सर बताया गया। जब उनकी कैंसर चिकित्सक पुत्रवधु ने यह समाचार दिया तो उन्होंने अपने परिजनों से इस बात का खुलासा किसी से न करने को कहा। केमोथेरेपी इलाज के द्दौरान उनकी स्थिते में काफ़ी तेजी से सुधार आया। इसी बीच उन्होंने निक्का-निमना के अनुवाद कार्य की गति तेज कर दी। वे वहां से भी नियमित रूप से हर महीने नन्दन के लिए चीटू-नीटू बनाकर भारत भेजते रहे। निका-निमना का अनुवाद खत्म करने पर उन्होंने अपने जीवन के एक महत्वपूर्ण भाग यानी भारत-पाक बंटवारे के दौर, जब वे मात्र ७ साल के बालक थे, के तमाम अनुभवों को लिखने का निर्णय लिया। ये पुस्तकें एक मत, कयामत अब प्रकाशनाधीन हैं। 
कस्तूरबा गांधी रोड स्थित हिन्दुस्तान टाइम्स कार्यालय में उनसे अक्सर मेरी भैंट हो जाती थी। अक्सर बीते दिनों को लेकर चर्चा शुरू हो जाती थी। गुजांवाला उनके मन-मस्तिष्क में बसा हुआ था। एक दिन उन्होंने बताया कि करोलबाग में उनके यहां साड़ियों की रंगाई का कार्य होता था। वे प्राय: विभाजन के काल को याद कर काफ़ी भावुक हो जाते थे। कार्टूनिस्ट्स क्लब ऑफ़ इण्डिया की स्थापना के मामले में जब मेरी उनसे चर्चा हुई तो उन्होंने पर्याप्त रुचि ली। वे चाहते थे राष्ट्रीय स्तर पर कार्टूनिस्टों की कोई अच्छी संस्था हो।
सुशील कालरा का देश से दूर मैरीलेण्ड, अमरीका में ८ सितम्बर २०१३ को निधन हो गया। वे अपने पीछे परिवार में पत्नी, २ बेटे, बहुएं और पोते-पोतियां  छोड़ गये हैं।
कार्टून न्यूज़ हिन्दी की श्रद्धांजलि! 
• टी.सी. चन्दर

सोमवार, 2 सितंबर 2013

कार्टून प्रदर्शनी

माकार्टून २०१३ प्रदर्शनी

माया एकेडमी ऑफ़ एडवांस्ड सिनेमेटिक्स द्वारा  ‘माकार्टून (MAAC-artoon) 2013' के अन्तर्गत चयनित कार्टूनों की प्रदर्शनी का आयोजन किया जा रहा है। पिछले दिनों आयोजित इस कार्टून प्रतियोगिता में महाविद्यालयी छात्रों ने भाग लिया था। 
इण्डियन इन्स्टीट्यूट ऑफ़ कार्टूनिस्ट्स की कार्टून गैलरी में यह कार्टून प्रदर्शनी ७ से अ७ सितम्बर, २०१३ तक आयोजित होगी। सभी कार्टूनिस्ट और कार्टून प्रेमियों को यह कार्टून प्रदर्शनी देखने के लिए सादर आमन्त्रित किया गया है।
सम्पर्क: वीजी नरेन्द्र, प्रबन्ध न्यासी, 
इण्डियन कार्टून गैलरी,
इण्डियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ कार्टूनिस्ट्स, 1, मिडफ़ोर्ड हाउस के, मिडफ़ोर्ड गार्डन्स, एम.जी. रोड के बाहर, बंगलौर -560001 
फ़ोन: ०८०+४१७५८५४०,: ९९८००९१४२८
WebSite: www.cartoonistsindia.com 
E-mail: info@cartoonistsindia.com cartoonistsindia@gmail.com

