आप कार्टूनिस्ट हैं और आपने अभी तक अपना ब्लॉग नहीं बनाया है तो कृपया अभी अपना ब्लॉग बनाएं। यदि कोई परेशानी हो तो केवल हिन्दी में अपना ब्लॉग बनवाने के लिए आज ही सम्पर्क करें-चन्दर

सोमवार, 24 दिसंबर 2012

पुरस्कार

कार्टूनिस्ट सुधीरनाथ को प्रोत्साहन पुरस्कार
महामना पं. मदन मोहन मालवीय जयन्ती के अवसर पर  २४ दिसम्बर २०१२ को अपराह्न २.३० बजे मेवाड़ संस्थान, वसुन्धरा, गाजियाबाद के विवेकानन्द सभागार में "आठवां पत्रकार प्रोत्साहन पुरस्कार समारोह" आयोजित हुआ। सरस्वती माँ के समक्ष दीप प्रज्ज्वलन एवं मालवीय जी की प्रतिमा पर माल्यार्पण मुख्य अतिथि प्रखर राष्ट्रवादी पत्रकार श्री शिव कुमार गोयल ने किया। तत्पश्चात् महामना पं. मदन मोहन मालवीय जयन्ती का कार्यक्रम विधिवत् प्रारम्भ हुआ।
कार्यक्रम के अध्यक्ष श्री शिव कुमार मिश्र ने कहा कि इस प्रकार के कार्यक्रम निश्चित रूप से महत्वपूर्ण हैं। उन्होंने महामना मदन मोहन मालवीय जी की जयन्ती के अवसर पर पत्रकार प्रोत्साहन पुरस्कार परम्परा को बनाए रखने के लिए संस्थान को हार्दिक धन्यवाद दिया और कहा कि श्री रवीन्द्र नाथ टैगोर और श्री मदन मोहन मालवीय दो ऐसे व्यक्तित्व हैं जिनके जीवन से हमें बहुत कुछ सीखने की आवश्यकता है।
मेवाड़ संस्थान के अध्यक्ष श्री अशोक कुमार गदिया ने महामना मदन मोहन मालवीय जी की जयन्ती पर संस्थान की ओर से मुख्य अतिथि श्री शिव कुमार गोयल, श्री शिव कुमार मिश्र, श्री जगदीश उपासने, श्री हरिचन्द्र शुक्ला ‘काक’, श्री अशोक मोहन एवं सभी सम्मानित अतिथियों का हार्दिक अभिनन्दन करते हुए पुरस्कार पाने वाले पत्रकारों को हार्दिक बधाई देते हुए अपने सम्बोधन में कहा कि महामना मदन मोहन मालवीय विशिष्ट व्यक्तित्व के धनी थे, उनके जीवन को पढ़ने पर लगता है कि वह आदर्श विद्यार्थी, पुत्र, पति, देश भक्त पत्रकार, वकील, कवि एवं कुशल राजनीतिज्ञ थे। वे शिक्षा के क्षेत्र में युगदृष्टा थे जिन्होंने १९१६ में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय की कल्पना की और उसको मूर्त रूप दिया। दान और सहयोग प्राप्त करने में उनके मुकाबले में आजतक उनके जैसा कोई अन्य व्यक्ति नहीं हुआ।
चयन समिति के माननीय सदस्य वरिष्ठ पत्रकार श्री जगदीश उपासने, श्री हरिशचन्द्र शुक्ल ‘काक’, श्री प्रदीप सिंह और श्री अरविन्द मोहन के सामूहिक निर्णय से प्रथम श्री महमूद अली, द्वितीय श्री पवन कुमार (रिपोर्टर-हिन्दी), श्री आकाश वशिष्ठ प्रथम, श्री मुन्ना मिश्रा द्वितीय (रिपोर्टर-अंग्रेजी), श्री उमेश चतुर्वेदी प्रथम, सुश्री माधवी श्री द्वितीय (फीचर राइटिंग), श्री उसमान सैफी प्रथम, श्री जितेन्द्र सिंह द्वितीय (फोटोग्राफर) और श्री एन.बी. सुधीर नाथ, प्रथम (कार्टूनिस्ट) को सम्मानित किया गया। प्रत्येक प्रथम श्रेणी प्रतियोगी को नकद रुपये ५१००/- एवं द्वितीय श्रेणी के प्रतियोगी को रुपये ३१००/- नकद पुरस्कार राशि, शॉल, प्रशस्ति-पत्र एवं प्रतीक चिन्ह प्रदान किये गये।
कार्यक्रम का संचालन कम्प्यूटर विभाग की प्रवक्ता सुश्री मेघा अरोड़ा ने किया।
प्रस्तुति: टी.सी. चन्दर

बुधवार, 19 दिसंबर 2012

शंकर के कार्टून

शंकर (३१ जुलाई, १९०२- २६ दिसंबर, १९८९)
शंकर के कार्टूनों की प्रदर्शनी
इण्डियन इन्स्टीट्यूट ऑफ़ कार्टूनिस्ट्स की गैलरी में २४ दिसम्बर, २०१२ से १२ जनवरी, २०१३ में शंकर के कार्टूनों की ‘शंकर्स’ कार्टून’ (Shankar's Cartoons) के अन्तर्गत प्रदर्शित किये जाएंगे। पता: १, मिडफ़ोर्ड हाउस, मिडफ़ोर्ड गार्डन्स, एम.जी. रोड, बंगलोर-५६०००१ सम्पर्क: वी.जी. नरेन्द्र, प्रबन्ध न्यासी, ०८०-४१७५८५४०, ०९९८००९१४२८ 
वेबसाइट: www.cartoonistsindia.com 
ई-मेल: info@cartoonistsindia.com, cartoonistsindia@gmail.com फ़ेसबुक:http://www.facebook.com/pages/Indian-Institute-of-cartoonists/249178643402


शुक्रवार, 14 दिसंबर 2012

श्रद्धांजलि

बाल ठाकरे को श्रद्धांजलि
मुम्बई में ‘कार्टूनिस्ट्स’ कम्बाइन’ द्वारा देश के जानेमाने कार्टूनिस्ट बालासाहेब ठाकरे  पर बनाये गये कार्टून और कैरीकेचरों की एक विशेष प्रदर्शनी का जल्दी ही आयोजन किया जा रहा है। 
कार्टूनिस्ट प्रभाकर वाइरकर के अनुसार ' टाइगर' बालासाहेब ठाकरे के लिए एक श्रद्धांजलि ' प्रदर्शनी के स्थान, समय और दिनांक के बारे में जल्दी ही जानकारी दे दी जाएगी।
इस प्रदर्शनी हेतु ‘टाइगर" बालासा्हेब ठाकरे को लेकर सभी कार्टूनिस्टों द्वारा बनाये गये प्रकाशित/अप्रकाशित ३-४ कर्टून और/या कैरीकेचर आमन्त्रित किये गये हैं। 
आवश्यक विवरण: 
• कागज का आकार आकार: ए३ (२९७X४२० मिमी.) 
• रंगीन (आरजीबी) या श्याम- धवल : ३००- ८०० डीपीआई
• डाक या ई-मेल द्वारा भेजने की अन्तिम तिथि: २५ दिसम्बर, २०१२
• ई-मेल: prabhakarwairkar@rediffmail.com
              wairkarp@gmail.com
• पता -
कार्टूनिस्ट्स’ कम्बाइन, कावेरी, बी/405, वकोला पुल, सांताक्रुज़ पूर्व, मुम्बई-400055
Cartoonists' Combine, Kaveri, B/405, Vakola Bridge, Santacruz East, Mumbai 400055

रविवार, 4 नवंबर 2012

श्रेयस के कार्टून

श्रेयस नवरे की कार्टून प्रदर्शनी
हिन्दुस्तान टाइम्स (मुम्बई) के कार्टूनिस्ट श्रेयस नवरे के विगत ५ सालों में प्रकाशित कार्टून और कैरीकेचरों की प्रदर्शनी मुम्बई में आयोजित की जा रही है। २० से २६ नवम्बर २०१२ तक चलने वाली इस प्रदर्शनी की मेजबानी नेहरू सेंटर फॉर आर्ट गैलरी कर रही है।
श्री और श्रीमती आर.के. लक्ष्मण ने मुख्य अतिथि के रूप में आने और प्रदर्शनी के उद्घाटन के लिए अपनी स्वीकृति दे दी है।
आप सभी कार्टूनप्रेमी और कार्टूनिस्ट परिवार व मित्रों के साथ प्रात: ११.०० बजे, मंगलवार, २० नवम्बर, २०१२ को आमन्त्रित हैं।
• टी.सी. चन्दर


शुक्रवार, 2 नवंबर 2012

सामू नहीं रहे

कार्टूनिस्ट ‘सामू’ नहीं रहे


भारत में पॉकेट कार्टून के जनक माने जाने वाले कार्टूनिस्ट टी सामुएल जो सामू के नाम से नवभारत टाइम्स में पॉकेट कार्टून ‘बाबूजी’ बनाया करते थे, आज सुबह हमारे बीच नहीं रहे। वे अधिक उम्र और स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याओं से ग्रस्त थे।
अन्तिम दर्शन आज सायं ४.०० बजे
Cartoonist Samuel had passed away today morning at Delhi. Antim darshan 4 pm at- C-46 Gulmohar Park, New Delhi 110049/Sudheernatth9968996870
http://cartoonexhibition.blogspot.in/2010/08/blog-post_20.html"

