अखबार और कार्टून
मुद्दे की बात यह है कि हर अखबार-पत्रिका में एकाधिक कार्टून अनिवार्य रूप से छपने चाहिए। इसके लिए एक सजग पाठक और कार्टून प्रेमी होने के नाते के नाते आप जो अखबार लेते हैं उसे नियमित रूप से अलग-अलग कार्टूनिस्टों के बनाए अधिक कार्टून छापने के लिए पत्र लिखें, ई-मेल करें... लिखते रहें,करते रहें।
आज का अखबार देखा। कई बार सोचा कि विज्ञापन और पठनीय (?) सामग्री का अनुपात देखा जाए। २ रुपये से ४.५० रुपये में बदले हुए दिल्ली के दैनिक हिन्दुस्तान में आज २०+४ (मूवी मैज़िक- कुछ छोटे आकार के पृष्ठ)+१० (सर्च इंजन- वर्गीकृत/डिस्प्ले विज्ञापन)=३४ पृष्ठ हैं। कुल मुद्रित क्षेत्र (प्रिण्ट एरिया) है- लगभग ५६६८९२ वर्ग सेमी.। इसमें विज्ञापन ३३४७७.७ वर्ग सेमी क्षेत्र में छपे हैं, जब कि पठनीय (?) सामग्री २३२११.५ वर्ग सेमी. छपी है। इस तरह अखबार में लगभग ५९.०५ % विज्ञापन हैं और ४०.९५% सामग्री। यह सिर्फ़ एक अखबार के एक संस्करण की तस्वीर है।
पूरे अखबार में सम्पादकीय पृष्ठ पर एक कार्टून है। पहले पन्ने का पॉकेट कार्टून बन्द कर दिया गया है। भीतर एक कार्टून छपता है छपता है जो प्राय: गायब रहता है। फ़िल्म-टीवी और ऐसी ही तमाम सामग्री आवश्यक रूप से मौजूद रहती है- पाठकों की रुचि के नाम पर। रविवारीय अंक का पहले इन्तज़ार रहता थ, उसे प्राय: संजोकर रखा जाता था। और अब, रविवार को मैं सबसे पहले अपने अखबार के परिशिष्ट ‘मूवीमैज़िक’ को अखबार से निकालकर दूर रख देता हूं। एक पाठक के नाते मैं ऐसा कर सकता हूं।
क्या साधन सम्पन्न इस अखबार में देश के कुछ कार्टूनिस्टों के गैर राजनीतिक यानी पारिवारिक सामाजिक नहीं छापे जा सकते! कमोवेश यही हाल देश के अन्य छोटे-बड़े अखबारों का भी है। सभी ‘पाठकों की पसन्द’ की सामग्री छाप रहे हैं और पता नहीं इन्हें पाठकों की पसन्द पता कैसे चलती है?
मुद्दे की बात यह है कि हर अखबार-पत्रिका में एकाधिक कार्टून अनिवार्य रूप से छपने चाहिए। इसके लिए एक सजग पाठक और कार्टून प्रेमी होने के नाते के नाते आप जो अखबार लेते हैं उसे नियमित रूप से अलग-अलग कार्टूनिस्टों के बनाए अधिक कार्टून छापने के लिए पत्र लिखें, ई-मेल करें... लिखते रहें,करते रहें।
हो सकता है आपको लगे मैं स्वार्थी हूं और मैं अपनी बात थोप रहा हूं। बिल्कुल, मैं स्वार्थी हूं- कार्टून, कार्टून कला और कार्टूनिस्टों के हित में (इनमें मैं भी शामिल हूं) मुझे यह भी स्वीकार है! आप साथ हैं तो आप और हम मिलकर स्थिति बदल सकते हैं।
(ऊपर दिए आंकड़े अनुमानित हैं इन्हें मानक न मानें- बस थोड़ी जानकारी साझा करने के लिए सिर खपाई की गयी है।)
• कार्टूनिस्ट चन्दर
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कार्टून न्यूज़ हिन्दी
रविवार, 30 सितंबर 2012
परहेज
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शनिवार, 29 सितंबर 2012
कार्टून प्रतियोगिता
जलवायु परिवर्तन और हिमालय
युवाओं के लिए विशेष कार्टून प्रतियोगिता
‘जलवायु परिवर्तन और हिमालय’ विषय पर १८-३५ वर्ष आयु वर्ग के लिए एक कार्टून प्रतियोगिता का आयोजन किया गया है।
हर प्रविष्टि के साथ प्रतिभागी की आयु का प्रमाण पत्र, डाक का पूरा पता और फ़ोन नम्बर अवश्य होना चाहिए। ‘जलवायु परिवर्तन और हिमालय’ विषय पर भेजी जाने वाली प्रविष्टि मूल रूप में भेजी जानी चाहिए और वह ए-३ आकार यानी २९.७x४२ सेमी. (ए-४ आकार- २९.७x२१ सेमी. का दुगुना) में होनी चाहिए।