बुधवार, 14 अगस्त 2013

जन्म दिन

पिचहत्तर के प्राण
भारतीय कार्टून कॉमिक जगत के ‘सरपंच’ कार्टूनिस्ट प्राण
जन्म १५ अगस्त, १९३८
  ‘कार्टून न्यूज़ हिन्दी’ की ओर से कार्टूनिस्ट प्राण को बहुत-बहुत बधाई!                                    
प्राण
प्राण कुमार शर्मा  जिन्हें  दुनिया कार्टूनिस्ट प्राण के नाम से जानती है, का जन्म १५ अगस्त, १९३८ को कसूर नामक कस्बे में हुआ था जो अब पाकिस्तान में है। एम.ए. (राजनीति शास्त्र) और फ़ाइन आर्ट्स के अध्ययन के बाद सन १९६० से दैनिक मिलाप से उनका कैरियार आरम्भ हुआ। तब हमारे यहां विदेशी कॉमिक्स का ह्री बोल्बाला था। ऐसे में प्राण ने भारतीय पात्रों की रचना करके स्थानीय विषयों पर कॉमिक बनाना शुरू किया।
भारतीय कॉमिक जगत के सबसे सफल और लोकप्रिय रचयिता कार्टूनिस्ट प्राण ने  सन १९६० से कार्टून बनाने की शुरुआत की। उनके रचे अधिकांश पात्र लोकप्रिय हैं पर प्राण को सर्वाधिक लोकप्रिय उनके पात्र चाचा चौधरी और साबू ने ही बनाया।
अमरीका के इण्टरनेशनल म्यूज़ियम ऑफ़ कार्टून आर्ट में उनकी बनाई कार्टून स्ट्रिप ‘चाचा चौधरी’ को स्थाई रूप से रखा गया है। सन १९८३ में  देश की  एकता को लेकर उनके द्वारा बनाई गयी कॉमिक ‘रमन- हम एक हैं’ का विमोचन तत्कालीन प्रधान मन्त्री स्व. इन्दिरा गांधी ने किया था।
एक जमाने में काफ़ी लोकप्रिय रही पत्रिका लोटपोट के लिए बनाये उनके कई कार्टून पात्र काफ़ी लोकप्रिय हुए। बाद में कार्टूनिस्ट प्राण ने चाचा चौधरी और साबू को केन्द्र में रखकर स्वतंत्र कॉमिक पत्रिकाएं भी प्रकाशित कीं। बड़े से बड़ा अपराधी या छोटा-मोटा गुन्डा-बदमाश या जेब कतरा, कुत्ते के साथ घूमने वाले लाल पगड़ी वाले बूढ़े को कौन नहीं जानता! यह सफ़ेद मूंछों वाला बूढ़ा आदमी चाचा चौधरी है। उसकी लाल पगड़ी भारतीयता की पहचान है। कभी-कभी पगड़ी बदमाशों  को पकड़ने के काम भी आती है।
कहते हैं कि चाचा चौधरी का दिमाग कम्प्यूटर से भी तेज चलता है। सो अपने तेज दिमाग की सहायता से चाचा चौधरी बड़े से बड़े अपराधियों को भी धूल चटाने में माहिर हैं। चाचा चौधरी की रचना चाणक्य के आधार की गयी है जो बहुत बुद्धिमान व्यक्ति थे। यह १९६० की बात है। दरअसल वे पश्चिम के लोकप्रिय पात्रों सुपरमैन, बैटमैन, स्पाइडरमैन आदि से  अलग हटकर भारतीय छाप वाले पात्रों की रचना करना चाहते थे जो दिखने में सामान्य इन्सान दिखें। इसीलिए काफ़ी सोचविचार के बाद  उन्होने सामान्य से दिखने वाले गंजे, छोटे कद के, बूढ़े चाचा चौधरी को बनाया, जिसका दिमाग बहुत तेज था। वह अपने दिमाग से हर समस्या का हल कर देता है। चाचा चौधरी स्वयं शक्तिशाली नहीं पर जुपिटर ग्रह से आया साबू अपनी असाधारण शारीरिक क्षमता से चाचा चौधरी पर्छाईं की तरह उनके साथ रहकर यह कमी पूरी कर देता है। इस तरह  साबू और चाचा चौधरी मिल कर अपराधियों को पकड़वा देते है।
चीकू नामक बुद्धिमान खरगोश का कॉमिक बच्चों की पत्रिका चम्पक में बरसों छपा। किसी वजह से सन १९८० में चम्पक से अलग होने पर चीकू के कारनामे बदल गये। बाद में यह २ पृष्ठीय चित्रकथा चीकू दास (एक सरकारी चित्रकार) ने बनायी। इसी तरह कुछ अन्य पात्रों के साथ भी हुआ। विभिन्न हिन्दी व अन्य भाषाओं के समाचार पत्र-पत्रिकाओं में उनके अनेक पात्र धूम मचाते रहे हैं। उनके रचे बिल्लू, पिन्की, तोषी, गब्दू, बजरंगी पहलवान, छक्कन, जोजी, ताऊजी, गोबर गणेश, चम्पू, भीखू, शान्तू आदि तमाम पात्र जनमानस में सालों से बसे हुए हैं।
चाचा चौधरी की कॉमिक्स हिन्दी, अंग्रेजी के अलावा अन्य भारतीय भाषाओ मे भी प्रकाशित की होती है। हास्य और रोमांच से भरे ये कॉमिक बच्चों और बड़ों का भरपूर मनोरंजन करते है। दर्शकों का चाचा चौधरी  के टीवी सीरियल ने भी पर्याप्त मनोरंजन किया। कार्टूनिस्ट प्राण एनिमेशन फिल्म भी बना रहे है।
सचमुच भारतीय कार्टून कॉमिक जगत के ‘सरपंच’ कार्टूनिस्ट प्राण ही हैं।
टी.सी. चन्दर