सोमवार, 29 अक्तूबर 2012

कुट्टी स्मरण

दिवंगत कार्टूनिस्‍ट पी.के.एस. कुट्टी को श्रद्धांजलि
राष्‍ट्रपति भवन में एक विशेष समारोह आयोजित
कुट्टी के कार्टूनों का अवलोकन करते प्रणब मुखर्जी 
दिवंगत कार्टूनिस्‍ट पी.के.एस. कुट्टी को श्रद्धांजलि देने के लिए आज राष्‍ट्रपति भवन में आयोजित एक समारोह में राष्‍ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा कि एक कार्टूनिस्‍ट का कार्य एक उपकरण के रूप में हास्‍य का उपयोग करते हुए महत्‍वपूर्ण सामाजिक संदेशों को लोगों तक पहुंचाना है। राष्‍ट्रपति ने कहा कि हास्‍य, जनता और राजनेताओं के तनाव को खत्‍म करता है। उन्‍होंने कहा कि कार्टून जनता को यह याद दिलाता है कि एक शासक भी वही भूल कर सकता है जो एक आम आदमी कर सकता है क्‍योंकि शासक भी तो एक मनुष्‍य है। कार्टूनिस्‍ट हमारे सार्वजनिक जीवन के प्रति दर्पण दिखाने का काम करता है और एक राष्‍ट्र के रूप में हमे अपने
आप को देखने में मदद करता है। उन्‍होंने कहा कि एक देश के रूप में हमें नेहरू के युग की तरफ लौटना चाहिए; एक ऐसी मनोदशा तैयार करना चाहिए जो आलोचना का स्‍वागत करती हो, जहां टिप्‍पणी तो स्‍वतंत्र हो लेकिन तथ्‍यों के साथ छेड़-छाड़ का कोई प्रयास न हो।
दिवंगत कुट्टी को याद करते हुए राष्‍ट्रपति ने कहा कि केरल के एक निवासी के रूप में जो दिल्‍ली में रहे और बंगाली समाचार पत्रों के लिए कार्टून बनाया (हालांकि वे बंगाली नहीं बोल सकते थे), श्री कुट्टी एक उत्‍कृष्‍ट कोटि के भारतीय थे। उनका जीवन और उनके कार्य भाषा या राज्‍य की सीमाओं से परे हैं। राष्‍ट्रपति ने भारत के कार्टूनिस्‍टों से अपने क्षेत्र में बेहतरीन प्रदर्शन करके श्री कुट्टी की याद को जीवित बनाये रखने का आह्वान किया।

इस अवसर पर राष्‍ट्रपति को कार्टूनों के संग्रह वाली एक पुस्‍तक 'कार्टून प्रणाम' प्रस्‍तुत की गई। उन्‍होंने कार्टूनों और व्‍यंग्‍य चित्रों की प्रदर्शनी का भी आनंद उठाया।
केन्‍द्रीय प्रवासी भारतीय कार्य मंत्री श्री व्‍यालार रवि, केरल के मुख्‍यमंत्री श्री ओमान चांडी और देश के जाने-माने कार्टूनिस्‍टों ने इस समारोह में भाग लिया।
नयी दिल्ली, २९ अक्टूबर, २०१२
कार्टूनिस्‍ट का काम हास्‍य की सहायता से महत्‍वपूर्ण सामाजिक संदेश पहुंचाना है- प्रणब मुखर्जी
प्रणब मुखर्जी
राष्‍ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी ने कहा है कि कार्टूनिस्‍ट हास्‍य की सहायता से सामाजिक संदेश प्रेषित करता है। हास-परिहास लोगों के साथ-साथ राजनीतिज्ञों के लिए भी तनाव दूर करने का उपाय है। कार्टून लोगों को यह बताता है कि शासक भी उन्‍हीं की तरह आम मानव और उनमें भी क्षमा योग्‍य दोष हो सकते हैं। श्री प्रणब मुखर्जी ने यह बात आज प्रसिद्ध कार्टूनिस्‍ट स्‍वर्गीय पी.के.एस. कुट्टी को श्रद्धांजलि देने के लिए राष्‍ट्रपति भवन में आयोजित एक समारोह में कही। राष्‍ट्रपति महोदय ने कहा कि वे अपने लम्‍बे सार्वजनिक जीवन में श्री कुट्टी के बनाए कार्टून के निशाने पर रहे, खासतौर पर बांग्‍ला समाचार पत्रों ‘आनंद बाजार पत्रिका’ और ‘आजकल’ में श्री कुट्टी के कार्य के दौरान। राष्‍ट्रपति ने कहा कि कुट्टी जैसे कार्टूनिस्‍टों की तेज-तर्रार प्रतिक्रिया में नए तरह का हास्‍य बोध होता था। श्री कुट्टी और उनके गुरू शंकर ने इसी संस्‍कृति को कार्टूनिस्‍टों की आगे आने वाली पीढि़यों में बढ़ाया। राष्‍ट्रपति ने कहा कि कार्टून हमारे पास ब्रिटिश परम्‍परा के तौर पर आया। 1980 के उत्‍तरार्द्ध तक किसी नेता की पहचान उसके फोटो से ज्‍यादा उसके कैरिकेचर से होती थी। यहां तक कि पुराने नेता अपने बारे में बनाए गए इन हास्‍य चित्रों का संग्रह कर उन्‍हें अपने कार्यस्‍थल पर प्रदर्शित करते थे। उन्‍हें लगता था कि एक लोकप्रिय कार्टून जनता के साथ उनके संपर्क को दर्शाता है। आहत किए बिना निंदा करना, चेहरे के मूल भाव का बिगाड़े बिना हास्‍य चित्र बनाने की योग्‍यता और लम्‍बे चौड़े सम्‍पादकीय में जो बात नहीं कही जा सकती उसे ब्रश के माध्‍यम से व्‍यक्‍त करना कार्टूनिस्‍ट की अद्भुत कला है। कार्टूनिस्‍ट हमारे सार्वजनिक जीवन का दर्पण हमारे सामने रख देता है और एक राष्‍ट्र के तौर पर हमें खुद को देखने की क्षमता प्रदान करता है। हमें एक राष्‍ट्र के रूप में नेहरू युग में लौटना चाहिए, आलोचना का स्‍वागत करने का स्‍वभाव अपने अंदर विकसित करना चाहिए, जहां टिप्‍पणी स्‍वतंत्र हो, लेकिन वास्‍तविकता पावन हो।
राष्‍ट्रपति महोदय ने देश के सांस्‍कृतिक और राजनीतिक इतिहास में श्री कुट्टी के योगदान की प्रशंसा करते हुए कहा कि वे केरल के निवासी थे, जो दिल्‍ली में रहे और बांग्‍ला भाषा न आने के बावजूद उन्‍होंने बांग्‍ला समाचार पत्रों के लिए कार्टून बनाए। वे एक सर्वोत्‍कृष्‍ट भारतीय थे। उनका जीवन और कार्य भाषाई और राज्‍य की सीमाओं में नहीं बंधा था। राष्‍ट्रपति महोदय ने सभी कार्टूनिस्‍टों से अपनी इस कला में उत्‍कृष्‍टता हासिल कर श्री कुट्टी की स्‍मृति को जीवित रखने का आह्वान किया।
कार्यशाला
कार्टूनिस्ट कुट्टी की पुण्यतिथि के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम के एक भाग के रूप में, केरल कार्टून अकादमी और सूचना और सार्वजनिक संबंध विभाग, केरल सरकार, औपचारिक रूप से विविधता कार्यक्रमों की शुरूआत में पहले नई दिल्ली में केरल हाउस, रक्षा मंत्री के सरकारी निवास पर और प्रेस क्लब ऑफ़ इण्डिया में 27 अक्टूबर 2012 को स्मरणोत्सव का पहला चरण शुरू किया गया।
२७ अक्टूबर को अपराह्न ३ बजे कार्टून शिविर केरल हाउस में बड़ी संख्या में जिज्ञासुओं ने वरिष्ट कार्टूनिस्टों से कार्टून कला की बारीकियां और सुझावों को जानने में काफ़ी रुचि दिखायी।
अकादमी के अध्यक्ष प्रसन्नन अनिकाड, काक, बी.एस. बग्गा, गुज्जरप्पा, प्रशान्त कुलकर्णी, आआPrashanth कुलकर्णी, परेशनाथ ए वी,  मनोज चोपड़ा, निशान्त थचरूबलारू, कार्तिक कट्टानारू, जगजीत राणा,  डॉ. रोहनीत फ़ोर,  चंदर, जेम्स मौलोडी,  सुधीर नाथ, अनिल वेगा, अब्बा वजूर, अनूप राधाकृष्णन, रीतिश के.आर., विनीता वासु आदि कार्टूनिस्टों ने वहां बाल-युवा कलाकारों के साथ अपने तमाम अनुभवों को साझा किया।




रविवार, 28 अक्तूबर 2012

बिग-बिग

असीम अपने आन्दोलन की शायद एक और कीमत चुकाएं
रिपब्लिकन पार्टी ऑफ़ इंडिया की धमकी के दबाव में आकर कलर्स चैनल ने कहा है कि वे असीम को इस हफ्ते बिग-बास हाउस से निकाल देंगे। आखिर किस बात का विरोध कर रहे हैं ये राजनैतिक दल?
असीम का व्यवहार बिग-बास के घर में भी बेहद सराहनीय रहा है और वहां रह रहे सभी कंटेस्टेंट असीम का सम्मान करते हैं। भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान नवजोत सिंह सिद्धू ने तो असीम को 24 कैरेट खरा सोना तक कह दिया। पिछले 18 दिनों में असीम ने रियलिटी शो में कोई ऐसा कार्य नहीं किया है जिससे राष्ट्र या किसी विशेष बिरादरी का अपमान होता हो। असीम ने बिग-बास के मंच को अपने आन्दोलन को जनता तक पहुचाने के लिये ही इस्तेमाल किया है। बिग-बास के घर में जाने से पहले ही असीम ने यह स्पष्ट कर दिया था कि वे मनोरंजन करने के इरादे से नहीं बल्कि लोगों के बीच भष्टाचार के खिलाफ एक अलख जगाने के लिये बिग-बास हाउस जा रहे हैं।
कार्टूनिस्ट असीम त्रिवेदी को इससे पहले भी भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ने के लिये परेशान किया जा चुका है। महाराष्ट्र हाईकोर्ट ने पुलिस द्वारा असीम पर देश-द्रोह का मुकदमा लगाए जाने और उन्हे गिरफ्तार करने के लिये सरकार को लताड़ भी लगाई थी। इससे पहले कुछ आपराधिक तत्वों द्वारा असीम को धमकी भरे फोन भी किये गये थे और कहा गया था कि असीम को महाराष्ट्र आने पर गंभीर परिणाम भुगतने होंगे।
• आलोक दीक्षित/फ़ेसबुक