प्रविष्टि भेजने की अन्तिम तिथि- २५ अक्टूबर, २०१२
परिणाम- १ नवम्बर, २०१२
प्रविष्टियां इस पते पर भेजें-
The Organizing Secretary, Climate Change Informatics, CSIR-NISCAIR, Dr. K.S. Krishnan Marg, New Delhi-110012
युवाओं के लिए विशेष कार्टून प्रतियोगिता

हर प्रविष्टि के साथ प्रतिभागी की आयु का प्रमाण पत्र, डाक का पूरा पता और फ़ोन नम्बर अवश्य होना चाहिए। ‘जलवायु परिवर्तन और हिमालय’ विषय पर भेजी जाने वाली प्रविष्टि मूल रूप में भेजी जानी चाहिए और वह ए-३ आकार यानी २९.७x४२ सेमी. (ए-४ आकार- २९.७x२१ सेमी. का दुगुना) में होनी चाहिए।
प्रविष्टि भेजने की अन्तिम तिथि- २५ अक्टूबर, २०१२
परिणाम- १ नवम्बर, २०१२
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The Organizing Secretary, Climate Change Informatics, CSIR-NISCAIR, Dr. K.S. Krishnan Marg, New Delhi-110012
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गुरुवार, 27 सितंबर 2012
श्रद्धांजलि
कार्टूनिस्ट डॉ. सतीश श्रृंगेरी का निधन
लोकप्रिय कन्नड़ कार्टूनिस्ट और आयुर्वेद चिकित्सक सतीश श्रृंगेरी का आज सुबह (२७ सितम्बर, २०१२ को) फ़ेंफ़ड़ों से जुड़ी संक्षिप्त बीमारी के बाद निधन हो गया। उनकी आयु केवल ४४ वर्ष थी। कला-कार्टूनकला में उनकी बचपन से ही रुचि रही। अभिनव रामानन्द हाई स्कूल (किग्गा), जो श्रंगेरी के निकट एक दूरस्थ गांव है, में पढ़ाई के दौरान उन्होंने ड्रॉइंग का खूब अभ्यास किया और बहुत से कार्टून-कैरीकेचर बनाए। उन्होंने कार्टून कला सिखाने के लिए भी प्रयास किया।
वह श्री जगद्गुरु चंद्रशेखर भारती मेमोरियल कॉलेज, श्रृंगेरी, और एएलएन राव मेमोरियल आयुर्वेद कॉलेज, गडग में कॉलेज के दिनों के दौरान भी उन्होंने अपना जुनून जारी रखा। आयुर्वेद चिकित्सा में स्नातकोत्तर डॉ. सतीश ने स्वतन्त्र रूप से चिकित्सा कार्य शुरू करने से पहले कुछ समय एक शिक्षक के रूप में कार्य किया और एक दवा कंपनी के साथ एक वैज्ञानिक के रूप में भी उन्होंने काम किया।
कर्नाटक के कन्नड़ दैनिक समाचार पत्र दैनिक ‘संयुक्त कर्नाटक’ के लिए डॉ. सतीश ने व्यंग्य और हास्य से सराबोर नियमित रूप से कार्टून बनाये। उन्होंने अपने बनाये कार्टूनों की प्रदर्शनी भी आयोजित की।
उनके परिवार में माता, पिता, पत्नी, एक बेटा, एक भी और एक बहिन हैं।
उनके व्यवहार और उनके काम को सदा याद रखा जाएगा।
कार्टून न्यूज़ हिन्दी, केरल कार्टून अकादमी और इनसे सम्बद्ध कार्टूनिस्टों को उनके असामयिक निधन से बहुत दु:ख हुआ है। ईश्वर से प्रार्थना है कि वह उनकी आत्मा को शान्ति प्रदान करे और सभी परिजन-मित्रों को यह दु:ख सहने की सामर्थ्य दे!
• टी.सी. चन्दर
डॉ. सतीश का कार्य देखने हेतु लिन्क पर क्लिक करें-
श्रृंगेरी कार्टून्स कैरीकेचर इण्डिया फ़ेसबुक
Shraddhanjali Dr DrSatish Sringeri
Shocked to hear about the death of popular Kannada cartoonist Dr.Satish Sringeri, from his brother Raghupathi Sringeri. He was 44 and died due to lungs disease. In spite of his busy medical practice, he continued his love for cartooning art by drawing for Kannada dailies and magazines. We'll badly miss his cartoon pills.