कवि -कार्टूनिस्ट प्राण के रेखांकन
कंप्यूटर से भी तेज दिमाग वाले 'चाचा चौधरी' तथा साबू, बिन्नी, डगडग, बंदूक सिंह, राकेट, श्रीमतीजी, बिल्लू, पिंकी, रमन, डब्बू, चन्नी चाची जैसे कार्टून चरित्रों के रचनाकार प्राण ने अपने कार्टूनों से भारतीय बचपन को एक नये अंदाज में संवारा है। ऐसे में जब भारतीय साहित्य और समाज एक दूसरे से दूर जाने की जिद पकड़ने की शुरूआत-सी कर रहे थे तब राजनीति विज्ञान में एम.ए.और बंबई के अतिप्रतिष्ठित जे.जे. स्कूल ऑफ आर्ट से पढ़े तथा दैनिक 'मिलाप' से जुड़े रहे युवा चित्रकार प्राण ने वर्ष १९६६ के पहले दो दिनों में दिल्ली से दूर खंडवा जाकर 'एक भारतीय आत्मा' नाम से कवितायें लिखने वाले 'दादा' माखन लाल चतुर्वेदी के कुछ रेखांकन बनाए थे जो प्रकाशन विभाग की मासिक पत्रिका 'आजकल' ( हिन्दी ) के अक्टूबर १९६६ अंक में  उनके एक संस्मरणात्मक आलेख के साथ प्रकाशित हुए थे . इस आलेख में प्राण एक संवेदनशील  गद्य लेखक की तमाम खूबियों के साथ  मौजूद हैं।
'पुष्प की अभिलाषा' शीर्षक कविता को हिन्दी की  कालजयी कविताओं की श्रेणी में गिना जाता है। माखन लाल चतुर्वेदी (१८८९ - १९६८) न केवल हिन्दी की राष्ट्रीय काव्यधारा के प्रमुख कवि रहे हैं बल्कि एक पत्रकार के रूप में  भी उनका कद बहुत बड़ा है।'कृष्णार्जुन युद्ध ,'हिमकिरीटनी', 'हिमतरंगिणी', 'माता', 'साहित्य देवता', 'युगचरण' 'समर्पण', 'वेणु लो गूंजे धरा', 'अमीर इरादे:गरीब इरादे' जैसी रचनाओं के इस रचनाकार ने एक समय में 'प्रभा','कर्मवीर','प्रताप'जैसे पत्रों का  सफल संपादन भी  किया था।
* पूर्व उल्लिखित  'आजकल' के अक्टूबर १९६६ अंक से  कार्टूनिस्ट  प्राण  के संस्मरण के  कुछ चुनिंदा अंशों के साथ   'एक भारतीय आत्मा' की जीवन संध्या  के स्केच भी  पूरे  आदर - आभार सहित प्रस्तुत  किए  जा रहे हैं -