शनिवार, 13 अक्तूबर 2012

असीम

मैं मसखरा नहीं जो लोगों को हंसाऊं
देश का पहला कार्टूनिस्ट कलर्स टीवी चैनल के बिग बॉस में
असीम त्रिवेदी कलर्स टीवी चैनल के चर्चित रियलिटी शो बिग बॉस सीज़न-६ में शामिल होने वाले देश के पहले कार्टूनिस्ट हैं। असीम का मानना है कि वह सबसे पहले एक आम आदमी हैं जो आड़ी-तिरछी रेखाओं से आकृतियां रचकर सच कहने की कोशिश करता है। यह सच कहते रहने की कोशिश बिग बॉस में भी जारी रहेगी। एक कार्टूनिस्ट के रूप में वे हमेशा उद्देश्यपूर्ण ढंग से अपना काम करते रहेंगे। कार्टूनिस्ट असीम का कहना है कि वह कोई मसखरा या जोकर नहीं है जो राह चलते लोगों को मनोरंजन करे। वह बिग बॉस में भी लोगों के भीतर भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ने का जोश भरते रहेंगे।

गुरुवार, 11 अक्तूबर 2012

श्रद्धांजलि

कार्टूनिस्ट कुट्टी की पहली पुण्य तिथि 
सुप्रसिद्ध कार्टूनिस्ट कुट्टी की पहली पुण्य तिथि के अवसर पर उनका स्मरण करने और उन्हें श्रद्धांजलि देने हेतु देश के लगभग हर हिस्से से कार्टूनिस्ट राजधानी दिल्ली आ रहे हैं।
केरल कार्टून अकादमी द्वारा आयोजित किये जा रहे इस विशेष कार्यक्रम में माननीय राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी कार्टूनिस्ट कुट्टी को श्रद्धांजलि देते हुए सम्बोधित करेंगे। उल्लेखनीय है कि वे स्वयं कार्टूनिस्ट कुट्टी और उनके बनाए कार्टूनों के प्रशंसक रहे हैं। विशेष बात यह है कि कुट्टी साहब बंगला भाषा नहीं जानते थे लेकिन बंगला में छपने वाले दैनिक अखबार के लिए नियमित कार्टून बनाते थे। उनकी कार्टून कला के प्रशंसक अनगिनत हैं।
राष्ट्रपति भवन में २९ अक्टूबर, २०१२ को आयोजित होने वाले इस कार्यक्रम में श्री प्रणब मुखर्जी को १११ कार्टूनिस्टों द्वारा बनाये गये उनके कार्टून-कैरीकेचर एक पुस्तक के रूप में भैंट किये जाएंगे। इस कार्टून-कैरीकेचर संकलन में कार्टूनिस्ट कुट्टी के कुछ कार्टून विशेष रूप से शामिल किए जाएंगे।
राजधानी के रायसीना रोड स्थित प्रेस क्लब परिसर में २७ से २९ अक्टूबर, २०१२ तक कुट्टी के कार्टूनों की विशेष प्रदर्शनी भी आयोजित की जा रही है।
• कार्टूनिस्ट चन्दर

सोमवार, 1 अक्तूबर 2012

कार्टून प्रदर्शनी





एसडी फड़नीस के कार्टूनों की प्रदर्शनी बंगलोर में 
देश-दुनिया के जानेमाने वरिष्ट कार्टूनिस्ट श्री एसडी फड़नीस के कार्टूनों की एक प्रदर्शनी  'फड़नीस के साथ हंसी' (लाफ़ विद फ़ड़नीस) इण्डियन इण्स्टीट्यूट ऑफ़ कार्टूनिस्ट्स (आईआईसी) द्वारा बंगलोर में आयोजित की जा रही है। आप सभी कार्टूनिस्ट और कार्टून प्रेमी सादर आमन्त्रित हैं।
दिनांक 1 से 13 अक्टूबर, 2012 को (रविवार अवकाश)
•  इण्डियन इण्स्टीट्यूट ऑफ़ कार्टूनिस्ट्स,
नं. १, मिडफ़ोर्ड हाउस, मिडफ़ोर्द गार्डन, ऑफ़ एमजी रोड, बंगलोर- ५६०००१ (कर्नाटक), भारत  Iफ़ोन +९१ ८० ४१७५८५४०, ९९८००९१४२८  ई-मेल-   e-mail: info@cartoonistsindia.com   वेबसाइट- www.cartoonistsindia.com
कार्टूनिस्ट एसडी फड़नीस 
भाषा, क्षेत्र या वर्ग की सीमाओं से परे कार्टूनिस्ट फड़नीस के मूक कार्टून घर-बाहर की रोजमर्रा की जिंदगी में हास्य खोज लाने में सक्षम हैं। वास्तविक चित्रण का आभास देने वाला उनका चित्रण सचमुच अनूठा और आनन्ददायक है।
एसडी फड़नीस के रूप में लोकप्रिय शिवराम दत्तात्रेय फड़नीस 29 जुलाई, 1925 को भोज, जिला बेलगाम में पैदा हुए थे। सर जे.जे.इंस्टीट्यूट ऑफ एप्लाइड आर्ट, मुम्बई में उन्होंने अपनी औपचारिक कला शिक्षा प्राप्त की। वे भारत के एक जानेमाने कार्टूनिस्ट इलस्ट्रेटर है। उनके मूक कार्टून देश-दुनिया और भाषा की बाधाओं से परे हैं और बिना भेदभाव के सभी कार्टून प्रेमियों को आनन्द और प्रेरणा देने वाले हैं।
भाषा, क्षेत्र या वर्ग की सीमाओं से परे उनके मूक कार्टून घर-बाहर की रोजमर्रा की जिंदगी में हास्य खोज लाने में सक्षम हैं। वस्तविक चित्रण का आभास देने वाला उनका चित्रण सचमुच अनूठा और आनन्ददायक है।
उनके कार्य की प्रस्तुति ‘लाफ़िंग गैलरी’ दुनिया भर में 20 शहरों में 40 से अधिक वर्षों बड्मेंची उत्सुकता और रुचि के साथ देखी गयी है। 

कलाकार फ़डनीस के मूल बहुरंगी कार्टून इन प्रदर्शनियों में प्रदर्शित किये गये हैं। इन वर्षों में ‘लाफ़िंग गैलरी’ हास्य के साथ एक किंवदंती बन गयी है और आगंतुकों ने इसे बहुत पसन्द किया है। ‘लाफ़िंग गैलरी’ भारत में पुणे, मुंबई, नयी दिल्ली, बंगलौर, हैदराबाद और विदेशों में न्यूयॉर्क तथा लंदन आदि में प्रदर्शित की गयी है।
‘चित्रहास’ शो के माध्यम से फ़ड़नीस वहां उपस्थित दर्शकों को कार्टून बनाने की प्रक्रिया समझाते रहे हैं। ९० मिनट के इस कार्यक्रम में वे काफ़ी कार्टून बनाते है। कार्टून प्रेमियों को भलीभांति समझाने के लिए वे अपने कार्टूनों का रंगीन स्लाइड शो भी कार्यक्रम में शामिल करते हैं। 
जहां ‘चित्रहास’ दुनिया भर में अनेक महानगरों में प्रस्तुत किया गया है, वहीं भारत के छोटे-बड़े शहरों मे भी प्रस्तुत किया गया है। क्लब और सांस्कृतिक संगठनों के लिए यह शो प्रस्तुत कराना काफ़ी पसन्द आया क्योंकि इसमें दृश्य-श्रव्य (ऑडियो-विज़ुअल) उपकरण और अन्य आवश्यक सामग्री की व्यवस्था खुद फ़ड़नीस की ओर से रहती थी जो उन्हें बहुत सुविधाजनक लगता था।
फड़नीस ने1952 के बाद से हर साल के लिए मराठी पत्रिका ‘मोहिनी’ के दीवाली विशेषाकों के कवर का डिजाइन किया है। उन्हें ‘इण्डियन इण्स्टीट्यूट ऑफ़ कार्टूनिस्ट्स’ द्वारा जून 2001 में 'लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड' से सम्मानित किया गया।
उनके अनेक कार्टून मॉन्ट्रियल इंटरनेशनल सैलून द्वारा प्रकाशित और प्रदर्शित किये गये हैं। वे फ्रेंकफर्ट पुस्तक मेले में ‘भारतीय कार्टून’ प्रदर्शनी में शामिल होने के लिए निमन्त्रित किये गये थे। उनके अनेककार्टून अमरीका और जर्मनी की पत्र-पत्रिकाओं में प्रकशितहो चुके हैं।
उन्होंने शकुंतला से शादी की है और उनकी दो पुत्रियां हैं। वे पुणे में रहते है।

1951: ‘हंस’ पत्रिका पर पहला हास्य आवरण।
1952: ‘मोहिनी’ पत्रिका के दीवाली विशेषांक का पहला विनोदी आवरण।
1954: कमर्शियल आर्टिस्ट्स’ गिल्ड (सीएजी), मुम्बई द्वारा आउटस्टेण्डिंग एडीटोतियल अवार्ड प्रदान किया गया। 
1965: जहांगीर आर्ट गैलरी, मुंबई में उनके मूल रंगीन कार्य की पहली प्रदर्शनी आयोजित।
1966: नयी दिल्ली में आयोजित ‘लाफ़िंग गैलरी’ का पूर्व भारतीय राष्ट्रपति जाकिर हुसैन द्वारा उद्घाटन किया.
1970: उनके चुने हुए कार्टूनों की पहली पुस्तक प्रकाशित।
1987: विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के राष्ट्रीय टेलीविजन पर एसडी 'फड़नीस के कार्यक्रम प्रसारित।
1997: ‘चित्रहास’ और ‘लाफ़िंग गैलरी’ की अमरीका और बिटेन की यात्रा। 
2000: सु. ला  गडरे मातोश्री पुरस्कार, मुम्बई।
2000: मार्मिक पुरस्कार, मुंबई।
2000: रवि परांजपे फाउंडेशन पुरस्कार, पुणे।