• कार्टूनिस्ट सतीश आचार्य/फ़ेसबुक में

• टी.सी. चन्दर

श्रृंगेरी कार्टून्स कैरीकेचर इण्डिया फ़ेसबुक
Shraddhanjali Dr DrSatish Sringeri
Shocked to hear about the death of popular Kannada cartoonist Dr.Satish Sringeri, from his brother Raghupathi Sringeri. He was 44 and died due to lungs disease. In spite of his busy medical practice, he continued his love for cartooning art by drawing for Kannada dailies and magazines. We'll badly miss his cartoon pills.
• कार्टूनिस्ट सतीश आचार्य/फ़ेसबुक में
मंगलवार, 18 सितंबर 2012
आमन्त्रण
कार्टून/कैरीकेचर
प्रणब कार्टून व कैरीकेचर
प्रिय कार्टूनिस्ट बन्धु,
राजधानी दिल्ली में केरल कार्टून अकादमी द्वारा अक्टूबर, २०१२ में सुप्रसिद्ध कार्टूनिस्ट कुट्टी की प्रथम पुण्य तिथि के अवसर पर उन्हें स्मरण करने हेतु एक विशेष कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है। इस कार्यक्रम में आने के लिए देश के माननीय राष्ट्रपति श्री प्रणब कुमार मुखर्जी ने अपनी स्वीकृति प्रदान कर दी है।
दो बरस पहले प्रधान मन्त्री श्री मनमोहन सिंह को भारतीय व विदेशी कार्टूनिस्टों द्वारा उन पर बनाये गये कैरीकेचर और कार्टूनों का संकलन भैंट किया गया था। इसी प्रकार भारत के प्रथम नागरिक को भी कार्टून अकादमी की ओर से पुस्तक के रूप में कार्टून-कैरीकेचर का एक विशेष संकलन भैंट किये जाने का निर्णय लिया गया है।
इस विशेष संकलन हेतु कृपया श्री प्रणब कुमार मुखर्जी को लेकर अपना बनाया हुआ कार्टून/कैरीकेचर (बड़े आकार व ३०० डीपीआई में) ३० सितम्बर, २०१२ तक अपने ताज़ा फ़ोटो और सम्पर्क विवरण के साथ अवश्य भेज दें।
डाक व ई-मेल पता है-
cartoonacademy@gmail.com
• SUDHEERNATH, (Cartoonist), 125, Bagbhan Apartment, GH/2, Sector-28, Rohini, Delhi - 110 042
PRANAB CARICATURES and CARTOONS
प्रणब कार्टून व कैरीकेचर
प्रिय कार्टूनिस्ट बन्धु,

दो बरस पहले प्रधान मन्त्री श्री मनमोहन सिंह को भारतीय व विदेशी कार्टूनिस्टों द्वारा उन पर बनाये गये कैरीकेचर और कार्टूनों का संकलन भैंट किया गया था। इसी प्रकार भारत के प्रथम नागरिक को भी कार्टून अकादमी की ओर से पुस्तक के रूप में कार्टून-कैरीकेचर का एक विशेष संकलन भैंट किये जाने का निर्णय लिया गया है।
इस विशेष संकलन हेतु कृपया श्री प्रणब कुमार मुखर्जी को लेकर अपना बनाया हुआ कार्टून/कैरीकेचर (बड़े आकार व ३०० डीपीआई में) ३० सितम्बर, २०१२ तक अपने ताज़ा फ़ोटो और सम्पर्क विवरण के साथ अवश्य भेज दें।
डाक व ई-मेल पता है-
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श्री प्रणब मुखर्जी से मिले राजधानी के कार्टूनिस्ट (१ सितम्बर, २०१२) |
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रविवार, 9 सितंबर 2012
असीम गिरफ़्तार
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रविवार, 2 सितंबर 2012
कार्टूनिस्ट
राष्ट्रपति से मिले राजधानी के कार्टूनिस्ट
राजधानी के कार्टूनिस्टों के एक प्रतिनिधिमंडल ने केरल कार्टून अकादमी के कार्यक्रम समन्वयक के नेत्रत्व में भारत के राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी से राष्ट्रभवन में आज (०१/०९/२०१२) भैंट की। अधिकांश कार्टूनिस्टों ने राष्ट्रपति को अपने द्वारा बनाये कैरीकेचर-कार्टून भैंट किये। अपने ऊपर बने तरह-तरह कार्टून-कैरीकेचर देखकार कई बार उनके चेहरे पर अनायास ही मुस्कान आ गयी।