भारतीय आत्मा के साथ एक चित्रकार के दो दिन
• १ जनवरी,१९६६
भारतीय आत्मा को देखते ही सबसे पहले जो विचार मेरे मन में आया, वह यह था कि यह चेहरा बहुत सरल है, देखने में भी और चित्र बनाने के लिये भी।शायद मैंने पहले कभी इतना सरल और भावुक चेहरा स्केच नहीं किया था. हां, अंधकारमय कमरा, जिसमें श्री माखन लाल चतुर्वेदी, अर्थात मेरे माडल लेटे हुए थे, जरूर मेरे कार्य में बाधक था। बताया गया कि मेरे माडल बहुत सख्त बीमार हैं और उन्हें रोशनी अच्छी नहीं लगती। इस कारण मैं कमरे में बिजली भी नहीं जला सकता। मेरे मॉडल, जिन्हें लोग प्यार से 'दादा' कहते हैं, पिछले दो वर्षों से इतने अधिक बीमार हैं कि बैठ भी नहीं सकते।पिछले सारे मेरे माडलों से यह माडल अजीब था। उसको एक 'पोजीशन' बनाकर बैठे या खड़े रहने के लिए आर्टिस्ट नहीं कह सकता था, बल्कि लेटे हुए माडल की सुविधा का ख्याल रखकर ही उसको चित्र बनाना था। चित्र बनाने में ये रुकावटें सामने थीं. परंतु उसका भोला और सरल चेहरा देखकर कोई भी चित्रकार, इतनी रुकावटें होते हुए भी, उसका चित्र बनाने को तैयार हो जाएगा. यही मैंने भी किया।
"आपकी तबियत अब कैसी है?" मैंने अपने बीमार माडल से पूछा।
"ठी-ड़-ड़-ड़-...र-र-र..." मेरे माडल के होंठों पर कंपन हुआ और अस्पष्ट ध्वनि हुई.पास खड़े हुए उनके छोटे भाई साहब ने बताया कि वह पिछले दो वर्षों से ठीक से बोल नहीं पाते। बहुत कोशिश करने पर जब वह कुछ बोलते हैं, तो वह इतना अस्पष्ट होता है कि उसे उनका नौकर या छोटे भाई ही समझ पाते हैं। अपने मॉडल की यह हालत देखकर मेरा दिल रो उठा कि किसी जमाने में आग की लपटें बरसाने वाली क्रांतिकारी कवितायें लिखने वाला आज असहाय होकर बूढ़े शेर की तरह अंधकारमय मांद में पड़ा है।
कमरे में एक कोने में बैठकर मैंने चित्र बनाना शुरू किया. सामने मेरे माडल रजाई ओढे लेटे हुए थे.रंग कागज पर फैलने लगे. अभी कुछ ही देर हुई थी कि उन्होंने करवट बदली. मुझे एक और रुकावट दिखी. माडल को एक ही तरफ से लेटा रहने के लिए भी नहीं कहा जा सकता था. वह बीमार थे.इस कारण एक करवट लेटे रहना उनके लिए असह्य था. वह सुविधानुसार दायें-बायें करवटें बदलते रहे. कई बार उनका चेहरा छुप जाता. मैंने आंखें बंद कीं और दिमाग खोला. सोचा, यह पेंटिंग कैसी हो? इसमें कवि के भाव होने चाहिए. कौन-सी कविता? हां ठीक है, वही, जो मैंने बचपन में पढ़ी थी -'मील का पत्थर'. यह कवि भी तो सारी उम्र एक राहगीर रहा है. मैंने फिर रंगों को कागज पर फैलाना शुरू किया. माडल की तरफ देखा. बंद आंखें, साफ़ निर्मल चेहरा, निर्मल जल की तरह, जिसमें झांककर आप दिल के भाव तक देख सकते हैं, श्वेत वर्ण, पतली नाक, नुकीली ठुड्डी घनी सफेद मूंछें और रूई के समान सिर पर घने बाल. उनका जरूर जवानी में सुंदर व्यक्तित्व रहा होगा, मैंने सोचा. कुछ और चेहरे के अंदर घुसा,झुर्रियों के बीच मैंने खोजा, उनके मन में संतुष्ट भाव. मैं उनके चेहरे के हर भाग को खोजता रहा, अध्ययन करता रहा, भाव ढ़ूंढ़ता रहा. ब्रश चलते रहे ,रंग कागज पर चलते रहे , चित्र बनता रहा।
"आप चित्रकला के बारे में कुछ कहना चाहते हैं?"
"चित्र ...त्र...त्र...भ...भ...श्...श..." ( चित्रकला भावों से शुरू होती है।)
"और "...मैंने पूछा।
"भ...भ...भ...प...र...र...र..." ( और भावों पर खत्म हो जाती है )