2001: इण्डियन इण्स्टीटुट ऑफ़ कार्टूनिस्ट्स , बंगलौर द्वारा लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड।
2006: फ्रैंकफर्ट विश्व पुस्तक मेले में प्रदर्शनी 'भारत से कार्टून' में आमंत्रित भागीदार।
2011: टीवी चैनल आईबीएन लोकमत 'ग्रेट भैंट' श्रृंखला में साक्षात्कार (चित्रों के साथ)।
2011: ‘हंस’ प्रकाशन द्वारा पहला हंस पुरस्कार।
2011: 'जीवन गौरव पुरस्कार' इंटरनेशनल लॉजेविटी सेण्टर, भारत द्वारा।
2012: एसडी फड़नीस द्वारा लिखित पुस्तक ‘रेशतान’ (Reshatan) के लिए 'महाराष्ट्र साहित्य परिषद पुरस्कार'।
• टी.सी. चन्दर

रविवार, 30 सितंबर 2012

परहेज

अखबार और कार्टून
















मुद्दे की बात यह है कि हर अखबार-पत्रिका में एकाधिक कार्टून अनिवार्य रूप से छपने चाहिए। इसके लिए एक सजग पाठक और कार्टून प्रेमी होने के नाते के नाते आप जो अखबार लेते हैं उसे नियमित रूप से अलग-अलग कार्टूनिस्टों के बनाए अधिक कार्टून छापने के लिए पत्र लिखें, ई-मेल करें... लिखते रहें,करते रहें।

आज का अखबार देखा। कई बार सोचा कि विज्ञापन और पठनीय (?) सामग्री का अनुपात देखा जाए। २ रुपये से ४.५० रुपये में बदले हुए दिल्ली के दैनिक हिन्दुस्तान में आज २०+४ (मूवी मैज़िक- कुछ छोटे आकार के पृष्ठ)+१० (सर्च इंजन- वर्गीकृत/डिस्प्ले विज्ञापन)=३४ पृष्ठ हैं। कुल मुद्रित क्षेत्र (प्रिण्ट एरिया) है- लगभग ५६६८९२ वर्ग सेमी.। इसमें विज्ञापन ३३४७७.७ वर्ग सेमी क्षेत्र में छपे हैं, जब कि पठनीय (?) सामग्री २३२११.५ वर्ग सेमी. छपी है। इस तरह अखबार में लगभग ५९.०५ % विज्ञापन हैं और ४०.९५% सामग्री। यह सिर्फ़ एक अखबार के एक संस्करण की तस्वीर है।

पूरे अखबार में सम्पादकीय पृष्ठ पर एक कार्टून है। पहले पन्ने का पॉकेट कार्टून बन्द कर दिया गया है। भीतर एक कार्टून छपता है छपता है जो प्राय: गायब रहता है। फ़िल्म-टीवी और ऐसी ही तमाम सामग्री आवश्यक रूप से मौजूद रहती है- पाठकों की रुचि के नाम पर। रविवारीय अंक का पहले इन्तज़ार रहता थ, उसे प्राय: संजोकर रखा जाता था। और अब, रविवार को मैं सबसे पहले अपने अखबार के परिशिष्ट ‘मूवीमैज़िक’ को अखबार से निकालकर दूर रख देता हूं। एक पाठक के नाते मैं ऐसा कर सकता हूं।

क्या साधन सम्पन्न इस अखबार में देश के कुछ कार्टूनिस्टों के गैर राजनीतिक यानी पारिवारिक सामाजिक नहीं छापे जा सकते! कमोवेश यही हाल देश के अन्य छोटे-बड़े अखबारों का भी है। सभी ‘पाठकों की पसन्द’ की सामग्री छाप रहे हैं और पता नहीं इन्हें पाठकों की पसन्द पता कैसे चलती है?

मुद्दे की बात यह है कि हर अखबार-पत्रिका में एकाधिक कार्टून अनिवार्य रूप से छपने चाहिए। इसके लिए एक सजग पाठक और कार्टून प्रेमी होने के नाते के नाते आप जो अखबार लेते हैं उसे नियमित रूप से अलग-अलग कार्टूनिस्टों के बनाए अधिक कार्टून छापने के लिए पत्र लिखें, ई-मेल करें... लिखते रहें,करते रहें।

हो सकता है आपको लगे मैं स्वार्थी हूं और मैं अपनी बात थोप रहा हूं। बिल्कुल, मैं स्वार्थी हूं- कार्टून, कार्टून कला और कार्टूनिस्टों के हित में (इनमें मैं भी शामिल हूं) मुझे यह भी स्वीकार है! आप साथ हैं तो आप और हम मिलकर स्थिति बदल सकते हैं।

(ऊपर दिए आंकड़े अनुमानित हैं इन्हें मानक न मानें- बस थोड़ी जानकारी साझा करने के लिए सिर खपाई की गयी है।)

• कार्टूनिस्ट चन्दर

शिकायत बोल
कार्टून न्यूज़ हिन्दी

शनिवार, 29 सितंबर 2012

कार्टून प्रतियोगिता

जलवायु परिवर्तन और हिमालय
युवाओं के लिए विशेष कार्टून प्रतियोगिता
‘जलवायु परिवर्तन और हिमालय’ विषय पर १८-३५ वर्ष आयु वर्ग के लिए एक कार्टून प्रतियोगिता का आयोजन किया गया है।
हर प्रविष्टि के साथ प्रतिभागी की आयु का प्रमाण पत्र, डाक का पूरा पता और फ़ोन नम्बर अवश्य होना चाहिए।  ‘जलवायु परिवर्तन और हिमालय’ विषय पर भेजी जाने वाली प्रविष्टि मूल रूप में भेजी जानी चाहिए और वह ए-३ आकार यानी २९.७x४२ सेमी. (ए-४ आकार- २९.७x२१ सेमी. का दुगुना) में होनी चाहिए। 
प्रविष्टि भेजने की अन्तिम तिथि- २५ अक्टूबर, २०१२
परिणाम- १ नवम्बर, २०१२
प्रविष्टियां इस पते पर भेजें-
The Organizing Secretary, Climate Change Informatics, CSIR-NISCAIR, Dr. K.S. Krishnan Marg, New Delhi-110012

गुरुवार, 27 सितंबर 2012

श्रद्धांजलि

कार्टूनिस्ट डॉ. सतीश श्रृंगेरी  का निधन
लोकप्रिय कन्नड़ कार्टूनिस्ट और आयुर्वेद चिकित्सक सतीश श्रृंगेरी का आज सुबह (२७ सितम्बर, २०१२ को) फ़ेंफ़ड़ों से जुड़ी संक्षिप्त बीमारी के बाद निधन हो गया। उनकी आयु केवल ४४ वर्ष थी। कला-कार्टूनकला में उनकी बचपन से ही रुचि रही। अभिनव रामानन्द हाई स्कूल (किग्गा), जो श्रंगेरी के निकट एक दूरस्थ गांव है, में पढ़ाई के दौरान उन्होंने ड्रॉइंग का खूब अभ्यास किया और बहुत से कार्टून-कैरीकेचर बनाए। उन्होंने कार्टून कला सिखाने के लिए भी प्रयास किया। वह श्री जगद्गुरु चंद्रशेखर भारती मेमोरियल कॉलेज, श्रृंगेरी, और एएलएन राव मेमोरियल आयुर्वेद कॉलेज, गडग में कॉलेज के दिनों के दौरान भी उन्होंने अपना जुनून जारी रखा। आयुर्वेद चिकित्सा में स्नातकोत्तर डॉ. सतीश ने स्वतन्त्र रूप से चिकित्सा कार्य शुरू करने से पहले कुछ समय एक शिक्षक के रूप में कार्य किया और एक दवा कंपनी के साथ एक वैज्ञानिक के रूप में भी उन्होंने काम किया। कर्नाटक के कन्नड़ दैनिक समाचार पत्र दैनिक ‘संयुक्त कर्नाटक’ के लिए डॉ. सतीश ने व्यंग्य और हास्य से सराबोर नियमित रूप से कार्टून बनाये। उन्होंने अपने बनाये कार्टूनों की प्रदर्शनी भी आयोजित की। उनके परिवार में माता, पिता, पत्नी, एक बेटा, एक भी और एक बहिन हैं। उनके व्यवहार और उनके काम को सदा याद रखा जाएगा। कार्टून न्यूज़ हिन्दी, केरल कार्टून अकादमी और इनसे सम्बद्ध कार्टूनिस्टों को उनके असामयिक निधन से बहुत दु:ख हुआ है। ईश्वर से प्रार्थना है कि वह उनकी आत्मा को शान्ति प्रदान करे और सभी परिजन-मित्रों को यह दु:ख सहने की सामर्थ्य दे!
 टी.सी. चन्दर
डॉ. सतीश का कार्य देखने हेतु लिन्क पर क्लिक करें-
श्रृंगेरी कार्टून्स   कैरीकेचर इण्डिया   फ़ेसबुक
Shraddhanjali Dr DrSatish Sringeri 
Shocked to hear about the death of popular Kannada cartoonist Dr.Satish Sringeri, from his brother Raghupathi Sringeri. He was 44 and died due to lungs disease. In spite of his busy medical practice, he continued his love for cartooning art by drawing for Kannada dailies and magazines. We'll badly miss his cartoon pills.
कार्टूनिस्ट सतीश आचार्य/फ़ेसबुक में

मंगलवार, 18 सितंबर 2012

आमन्त्रण

कार्टून/कैरीकेचर
प्रणब कार्टून व कैरीकेचर
प्रिय कार्टूनिस्ट बन्धु,
राजधानी दिल्ली में केरल कार्टून अकादमी द्वारा अक्टूबर, २०१२ में सुप्रसिद्ध कार्टूनिस्ट कुट्टी की प्रथम पुण्य तिथि के अवसर पर उन्हें स्मरण करने हेतु एक विशेष कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है। इस कार्यक्रम में  आने के लिए देश के माननीय राष्ट्रपति श्री प्रणब कुमार मुखर्जी ने अपनी स्वीकृति प्रदान कर दी है। 
दो बरस पहले प्रधान मन्त्री श्री मनमोहन सिंह को भारतीय व विदेशी कार्टूनिस्टों द्वारा उन पर बनाये गये कैरीकेचर और कार्टूनों का संकलन भैंट किया गया था। इसी प्रकार भारत के प्रथम नागरिक को भी कार्टून अकादमी की ओर से पुस्तक के रूप में  कार्टून-कैरीकेचर का एक विशेष संकलन भैंट किये जाने का निर्णय लिया गया है। 
इस विशेष संकलन हेतु कृपया श्री प्रणब कुमार मुखर्जी को लेकर अपना बनाया हुआ कार्टून/कैरीकेचर (बड़े आकार व ३०० डीपीआई में) ३० सितम्बर, २०१२ तक अपने ताज़ा फ़ोटो और सम्पर्क विवरण के साथ अवश्य भेज दें। 
डाक व ई-मेल पता है- 
cartoonacademy@gmail.com
• SUDHEERNATH, (Cartoonist), 125, Bagbhan Apartment, GH/2, Sector-28, Rohini, Delhi - 110 042 
PRANAB CARICATURES and CARTOONS
श्री प्रणब मुखर्जी से मिले राजधानी के कार्टूनिस्ट (१ सितम्बर, २०१२)


रविवार, 9 सितंबर 2012

असीम गिरफ़्तार

समरथ कौ नहीं दोस गुसाईं... 
Cartoonist Aseem Trivedi arrested in Mumbai.

रविवार, 2 सितंबर 2012

कार्टूनिस्ट

राष्ट्रपति से मिले राजधानी के कार्टूनिस्ट
राजधानी के कार्टूनिस्टों के एक प्रतिनिधिमंडल ने केरल कार्टून अकादमी के कार्यक्रम समन्वयक के नेत्रत्व में  भारत के राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी से राष्ट्रभवन में आज (०१/०९/२०१२) भैंट की। अधिकांश कार्टूनिस्टों ने राष्ट्रपति को अपने द्वारा बनाये कैरीकेचर-कार्टून भैंट किये। अपने ऊपर बने तरह-तरह कार्टून-कैरीकेचर देखकार कई बार उनके चेहरे पर अनायास ही मुस्कान आ गयी।
केरल कार्टून अकादमी ने स्वर्गीय कार्टूनिस्ट की पहली पुण्यतिथि (२२ अक्टूबर, २०१२) के अवसर पर उनके स्मरण का कार्यक्रम बनाया है जिसके अक्टूबर, 2012 के अंतिम सप्ताह में दिल्ली में आयोजित होने की आशा है।  इस कार्यक्रम में आने के लिए उन्हें आमन्त्रित किया गया। कार्टूनिस्ट कुट्टी को लेकर आयोजित होने वाले इस कार्यक्रम में शामिल होने के वे इच्छुक हैं।
मलयालम भाषी केपीएस कुट्टी केरल निवासी थे और उनके कार्टून बंग्ला अखबार में छपते थे। उन्हें बंला भाषा नहीं आती थी और अखबार मालिक मलयाम नहीं जानते थे। आपको याद होगा आनन्द बाज़ार पत्रिका समूह की चर्चित साप्ताहिक हिदी पत्रिका `रविवार' के अन्तिम पृष्ठ पर ‘कुट्टी का कार्टून’ छपता था जिसे तमाम पाठक सबसे पहले देखा करते थे। उन्होंने लगभग सात दशक जो कार्टून बनाए उनमें से कई कार्टूनों के पात्र वर्तमान राष्ट्रपति भी बने। ९० साल की आयु में अमरीका में उनकागत वर्ष निधन हो गया था।
केरल कार्टून अकादमी के पूर्व सचिव और अभी कार्यक्रम समन्वयक कार्टूनिस्ट सुधीर नाथ के नेतृत्व में राष्ट्रपति से मिलने गये कार्टूनिस्टों के इस प्रतिनिधि मण्डल में वरिष्ठ कार्टूनिस्ट काक (प्रभासाक्षी), जयन्तो बनर्जी (हिन्दुस्तान टाइम्स), श्यामल बनर्जी (मिण्ट), चन्दर (कार्टूनपन्ना), जगजीत राणा (दै. जागरण), रोहनीत फ़ोर (इण्डियन एक्सप्रेस), सजीत कुमार (डेक्कन क्रॉनीकल), प्रसान्थ (भारतीय वर्तमान), शिजू जॉर्ज (स्वतन्त्र), मनोज कुरील (स्वतन्त्र) और सत्य गोविन्द (स्वतन्त्र) शामिल थे।
देखें- केरल कार्टून अकादमी   केरल कार्टून अकादमी   कार्टूनपन्ना  



गुरुवार, 30 अगस्त 2012

राजधानी दिल्ली के कार्टूनिस्टों के लिए सूचना

प्रिय कार्टूनिस्ट बन्धु,
केरल कार्टून अकादमी ने भारत के माननीय राष्ट्रपति श्री प्रणव मुखर्जी से राष्ट्रपति  भवन में जाकर भैंट का कार्यक्रम तय किया है। भैंटकर्त्ताओं में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में कार्य़्ररत/रह रहे कार्टूनिस्ट होंगे।
यह कार्यक्रम दिनांक १ सितम्बर, २०१२ (शनिवार), अपराह्न ११.४५ बजे का तय हुआ है। आप  माननीय राष्ट्रपति से मिलने को सहमत हैं तो यह सन्देश मिलते ही कृपया सहमतिके साथ अपने बारे में संक्षिप्त विवरण ( पूरा नाम, पूरा पता,  समाचार पत्र/पत्रिका/वेबसाइट का नाम, फ़ोन नम्बर, ई-मेल, ब्लॉग/वेबसाइट लिन्क आदि) भेज दें।
यह भैंट कार्यक्रम दो कारणों से तय किया गया है - नवनिर्वाचित राष्ट्रपति महोदय से भैंट कर उनका अभिनन्दन और सुप्रसिद्ध कार्टूनिस्ट कुट्टी की प्रथम     पुण्य तिथि पर उनका स्मरण।
कृपया देर न करें। मेरी हार्दिक अभिलाषा है कि आप चलें। जानकारी के आदान-प्रदान के लिए फ़ोन और ई-मेल का उपयोग किया जा सकता है।
देखें-
कार्टून न्यूज़  हिन्दी Cartoon News Hindi-
केरल कार्टून अकादमी Kerala Cartoon Academy
फ़ेसबुक Facebook
आपका साथी
कार्टूनिस्ट चन्दर
९८९१०८४७०७
9891084707
ई-मेल- tcchander@gmail.com  cartoonistchander@gmail.com

शनिवार, 23 जून 2012

ई-कार्टून बुक

काक के कार्टूनों की ई-बुक इंटरनेट पर उपलब्ध
प्रसिद्ध हिंदी कार्टूनिस्ट ‘काक‘ के बनाए कार्टूनों की ई-पुस्तकें अमेजॉन.कॉम के जरिए इंटरनेट पर उपलब्ध कराई गई हैं। इन्हें ‘किंडल‘ नामक ई-बुक रीडर के साथ-साथ दूसरे ई-रीडर्स, टैबलेट और डेस्कटॉप कंप्यूटरों पर पढ़ा जा सकता है।
इस समय प्रभासाक्षी के व्यंग्य चित्रकार ‘काक‘ (पूरा नाम हरिश्चंद्र शुक्ला ‘काक‘), पिछले चालीस साल से हिंदी के प्रमुख अखबारों के साथ जुड़े रहे हैं और इस दौरान उन्होंने राजनैतिक, सामाजिक क्षेत्रों पर अपनी तीखी, भदेस टिप्पणियों से कार्टून विधा के क्षेत्र में अपनी अलग जगह बनायी है। 
अमेजॉन के ‘किंडल स्टोर‘ पर उपलब्ध उनके कार्टून न सिर्फ अपनी तीखी और चुटीली टिप्पणियों के जरिए पाठकों का मनोरंजन करते हैं बल्कि भारतीय राजनीति तथा समाज की महत्वपूर्ण घटनाओं का डॉक्यूमेंटेशन भी  करते हैं। 
‘काक‘ की तरफ से पेश ई-बुक्स फिलहाल चार खंडों में उपलब्ध हैं। इन्हें उनके पुत्र तुषित शुक्ला ने संपादित कर पेश किया है। इन ई-बुक्स में ‘काक‘ के कार्टूनों के अंग्रेजी अनुवाद भी पढ़े जा सकते हैं ताकि अहिंदी भाषी पाठक भी उनका आनंद ले सकें।
‘काक‘ के कार्टूनों की खास बात है उनकी बेलाग टिप्पणियां, जो देसी भाषा और जमीनी अनुभवों से जुड़ी है। उनके पात्र समाज के पीड़ित, शोषित तबकों के लोग हैं और जब वे अपने आसपास की राजनैतिक-सामाजिक विषमताओं पर टिप्पणियां करते हैं तो उनका आक्रोश अनायास ही पाठक के मन को छू लेता है। जीवन के सातवें दशक में भी वे जिस तरह आधुनिक तकनीक के साथ तालमेल बिठाने में सफल रहे हैं, उसमें हिंदी के अन्य रचनाकर्मियों के लिए प्रेरणा सन्देश छिपा हुआ है।
‘काक‘ की लिखी ई-बुक्स यहां पर उपलब्ध हैं।
लिंक: http://www.amazon.com ( search books- kaaktoons series )
प्रस्तुति: कार्टूनिस्ट चन्दर