मैं मुस्करा दिया। मेरे मॉडल ने दो वाक्यों में ही सारी चित्रकला को लपेट लिया था। मैंने चित्र पूरा कर लिया। ऊपर बायें कोने पर 'मील का पत्थर', बीच में मुख्य फिगर कवि , मेरे माडल और नीचे एक युवक, जो पूरे जोश में हाथ उठाये क्षितिज की ओर चला जा रहा है। चित्र माडल को दिखाया गया। उन्होंने जेब से चश्मा निकाला, रूमाल से उसे पोंछा और आंखों पर चढ़ाया। चित्र को गौर से देखा. उनके होंठ थोड़े चौड़े हो गए, वह मुस्कुराये.मैंने समझ लिया कि चित्र उन्हें पसंद आ गया है. स्वीकृति में उन्होंने सिर भी हिलाया। फिर उन्होंने 'मील का पत्थर' की ओर इशारा किया। मैं समझ गया कि वह ७८ के अंकों को, जो 'मील का पत्थर' पर अंकित है, पूछ रहे हैं। मैंने कहा- आपको पथिक बनाया है, 'मील का पत्थर' पर ७८ अंक लिखकर यह बताने की कोशिश की है कि आपने अपने जीवन का इतना रास्ता तय कर लिया है। यह सुनकर मेरे मॉडल फिर मुस्कुराये।
• २ जनवरी, १९६६
आज मैंने अपने मॉडल की दिनचर्या पर छोटे-छोटे ब्लैक एंड ह्वाइट स्कैच बनाने का विचार किया।
सुबह मेरे माडल दस मिनट तक अपने मकान के आगे सैर करते हैं.सुबह साढ़े नौ बजे के करीब वह काला चश्मा लगाए बाहर आए. पांवों मे मोजों पर काले जूते, खादी का पाजामा, बंद गले का कोट, गले पर मफलर, सिर पर गांधी टोपी और सिर से कानों तथा गर्दन को लपेटे हुए दोहरी अथवा चौहरी शाल थी. एक व्यक्ति उनको थामे हुए था। उन्होंने धीरे-धीरे, इंच-इंच करके एक-एक कदम आगे बढ़ाया, फिर ठहर गए। फिर धीरे-धीरे, इंच-इंच करके दूसरा कदम बढ़ाया, फिर ठहर गए। इसी प्रकार वह कठिनाई से धीरे-धीरे आगे एक कदम बढ़ाते, फिर दूसरा। उन्होंने कोई दस गज की दूरी तय की। फिर वापस उसी तरह कदम रखते वही दूरी तय की। यही दस गज की जगह मात्र उनकी सैरगाह थी. मैंने स्केच-बुक उठाई और उनके साथ, उनके आगे-आगे, उलटे पांव चलने लगा और स्केच बनाने लगा। बायें हाथ से स्केच-बुक थामे, दायें से मैं रेखाएं बनाता जाता। जब मेरे माडल मुड़ जाते तो मैं भी मुड़ जाता। एक बार जब मैं उनके आगे-आगे स्केच बनाता हुआ उल्टे पांव चल रहा था तो पीछे एक बड़ा पत्थर आ गया। मैं धड़ाम से गिर पड़ा. पास खड़े हुए बच्चे हंसने लगे। मैं कपड़े झाड़कर उठा। यह स्केच मैंने पांच मिनट में पूरा कर लिया।
"स...स...र...र..."(क्या सारे चित्र बन गए?)
"हां, काफी बन गये हैं।"
"को...ई...ई...क...क...क...?" (कोई कार्टून?)
"कार्टून सिर्फ राजनीतिज्ञों के बनाता हूं।आपका कोई कार्टून नहीं बनाऊंगा,बेफिक्र रहिए।"
कार्टूनिस्ट प्राण
इस पर मेरे माडल खिलखिलाकर हंस पड़े। पास बैठे हुए उनके भाई ने बताया कि आज बहुत अरसे बाद वह हंसे हैं.मैंने अपने को सराहा कि उन्हें हंसा पाया हूं। मेरे माडल का मूड अच्छा देखकर एक सज्जन ने मौका हाथ से न जाने दिया।
"दादा, अब तो इनको हस्ताक्षर दे दो। "मेरे माडल ने स्वीकृति दे दी। उन्हॅं सहारा देकर बैठाया गया। फिर उनके हाथ में पेन दे दिया गया। उन्होंने अनजाने में ही जहां कलम पड़ गई, अस्पष्ट-से,टेढे-मेढे हस्ताक्षर करने शुरू कर दिये। किसी स्केच पर पूरा नाम लिखने की कोशिश की, परंतु 'माख लाल च'...तक ही लिख सके.किसी पर सिर्फ 'म.ल.च' ही अंकित कर सके।
३ जनवरी १९६६
आज सुबह मैंने अपने मॉडल के चरण छुए और उनसे विदा ली। सुबह नौ बजे खंडवा से पठानकोट एक्सप्रेस में बैठकर दिल्ली रवाना हो गया.
(साभार) कर्मनाशा में सिद्धेश्वर सिंह
लिन्क: http://karmnasha.blogspot.in/2011/04/blog-post.html