सोमवार, 14 मई 2012

कार्टून विरोध

कार्टून और कार्टूनिस्टों का विरोध
साहित्य की तरह कार्टून भी समाज का दर्पण है। उससे डरना क्या, दर्पण तो वही दिखाएगा जो उसके सामने है! अच्छ यही है भद्रजनो, करने वाले काम कीजिए, वह मत कीजिए जो आपकी और इस पवित्र इमारत के सम्मान के अनुकूल नहीं। करना ही है तो इस देश का नाम सिर्फ़ भारत कर दो जो अभी तक ‘इण्डिया’ का अनुवाद बना हुआ है। गुलाम रहे देशों में उच्चायोग की जगह अपने देश का दूतावास बनाओ। इस देश की राष्ट्रभाषा हिन्दी का सभी जगह सम्मान हो, ऐसी व्यवस्था कर दो। देश और देशवासियों के हित में अनेक काम किये जा सकते हैं, उन्हें करने में अपनी ऊर्जा लगाइए। कार्टून और कार्टूनिस्टों के पीछे पड़ने से क्या हासिल होगा- कुछ और नये (अप्रिय) कार्टून!
सन् १९४९ में कार्टूनिस्ट शंकर द्वारा बनाया गया कार्टून


‘कार्टून’ से डरना और उनको लेकर विवाद खड़े करना कोई नयी बात नहीं है। ऐसा कई बार हुआ है। ताज़ा मामला अम्बेडकर और नेहरू के कार्टून को लेकर सामने आया है। हाल ही में इस कार्टून पर सांसदों ने संसद में अपना क्रोध व्यक्त किया। पहले से ही विवादों में घिरे मानव संसाधन विकास मन्त्री कपिल सिब्बल का इस मामले में इस्तीफ़ा भी मांग लिया गया। कॉंग्रेसी सांसद पी.एल. पुनिया ने कहा कि वे अपने पद से त्याग पत्र दें या देश से माफ़ी मांगें। यह भी मांग उठी कि सभी सम्बधित अधिकारियों को उनके पद से हटा दिया जाए। सभी के एक सुर होने का लगभग एक ही अर्थ था। इसे भेड़चाल या भीड़चाल  कहा जा सकता है।

उल्लेखनीय है कि आज विवादास्पद बना दिया गया यह कार्टून २८ अगस्त, १९४९ को विश्व प्रसिद्ध कार्टूनिस्ट शंकर पिल्लई (1902--1989) ने बनाया था। तब जवाहर लाल नेहरू देश के प्रधान मन्त्री थे। उन्होंने शंकर से कह रखा था कि उन्हें मित्र होने के नाते भी कार्टून बनाने में बख्शा नहीं जाए। कार्टूनिस्ट शंकर उनके प्रिय मित्र थे। इस कार्टून पर न नेहरू ने और न ही किसी अन्य व्यक्ति ने बीते ६३ सालों में कभी कोई आपत्ति की। अब अचानक कुछ लोगों को यह लगा कि यह कार्टून दलित विरोधी है। यानी इस कार्टून से अम्बेडकर और दलितों का अपमान हो रहा है या लोगों की भावनाएं आहत हो रही हैं। ऐसे कार्टून को एनसीईआरटी की सम्बन्धित पुस्तक से अविलम्ब हटा दिया जाना चाहिए। कार्टून विवाद के चलते एनसीईआरटी की पुस्तक प्रकाशन वाली समिति के सलाहकार योगेन्द्र यादव और सुहास पल्सीकर ने विरोधस्वरूप समिति से त्याग पत्र दे दिया।

किसी पुस्तक को एनसीईआरटी के पाठ्यक्रम में ऐसे ही शामिल नहीं कर लिया जाता है। अनेक जानकार और विद्वान लोग उसे ध्यान से देखते-पढ़ते हैं। इन लोगों के चयन पर ‘दलित विरोधी’ होने का आरोप लगाना ही गलत है। इनमें दलित अधिकारों के समर्थक और उनके लिए लड़ने वाले लोग शामिल हैं। दूसरी ओर हमारे ‘माननीय’ विद्वान सांसदों का कहना है कि कार्टून प्रकशन के जिम्मेदार लोगों को पदमुक्त किया जाए। उन लोगों को यह कार्टून समझने और अपने ढंग से उसकी व्याख्या करने में ही  कई साल लग गए। इसके आगे कहने को कुछ बचता है क्या?

हमारे यहां अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता को लेकर विवाद-बहसें चलती रहती हैं। समर्थ, सम्पन्न और सत्ताधारी लोग लगभग हर चीज को अपने पक्ष में और अपने ढंग से रखना-चलाना चाहते हैं। ऊपर से विश्व के सबसे बड़े लोकतन्त्र होने का ढोंग भी ओढ़े रखना चाहते हैं। सहिष्णुता सिमटती जा रही है। स्वस्थ दृष्टिकोण मैला होता जा रहा है। हर चीज अपनी पसन्द की होनी चाहिए। हर काम अपने पक्ष में होना चाहिए। हर फ़ैसला अपने पाले में होना चाहिए। अपनी पसन्द से उलट जरा कुछ इधर-उधर हुआ नहीं कि भड़क गये। इसके अलावा अपनी दुकानदारी चलाये रखने के लिए भी भाई लोगों के उर्वर मस्तिष्क में नाना प्रकार के विचार आते रहते हैं। कई विचारों पर अमल करना खतरनाक भी हो सकता हैं। पर इससे उन्हें क्या, भुगतेंगे तो और लोग ही!

उत्तर प्रदेश में लोगों के गाढ़े पसीने की कमाई के करोड़ों रुपयों को एक ‘मूर्ति सनक’ के चलते बरबाद कर देने पर किसी की भावनाएं आहत नहीं हुईं। हमारे माननीय अपनी सुख-सुविधाओं-निवास नवीनीकरण पर मोटी राशि बरबाद कर देते हैं तब कोई चूं नहीं करता। विश्व के तमाम देशों से इलाज कराने लोग भारत आ रहे हैं और हमारे माननीय और महारानी छींक आते ही विदेश उड़ जाते हैं। स्विस बैकों में जमा धन और भ्रष्टाचार के मामले में जमुहाई आने लगती है। कितने लोग घपले-घोटाले करके अपने आसनों पर कुटिल मुस्कान के साथ विराजमान हैं। जिनकी बीड़ी खरीदने की औकात नहीं थी वे अब अरबों के मालिक हैं, रोजाना के शाही खर्च तो किसी गिनती में ही नहीं आते। देशभर में उपजाऊ और गैर उपजाऊ जमीनें खरीदकर या कब्जाकर किसने रखी हुई हैं। वगैरह। बाबू-इंसपैक्टर जैसी छोटी मछलियों के घर छापे में ही करोड़ों मिल रहे हैं फ़िर माहिर और सक्षम मगरमच्छों की बात ही कुछ और है। ऐसी तमाम बातें है जिनसे बेचारी भावनाएं आहत होने से प्राय: बच निकलती हैं। सार की बात यह है कि विषयान्तर होते हुए भी मुझे यह कहने में कोई झिझक नहीं कि करने को तमाम काम हैं, उन पर ध्यान केन्द्रित करने में मन लगाओ भाई!

कार्टूनिस्ट चन्दर
इस कार्टून मुद्दे पर अभी तक किसी बड़े नेता ने किसी को समझाने का या वास्तविकता को सामने रखने का गम्भीर प्रयास नहीं किया। सभी छोटे-बड़े मगन हैं- जो हो रहा है होने दो। कार्टून दलित विरोधी है। बिल्कुल है। इससे अम्बेडकर और दलितों का अपमान होता है। होता है। कार्टून हटाना है, हटा देंगे। हमको डराओ तो, हम डर जाएंगे! वाह!! कितनी बहादुरी है सबसे बड़े लोकतन्त्र में जहां हर तरफ़ अभिव्यक्ति की पूरी स्वतन्त्रता है। कार्टून पसन्द नहीं, रोक लगा दो। वेबसाइट पसन्द नहीं। बन्द कर दो। कोई अप्रिय बात कहे- मुंह तोड़ दो! कभी अपने भीतर झांकने की हिम्मत दिखाई क्या! अरे विरोध करना है तो अपने उन साथियों का करो आपके बगल में बैठने लायक नहीं हैं। चुनाव के समय अनुपयुक्त और अयोग्य लोगों को टिकट देने का विरोध करो।

साहित्य की तरह कार्टून भी का दर्पण है। उससे डरना क्या, दर्पण तो वही दिखाएगा जो उसके सामने है! अच्छ यही है भद्रजनो, करने वाले काम कीजिए, वह मत कीजिए जो आपकी और इस पवित्र इमारत के सम्मान के अनुकूल नहीं। करना ही है तो इस देश का नाम सिर्फ़ भारत कर दो जो अभी तक ‘इण्डिया’ का अनुवाद बना हुआ है। गुलाम रहे देशों में उच्चायोग की जगह अपने देश का दूतावास बनाओ। इस देश की राष्ट्रभाषा हिन्दी का सभी जगह सम्मान हो, ऐसी व्यवस्था कर दो। देश और देशवासियों के हित में अनेक काम किये जा सकते हैं, उन्हें करने में अपनी ऊर्जा लगाइए। कार्टून और कार्टूनिस्टों के पीछे पड़ने से क्या हासिल होगा- कुछ और नये (अप्रिय) कार्टून!
कार्टूनिस्ट चन्दर
क्लिक करें और देखें- कार्टून न्यूज़ हिन्दी

कार्टून-कार्टून

मन्दबुद्धिपना
साठ साल से भी अधिक समय पहले कार्टूनिस्ट शंकर द्वारा बनाया गया कार्टून जिस पर न नेहरू को कभी आपत्ति हुई और न ही अम्बेडकर को। यह कार्टून सन्  २००६ से पुस्तक में है पर अब यह समझ में आया कि इस पर आपत्ति उठाकर दुकानदारी कुछ जमायी जा सकती है। सो भाई लोग सक्रिय हो गये। लगे हाथ २ सलाहकारों ने सलाहकारी भी छोड़ दी...बहस भी जारी है।
कार्टूनिस्ट शंकर

कार्टूनिस्ट चन्दर
कार्टूनिस्ट सुरेन्द्र


कार्टूनिस्ट सुधीरनाथ
कार्टूनिस्ट सतीश आचार्य


कार्टूनिस्ट हाडा

कार्टूनिस्ट काक

कार्टूनिस्ट सतीश आचार्य
कार्टूनिस्ट काक
कार्टूनिस्ट अभिषेक
कार्टूनिस्ट लहरी


































स्वर्णकाल
-कार्टूनों को बर्दाश्त करना लगातार मुश्किल होता जा रहा है, पूरी दुनिया में हो रही क्रांतियों में आज कार्टूनिस्ट अहम भूमिका अदा कर रहे हैं। आज कार्टूनिस्ट सिर्फ किसी मीडिया हाउस के कर्मचारी नहीं बल्कि क्रांति और परिवर्तन के वाहक के रूप में सामने आ रहे हैं और इससे ज्यादा सम्मान क्या होगा कि अक्सर हमारी संसद में कार्टूनों पर बहसें होने लगी हैं। 
यकीन मानिए, मैं तो इसे कार्टून की बढ़ती ताकत के रूप में देखता हूँ। इस आधार पर देखा जाये तो शंकर के समय की अपेक्षा कार्टून्स आज ज्यादा असरदार हैं और इसकी वज़ह है भारतीयों में लगातार घट रही सहनशीलता। आज लोग अपने विचारों से अलग कुछ सुनना ही नहीं चाहते। पत्रकारिता उतना खुल कर बात नहीं कर सकती, उसकी अपनी सीमाएं हैं। पर कार्टूनिंग में सीमाएं उतनी स्पष्ट नही हैं और उन्हें तोड़ना भी अपेक्षाकृत कहीं आसान है। लोकतांत्रिक तानाशाही और आम जन की आवाज़ के दमन का यह दौर सारी दुनिया के कार्टूनिस्टों के लिए स्वर्ण काल है।
• कार्टूनिस्ट असीम त्रिवेदी /फ़ेसबुक में
बिलांद
कानून का हाथ एक बिलांद लम्बा कर दो!
-सुहास पल्सीकर (एनसीईआरटी सलाहकार जिन्होंने कार्टून मुद्दे पर अपने पद से इस्तीफा दे दियाके कार्यालय में कथित तौर पर पुणे में हमला किया गया है
कितना शर्मनाक है यह!
• कार्टूनिस्ट सतीश आचार्य 
खेद
-रोज कई नेताओं पर कार्टून बनाता हूँ, पता नहीं आगे चलकर इनमें से कौन देवी/देवता/मसीहा घोषित हो जाए और पता नहीं पच्चीस- पचास साल बाद किसी की भावनाओं को अचानक ठेस पहुँचने लग जाए। लिहाजा अग्रिम खेद व्यक्त किये देता हूँ। पता नहीं तब तक जिन्दा रहें ना रहें!!
-एनसीईआरटी की उस किताब में और भी कई कार्टून हैं...सारे नेता उन्हें भी समझने के प्रयास कर रहे हैं.
• कार्टूनिस्ट कीर्तीश भट्ट
आस्था 
-हजारों किमी दूर डेनमार्क में पैगम्बर का कार्टून बनता है तो यहाँ भारत में भावनाएं आहत हो जाती हैं, आग लग जाती है। सरकार माफ़ी माँगती है, मरहम लगाती है…60 साल पहले बनाए हुए कार्टून से भावनाएं आहत हो जाती हैं…। सरकार माफ़ी माँगती है, तड़ातड़ दो इस्तीफ़े भी हो जाते हैं…संदेश साफ़ है - "आस्थाओं" और "पूजनीयों" के साथ खिलवाड़ किया, तो तुम्हारी खैर नहीं…
क्या कहा? राम मन्दिर और रामसेतु?
अरे, आगे बढ़ो बाबा…!!! दब्बुओं, डरपोकों, लतखोरों और असंगठित वोट बैंकों की भी भला कोई "आस्था" होती है? बात करते हो…! चलो निकलो यहाँ से।
• सुरेश चिपलूणकर 

संसद में कार्टून
-चिन्ता की बात यह है कि फ़िलहाल जगह-जगह से कार्टून हटाये जा रहे हैं अगली बारी कार्टूनिस्टों की..अब तो कुछ करना चाहिए। यहां से भी ‘कार्टून’ हट गये तो...?
• कार्टूनिस्ट चन्दर
वही
-साला...६० साल पुराना एक कार्टून पूरी संसद को.......बना देता है!  
• त्र्यम्बक शर्मा
-बढिया खबर है.. शंकर के कार्टून पर राजनीति का विरोध कार्टून जगत की और से होना ही चाहिए...लगो पीछे...
•  कार्टूनिस्ट सुधीर गोस्वामी
शपथ
-सारे कार्टूनिस्टों से शपथ पत्र लिया जायेगा कि वोह केवल नेताओं और सरकार की प्रशंसा करने वाले कार्टून ही बनायेगें| उलंघना करने वाले कार्टूनिस्टों को जेल में बंद कर दिया जायेगा और स्वर्गवासी हो चुके कार्टूनिस्टों की मिटटी खराब की जायेगी।
-कार्टून से ऐसा तो नहीं लगता कि किसी विशेष समुदाय की भावना को ठेस पहुंचायी गयी है। इसमें तो आंबेडकर साहिब की महिमा और अच्छा व्यक्तित्व दिखाया गया है। अगर महान कार्टूनिस्ट शंकर जी का १९४९ में बना कार्टून ठीक था तो अब इस पर विवाद बहुत गलत है। परन्तु गन्दी राजनीती को क्या कहें? 
• सुभाष मेहता
भारत छोड़ो
-नेताओं का अगला नारा- कार्टूनिस्टो भारत छोड़ों....
• प्रकाश भावसार 
शौक
-‎1949 में बने कार्टूनों पर अब विवाद...इसे कहते हैं 'बिज़ी विदाउट बिज़नेस' वाला शौक़!
• इष्टदेव सांकृत्यायन
कुछ और
ये है वो कार्टून जिसनें संसद को ठप्प कर रखा है..! आपकी क्या राय है? 2006 में छप गया था ये कार्टून किन्तु अभी एक महिनें पहले इसकी जानकारी एनसीईआरटी को दी गयी थी, एक महिनें में कुछ नहीं किया गया! मुझे ऐसा क्यूं लगता है की कहीं कुछ और पक रहा है? वैसे इस कार्टून में ये जो भी नेता जी कोड़ा मार रहे हैं वो किसको पड़ रहा है? क्योंकि तांगे में तो घोड़े को ही बेंत मारी जाती है..!!
• सचिन खरे