शुक्रवार, 9 अगस्त 2013

कार्टून प्रदर्शनी

१५ कार्टूनिस्ट ६६ कार्टून

इण्डियन कार्टून गैलरी की स्थापना की 6वीं वर्षगांठ के अवसर पर एक विशेष कार्टून प्रदर्शनी `सुप्रसिद्ध पन्द्रह’ का आयोजन किया जा रहा है। बंगलुरू स्थित इण्डियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ कार्टूनिस्ट्स) देश के जानेमाने १५ व्यंग्यचित्रकारों के व्य़ंग्यचित्र प्रदर्शित किये जाएंगे।
इस कार्टून प्रदर्शनी का शुभारम्भ जापान के सुप्रसिद्ध कार्टूनिस्ट तादाओ कागाया (Tadao Kagaya) १७ अगस्त, २०१३ को प्रात: ११.०० बजे करेंगे। यह कार्टून प्रदर्शनी ’सुप्रसिद्ध पन्द्रह’ ३१ अगस्त, २०१३ तक कार्टूनिस्ट और कार्टून प्रेमियों के लिए खुली रहेगी।
यह सर्वविदित है कि आईआईसी द्वारा अब तक देश के १५ कार्टूनिस्टों को उनके उल्लेखनीय कार्य के लिए 'लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड' से सम्मानित किया गया है। ये जानेमाने कार्टूनिस्ट हैं- आर.के. लक्ष्मण, (स्व.) मारियो मिराण्डा, प्राण, उन्नी, काक, एस.डी. फ़ड़्नीस और वसन्त सरावटे (महाराष्ट्र), बापू और टी. वैंकट राव (आन्ध्र प्रदेश), येसुदासन और टॉम्स (केरल), गोपालू और मदन (तमिलनाडु) तथा (स्व.) एस.के. नाडिग और प्रभाकर रावबेल (कर्नाटक)।

ट्रस्टी (प्रबन्धन) वी.जी. नरेन्द्र के अनुसार इण्डियन कार्टून गैलरी में आयोजित इस प्रदर्शनी में चुने हुए ६६ कार्टून प्रदर्शित किये जाएंगे। सभी कार्टूनिस्ट और कार्टून प्रेमी अवलोकन और आनन्द लेने के लिए सादर आमंत्रित हैं।
इण्डियन कार्टून गैलरी,
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शुक्रवार, 19 जुलाई 2013

रामध्यानी के कार्टून

रामध्यानी के कार्टूनों की प्रदर्शनी बंगलुरु  में 
रामध्यानी (वास्तविक नाम- आर कृष्णमूर्ति) के कार्टूनों  की प्रदर्शनी 'रामबाण' बंगलुरू की इण्डियन कार्टून गैलरी में आयोजित की जा रही है।
२७ जुलाई, २०१३ की सुबह ११ बजे जानेमाने पत्रकार और व्यंग्य लेखक एच एन आनंद इस कार्टून प्रदर्शनी का शुभारम्भ करेंगे। यह प्रदर्शनी १० अगस्त, २०१३ तक जारी रहेगी ।
कार्टूनिस्ट रामध्यानी सन १९८३ से कार्टून कला के क्षेत्र  में पूरे जोश के साथ सक्रिय हैं । उन्हें कार्टून कला के क्षेत्र  में अनेक पुरस्कार-सम्मान भी प्राप्त हुए हैं।



शनिवार, 29 जून 2013

प्रशान्त कुलकर्णी

प्रशान्त कुलकर्णी के कार्टून-कैरीकेचर
इण्डियन इन्स्टीट्यूट ऑफ़ कार्टूनिस्ट्स   (बंगलोर) मुम्बई के जानेमाने  कार्टूनिस्ट प्रशान्त कुलकर्णी की कार्टून-कैरीकेचर प्रदर्शनी आयोजित कर रहा है। ६ जुलाई, २०१३ को इन्स्टीट्यूट की गैलरी में आयोजित होने वाली यह  प्रदर्शनी कार्टून प्रेमियों के लिए २० जुलाई, २०१३ तक खुली रहेगी।
सन १९५९ में जन्मे प्रशान्त कुलकर्णी पिछले लगभग ३० वर्षों से राजनीतिक-गैरराजनीतिक कार्टून बना रहे हैं। पेशे से इंजीनियर प्रशान्त बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं।





सुरेन्द्र को सम्मान

कार्टून वॉच का कार्टून उत्सव
इस साल कार्टून उत्सव का आयोजन ‘कार्टून वॉच’ पत्रिका के ‘गृह राज्य’ छत्तीसगढ़ रायपुर में ही किया जा रहा है। विगत २ सालों से यह आयोजन राज्य से बाहर होता रहा है।
कार्टून उत्सव का आयोजन २९ जून, २०१३ को न्यू सर्किट हाउस रायपुर में सायं ६ बजे प्रारम्भ होगा। कार्टूनिस्ट सुरेन्द्र को छत्तीसगढ़ के मुख्य मन्त्री डॉ. रमन सिंह और संस्कृति मन्त्री ब्रजमोहन अग्रवाल लाइफ़टाइम अचीवमेण्ट अवार्ड प्रदान करेंगे।  
कार्टून वॉच के सम्पादक त्र्यम्बक शर्मा के अनुसार कार्टूनिस्ट सुरेन्द्र चेन्नई के अखबार द हिन्दू के पिछले १७ वर्षों से कार्टूनिस्ट हैं। उनके कार्टूनों की डिज़िटल प्रदर्शनी का भी आयोजन किया गया है।



शनिवार, 1 जून 2013

Hospital to home

1. Drawing cartoon from ventilator bed-I
Cartoonist TC Chander drawing cartoon from his ventilator bed, while he was admitted at Sant Paramanand Hospital, Civil Lines in Delhi. 
(19th May, 2013, 04 47 46 pm)
2. Drawing cartoon from ventilator bed-II
Cartoonist T C Chander drawing cartoon from his ventilator bed, while he was admitted at Sant Paramanand Hospital in Delhi.
(19th May, 2013, 04 50 32 pm)

Hospital to home 
May 17-24, 2013
Video-photo: Vishal K Chander

सोमवार, 4 मार्च 2013

कार्टून प्रदर्शनी

सत्यमूर्ति के कार्टूनों की प्रदर्शनी
इण्डियन इन्स्टीट्यूट ऑफ़ कार्टूनिंस्ट्स’ के द्वारा जानेमाने कार्टूनिस्ट बीवी सत्यमूर्ति के कार्टूनों की प्रदर्शनी ‘कार्टून गैलरी’ में ९ से २३ मार्च, २०१३ तक आयोजित की जा रही है। आप सादर आमन्त्रित हैं। 

वीजी नरेन्द्र, प्रबन्ध न्यासी,
इण्डियन इन्स्टीट्यूट ऑफ़ कार्टूनिस्ट्स’
Indian Institute of Cartoonists,
#1, Midford House, Midford Gardens,
Off M.G.Road, Bangalore-560001
Ph: 080-41758540, Mobile:9980091428
Website: www.cartoonistsindia.com
E-mail: cartoonistsindia@gmail.com
Facebook: www.facebook.com/pages/Indian-Institute-of-cartoonists/249178643402