अप्रश्नेय कोई नहीं है- गांधी, नेहरू, अम्बेडकर, मार्क्स

जिस किताब में छपे कार्टून पर विवाद हो रहा है, उसमें कुल बत्तीस कार्टून हैं। इसके अतिरिक्त दो एनिमेटेड बाल चरित्र भी हैं - उन्नी और मुन्नी। मैं सबसे पहले बड़े ही मशीनी ढंग से इनमें से कुछ कार्टूनों का कच्चा चिट्ठा आपके सामने प्रस्तुत करूँगा, फिर अंत में थोड़ी सी अपनी बात।
# नेहरु पर सबसे ज्यादा (पन्द्रह) कार्टून हैं। ये स्वाभाविक है क्योंकि किताब है : भारत का संविधान : सिद्धांत और व्यवहार। # एक राज्यपालों की नियुक्ति पर है। उसमें नेहरू जी किक मारकर एक नेता को राजभवन में पहुंचा रहे हैं। # एक भाषा विवाद पर है, उसमें राजर्षि टंडन आदि चार नेता एक अहिन्दी भाषी पर बैठे सवारी कर रहे हैं। # एक में संसद साहूकार की तरह बैठी है और नेहरू, प्रसाद, मौलाना आज़ाद, जगजीवन राम, मोरारजी देसाई आदि भिखारी की तरह लाइन लगाकर खड़े हैं। यह विभिन्न मंत्रालयों को धन आवंटित करने की एकमेव ताकत संसद के पास होने पर व्यंग्य है। # एक में वयस्क मताधिकार का हाथी है जिसे दुबले पतले नेहरू खींचने की असफल कोशिश कर रहे हैं। # एक में नोटों की बारिश हो रही है या तूफ़ान सा आ रहा है जिसमें नेहरू, मौलाना आजाद, मोरारजी आदि नेता, एक सरदार बलदेव सिंह, एक अन्य सरदार, एक शायद पन्त एक जगजीवन राम और एक और प्रमुख नेता जो मैं भूल रहा हूँ कौन - तैर रहे हैं। टैगलाइन है - इलेक्शन इन द एयर।
# एक में नेहरू हैरान परेशान म्यूजिक कंडक्टर बने दो ओर गर्दन एक साथ घुमा रहे हैं। एक ओर जन-गण-मन बजा रहे आंबेडकर, मौलाना, पन्त, शायद मेनन, और एक वही चरित्र जो पिछले कार्टून में भी मैं पहचान नहीं पाया, हैं। ये लोग ट्रम्पेट, वायलिन आदि बजा रहे हैं जबकि दूसरी ओर वंदे मातरम गा रहे दक्षिणपंथी समूह के लोग हैं। श्यामाप्रसाद मुखर्जी बजाने वालों की मंडली से खिसककर गाने वालों की मंडली में जा रहे हैं। # एक में चार राजनीतिज्ञ नेहरु, पटेल, प्रसाद और एक और नेता भीमकाय कॉंग्रेस का प्रतिनिधित्त्व करते हुए एक लिलिपुटनुमा विपक्ष को घेरकर खड़े हैं। यह चुनाव और प्रतिनिधित्त्व की दिक्कतें बताने वाले अध्याय में है। # ऊपरवाले कार्टून के ठीक उलट है ये कार्टून जिसमें नेहरु को कुछ भीमकाय पहलवाननुमा लोगों ने घेर रखा है, लग रहा है ये अखाड़ा है और नेहरु गिरे पड़े हैं। घेरे खड़े लोगों के नाम हैं - विशाल आंध्रा, महा गुजरात, संयुक्त कर्नाटक, बृहनमहाराष्ट्र। ये कार्टून नए राज्यों के निर्माण के लिए लगी होड़ के समय का है।
### कवर पर बना कार्टून सबसे तीखा है। आश्चर्य है इससे किसी की भावनाएं आहत क्यों नहीं हुईं। यह आर. के. लक्ष्मण का है। इसमें उनका कॉमन मैन सो रहा है, दीवार पर तस्वीरें टंगी हैं - नेहरु, शास्त्री, मोरारजी, इंदिरा, चरण सिंह, वी.पी.सिंह, चंद्रशेखर, राव, अटल बिहारी और देवैगोडा... और टीवी से आवाजें आ रही हैं - "unity, democracy, secularism, equality, industrial growth, economic progress, trade, foreign collaboration, export increase, ...we have passenger cars, computers, mobile phones, pagers etc... thus there has been spectacular progress... and now we are determined to remove poverty, provide drinking water, shelter, food, schools, hospitals...
कार्टून छोड़िये, इस किताब में उन्नी और मुन्नी जो सवाल पूछते हैं, वे किसी को भी परेशान करने के लिए काफी हैं। वे एकबारगी तो संविधान की संप्रभुता को चुनौती देते तक प्रतीत होते हैं। मसलन, उन्नी का ये सवाल - क्या यह संविधान उधार का था? हम ऐसा संविधान क्यों नहीं बना सके जिसमें कहीं से कुछ भी उधार न लिया गया हो? या ये सवाल (किसकी भावनाएं आहत करेगा आप सोचें) - मुझे समझ में नहीं आता कि खिलाड़ी, कलाकार और वैज्ञानिकों को मनोनीत करने का प्रावधान क्यों है? वे किसका प्रतिनिधित्त्व करते हैं? और क्या वे वास्तव में राज्यसभा की कार्यवाही में कुछ खास योगदान दे पाते हैं? या मुन्नी का ये सवाल देखें - सर्वोच्च न्यायालय को अपने ही फैसले बदलने की इजाज़त क्यों दी गयी है? क्या ऐसा यह मानकर किया गया है कि अदालत से भी चूक हो सकती है? एक जगह सरकार की शक्ति और उस पर अंकुश के प्रावधान पढ़कर उन्नी पूछता है - ओह! तो पहले आप एक राक्षस बनाएँ फिर खुद को उससे बचाने की चिंता करने लगे। मैं तो यही कहूँगा कि फिर इस राक्षस जैसी सरकार को बनाया ही क्यों जाए?
किताब में अनेक असुविधाजनक तथ्य शामिल किये गए हैं। उदाहरणार्थ, किताब में बहुदलीय प्रणाली को समझाते हुए ये आंकड़े सहित उदाहरण दिया गया है कि चौरासी में कॉंग्रेस को अड़तालीस फीसदी मत मिलने के बावजूद अस्सी फीसदी सीटें मिलीं। इनमें से हर सवाल से टकराते हुए किताब उनका तार्किक कारण, ज़रूरत और संगती समझाती है। यानी किताब अपने खिलाफ उठ सकने वाली हर असहमति या आशंका को जगह देना लोकतंत्र का तकाजा मानती है। वह उनसे कतराती नहीं, उन्हें दरी के नीचे छिपाती नहीं, बल्कि बच्चों को उन पर विचार करने और उस आशंका का यथासंभव तार्किक समाधान करने की कोशिश करती है। उदाहरण के लिए जिस कार्टून पर विवाद है, वह संविधान निर्माण में लगने वाली देरी के सन्दर्भ में है। किताब में इस पर पूरे तीन पेज खर्च किये गए हैं, विस्तार से समझाया गया है कि संविधान सभा में सभी वर्गों और विचारधाराओं के लोगों को शामिल किया गया। उनके बीच हर मुद्दे पर गहराई से चर्चा हुई। संविधान सभा की विवेकपूर्ण बहसें हमारे लिए गर्व का विषय हैं, किताब ये बताती है। मानवाधिकार वाले अध्याय में सोमनाथ लाहिड़ी को (चित्र सहित) उद्धृत किया गया है कि अनेक मौलिक अधिकार एक सिपाही के दृष्टिकोण से बनाए गए हैं यानी अधिकार कम हैं, उन पर प्रतिबन्ध ज्यादा हैं। सरदार हुकुम सिंह को (चित्र सहित) उद्धृत करते हुए अल्पसंख्यकों के अधिकारों का सवाल उठाया गया है। किताब इन सब बहसों को छूती है।
सबसे महत्त्वपूर्ण बात ये है कि जहाँ देर के कारण गिनाए गए हैं, वहाँ ये रेखांकित किया गया है कि संविधान में केवल एक ही प्रावधान था जो बिना वाद-विवाद सर्वसम्मति से पास हो गया - सार्वभौम मताधिकार। किताब में इस पर टिप्पणी है – “इस सभा की लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति निष्ठा का इससे बढ़िया व्यावहारिक रूप कुछ और नहीं हो सकता था।”
बच्चों को उपदेशों की खुराक नहीं चाहिए, उन्हें सहभागिता की चुनौती चाहिए। उपदेशों का खोखलापन हर बच्चा जानता है। यह और दो हज़ार पांच में बनी अन्य किताबें बच्चों को नियम/ सूत्र/ आंकड़े/ तथ्य रटाना नहीं चाहतीं। प्रसंगवश पाठ्यचर्या दो हज़ार पांच की पृष्ठभूमि में यशपाल कमेटी की रिपोर्ट थी। बच्चे आत्महत्या कर रहे थे, उनका बस्ता भारी होता जा रहा था, पढ़ाई उनके लिए सूचनाओं का भण्डार हो गयी थी, जिसे उन्हें रटना और उगल देना था। ऐसे में इस तरह के कार्टून और सवाल एक नयी बयार लेकर आये। ज्ञान एक अनवरत प्रक्रिया है, यदि ज्ञान कोई पोटली में भरी चीज़ है जिसे बच्चे को सिर्फ ‘पाना’ है तो पिछली पीढ़ी का ज्ञान अगली पीढ़ी की सीमा बन जाएगा। किताब बच्चे को अंतिम सत्य की तरह नहीं मिलनी चाहिये, उसे उससे पार जाने, नए क्षितिज छूने की आकांक्षा मिलनी चाहिए।
किताब अप्रश्नेय नहीं है और न ही कोई महापुरुष। कोई भी - गांधी, नेहरु, अम्बेडकर, मार्क्स... अगर कोई  भी असुविधाजनक तथ्य छुपाएंगे तो कल जब वह जानेगा तो इस धोखे को महसूस कर ज़रूर प्रतिपक्षी विचार के साथ जाएगा। उसे सवालों का सामना करना और अपनी समझ/ विवेक से फैसला लेने दीजिए। यह किताब बच्चों को किताब के पार सोचने के लिए लगातार सवाल देती चलती है, उदाहरणार्थ यह सवाल - (क्या आप इससे पहले इस सवाल की कल्पना भी कर सकते थे?) क्या आप मानते हैं कि निम्न परिस्थितियाँ स्वतंत्रता के अधिकार पर प्रतिबंधों की मांग करती हैं? अपने उत्तर के समर्थन में तर्क दें – क* शहर में साम्प्रदायिक दंगों के बाद लोग शान्ति मार्च के लिए एकत्र हुए हैं। ख* दलितों को मंदिर प्रवेश की मनाही है। मंदिर में जबरदस्ती प्रवेश के लिए एक जुलूस का आयोजन किया जा रहा है। ग* सैंकड़ों आदिवासियों ने अपने परम्परागत अस्त्रों तीर-कमान और कुल्हाड़ी के साथ सड़क जाम कर रखा है। वे मांग कर रहे हैं कि एक उद्योग के लिए अधिग्रहीत खाली जमीं उन्हें लौटाई जाए। घ* किसी जाती की पंचायत की बैठक यह तय करने के लिए बुलाई गयी है कि जाती से बाहर विवाह करने के लिए एक नवदंपत्ति को क्या दंड दिया जाए।
अब आखिर में, जिन्हें लगता है कि बच्चे का बचपन बचाए रखना सबसे ज़रूरी है और वो कहीं दूषित न हो जाए, उन्हें छान्दोग्य उपनिषद का रैक्व आख्यान पढ़ना चाहिए। मेरी विनम्र राय में बच्चे को यथार्थ से दूर रखकर हम सामाजिक भेदों से बेपरवाह, मिथकीय राष्ट्रवाद से बज्बजाई, संवादहीनता के टापू पर बैठी आत्मकेंद्रित पीढ़ी ही तैयार करेंगे। तब, कहीं देर न हो जाए।
- हिमांशु पंड्या

(जानकारी हेतु, मैं हिन्दी की पाठ्यक्रम निर्माण समिति का सदस्य रहा हूँ।)    
Himanshu Pandya द्वारा 12 मई 2012 को 13:17 बजे · पर
 


कार्टूनेचर फ़ीचर सेवा

कार्टून न्यूज़ हिन्दी झरोखा