बुधवार, 13 फ़रवरी 2013

स्माइलिंग लाइन

द स्माइलिंग लाइन
इण्डियन इन्स्टीट्यूट ऑफ़ कार्टूनिस्ट्स की स्मारिका सह व्यंग्यचित्रकार निर्देशिका 
हाल ही में ‘इण्डियन इन्स्टीट्यूट ऑफ़ कार्टूनिस्ट्स’ (बंगलोर) ने ‘द स्माइलिन्ग लाइन’ शीर्षक से स्मारिका सह व्यंग्यचित्रकार निर्देशिका प्रकाशित की है। (The Smiling Line- Souvenir cum Directory of Cartoonists 2012)
कार्टून कला और कार्टूनिस्टों के लिए कार्यरत संस्था इण्डियन इन्स्टीट्यूट ऑफ़ कार्टूनिस्ट्स ने देश के अनेकानेक वरिष्ठ व नवोदित कार्टूनिस्टों को पर्याप्त महत्व देते हुए अपने साथ जोड़ा है। निश्चय ही यह एक प्रशंसनीय कार्य है।
कार्टून प्रदर्शनी आयोजित करने के उद्देश्य से इण्डियन इन्स्टीट्यूट ऑफ़ कार्टूनिस्ट्स ने ५ साल पहले कार्टून गैलरी का शुभारम्भ किया था। संस्था गैलरी की पांचवीं सालगिरह मना रही है। इस अवधि में ७१ कार्टूनिस्टों के कार्य को यह गैलरी लोगों के सामने लायी। इस कार्य को कार्टूनप्रेमियों की भरपूर सराहना मिली। समय-समय पर आयोजित सभी कार्टून प्रदर्शनियों का शुभारम्भ अनेक जानीमानी हस्तियों ने किया। अपने सम्बोधन में सभी ने कार्टून कला और कार्टूनिस्टों को प्रोत्साहित किए जाने पर ही बल दिया। ‘द स्मालिंग लाइन’ में प्रकाशित ऐसे ही ५ व्यक्तियों के सम्बोधन लेखों के रूप में प्रकाशित किये गए हैं।
इण्डियन इन्स्टीट्यूट ऑफ़ कार्टूनिस्ट्स द्वारा कार्टून कार्यशाला जैसे अन्य कार्यक्रम भी प्राय: आयोजित किए जाते रहे हैं। ऐसी गतिविधियों में लोग पूरे उत्साह से भाग लिया। संस्था द्वारा अभी तक वरिष्ठ कार्टूनिस्टों आरके लक्ष्मण, मारिओ, प्राण, फ़ड़नीस, बापू, येसुदासन, नाडिग, काक, उन्नी, बसन्त सरावटे, टी वैंकटराव, वीटी थॉमस (टॉम्स) और प्रभाकर रावबेल को उनके उल्लेखनीय कार्य के लिए लाइफ़टाइम अचीवमेण्ट अवार्ड प्रदान किया गया है। संस्था द्वारा सम्पादकीय कार्टूनों के लिए ‘माया कामथ सम्मान’ भी दिया जाता है।
इण्डियन इन्स्टीट्यूट ऑफ़ कार्टूनिस्ट्स आम आदमी और कार्टूनिस्टों के बीच एक सेतु के रूप में यथाशक्ति सक्रिय है। यह कार्टून कला, कलाकार और कार्टूनप्रेमियों को निकट लाकर एक उल्लेखनीय कार्य कर रही है। पर्याप्त धन के बिना यह कार्य नहीं किया जा सकता सो इसके लिए भी प्रायास करने पड़ते हैं जो दिखाई नहीं देते।
स्मारिका के निर्देशिका (directory) खण्ड में यहां की गैलरी में आयोजित कार्टून प्रदर्शनियों के कार्टूनिस्टों के बारे में संक्षिप्त सचित्र जानकारी शामिल की गयी है। नि:सन्देह यह स्मारिका सह निर्देशिका सभी कार्टूनिस्टों और कार्टून प्रेमियों के लिए संग्रहणीय और उपयोगी है।
संस्था के कार्य और गतिविधियों के प्रचार-प्रसार में प्रिण्ट और इलैक्ट्रॉनिक मीडिया ने भी काफ़ी सहयोग दिया है। संस्था के सुचारु संचालन में इसके ट्रस्टी वीजी नरेन्द्र की व्यक्तिगत रुचि और उनकी भूमिका प्रशंसनीय है।
ऐसे में जब ‘कार्टून’ को ‘आउट’ किए जाने के प्रयास चल रहे हैं इण्डियन इन्स्टीट्यूट ऑफ़ कार्टूनिस्ट्स का कार्य सचमुच स्तुत्य है। देश में कार्टून के लिए गिनीचुनी सक्रिय संस्थाओं में इसका स्थान महत्वपूर्ण है।
• टीसी चन्दर
इण्डियन इन्स्टीट्यूट ऑफ़ कार्टूनिस्ट्स १, मिडफ़ोर्ड हाउस, मिडफ़ोर्ड गार्डन्स, एम.जी. रोड, बंगलोर-५६०००१ सम्पर्क: वी.जी. नरेन्द्र, प्रबन्ध न्यासी, ०८०-४१७५८५४०, ०९९८००९१४२८
वेबसाइट: www.cartoonistsindia.com ई-मेल: info@cartoonistsindia.com, cartoonistsindia@gmail.com फ़ेसबुक: http://www.facebook.com/pages/Indian-Institute-of-cartoonists/249178643402

शनिवार, 5 जनवरी 2013

मारियो का कर्नाटक

मारियो का कर्नाटक
सुप्रसिद्ध कार्टूनिस्ट (स्व.) मारियो मिराण्डा के कार्टून चित्रों की विशेष प्रदर्शनी
अवधि: १९ जनवरी- ९फ़रवरी, २०१३ (रविवार छोड़कर)
समय: प्रात: १० से सायं ६ बजे तक
स्थान: १, मिडफ़ोर्ड हाउस, मिडफ़ोर्ड गार्डन्स, एम.जी. रोड, बंगलोर-५६०००१
सम्पर्क: वी.जी. नरेन्द्र, प्रबन्ध न्यासी, ०८०-४१७५८५४०, ०९९८००९१४२८ 
वेबसाइट: www.cartoonistsindia.com
ई-मेल: info@cartoonistsindia.com, cartoonistsindia@gmail.com
फ़ेसबुक: http://www.facebook.com/pages/Indian-Institute-of-cartoonists/249178643402


कार्टून प्रतियोगिता

कार्टूनिंग में उत्कृष्टता के लिए
माया कामथ मेमोरियल पुरस्कार- २०१२
माया कामथ के परिवार द्वारा स्थापित सर्वश्रेष्ठ राजनीतिक कार्टून पुरस्कार- २०१२


कार्टूनेचर फ़ीचर सेवा

कार्टून न्यूज़ हिन्दी झरोखा