केरल कार्टून अकादमी ने स्वर्गीय कार्टूनिस्ट की पहली पुण्यतिथि (२२ अक्टूबर, २०१२) के अवसर पर उनके स्मरण का कार्यक्रम बनाया है जिसके अक्टूबर, 2012 के अंतिम सप्ताह में दिल्ली में आयोजित होने की आशा है। इस कार्यक्रम में आने के लिए उन्हें आमन्त्रित किया गया। कार्टूनिस्ट कुट्टी को लेकर आयोजित होने वाले इस कार्यक्रम में शामिल होने के वे इच्छुक हैं।
मलयालम भाषी केपीएस कुट्टी केरल निवासी थे और उनके कार्टून बंग्ला अखबार में छपते थे। उन्हें बंला भाषा नहीं आती थी और अखबार मालिक मलयाम नहीं जानते थे। आपको याद होगा आनन्द बाज़ार पत्रिका समूह की चर्चित साप्ताहिक हिदी पत्रिका `रविवार' के अन्तिम पृष्ठ पर ‘कुट्टी का कार्टून’ छपता था जिसे तमाम पाठक सबसे पहले देखा करते थे। उन्होंने लगभग सात दशक जो कार्टून बनाए उनमें से कई कार्टूनों के पात्र वर्तमान राष्ट्रपति भी बने। ९० साल की आयु में अमरीका में उनकागत वर्ष निधन हो गया था।
केरल कार्टून अकादमी के पूर्व सचिव और अभी कार्यक्रम समन्वयक कार्टूनिस्ट सुधीर नाथ के नेतृत्व में राष्ट्रपति से मिलने गये कार्टूनिस्टों के इस प्रतिनिधि मण्डल में वरिष्ठ कार्टूनिस्ट काक (प्रभासाक्षी), जयन्तो बनर्जी (हिन्दुस्तान टाइम्स), श्यामल बनर्जी (मिण्ट), चन्दर (कार्टूनपन्ना), जगजीत राणा (दै. जागरण), रोहनीत फ़ोर (इण्डियन एक्सप्रेस), सजीत कुमार (डेक्कन क्रॉनीकल), प्रसान्थ (भारतीय वर्तमान), शिजू जॉर्ज (स्वतन्त्र), मनोज कुरील (स्वतन्त्र) और सत्य गोविन्द (स्वतन्त्र) शामिल थे।
देखें- केरल कार्टून अकादमी केरल कार्टून अकादमी कार्टूनपन्ना

राजधानी के कार्टूनिस्टों के एक प्रतिनिधिमंडल ने केरल कार्टून अकादमी के कार्यक्रम समन्वयक के नेत्रत्व में भारत के राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी से राष्ट्रभवन में आज (०१/०९/२०१२) भैंट की। अधिकांश कार्टूनिस्टों ने राष्ट्रपति को अपने द्वारा बनाये कैरीकेचर-कार्टून भैंट किये। अपने ऊपर बने तरह-तरह कार्टून-कैरीकेचर देखकार कई बार उनके चेहरे पर अनायास ही मुस्कान आ गयी।
केरल कार्टून अकादमी ने स्वर्गीय कार्टूनिस्ट की पहली पुण्यतिथि (२२ अक्टूबर, २०१२) के अवसर पर उनके स्मरण का कार्यक्रम बनाया है जिसके अक्टूबर, 2012 के अंतिम सप्ताह में दिल्ली में आयोजित होने की आशा है। इस कार्यक्रम में आने के लिए उन्हें आमन्त्रित किया गया। कार्टूनिस्ट कुट्टी को लेकर आयोजित होने वाले इस कार्यक्रम में शामिल होने के वे इच्छुक हैं।
मलयालम भाषी केपीएस कुट्टी केरल निवासी थे और उनके कार्टून बंग्ला अखबार में छपते थे। उन्हें बंला भाषा नहीं आती थी और अखबार मालिक मलयाम नहीं जानते थे। आपको याद होगा आनन्द बाज़ार पत्रिका समूह की चर्चित साप्ताहिक हिदी पत्रिका `रविवार' के अन्तिम पृष्ठ पर ‘कुट्टी का कार्टून’ छपता था जिसे तमाम पाठक सबसे पहले देखा करते थे। उन्होंने लगभग सात दशक जो कार्टून बनाए उनमें से कई कार्टूनों के पात्र वर्तमान राष्ट्रपति भी बने। ९० साल की आयु में अमरीका में उनकागत वर्ष निधन हो गया था।
केरल कार्टून अकादमी के पूर्व सचिव और अभी कार्यक्रम समन्वयक कार्टूनिस्ट सुधीर नाथ के नेतृत्व में राष्ट्रपति से मिलने गये कार्टूनिस्टों के इस प्रतिनिधि मण्डल में वरिष्ठ कार्टूनिस्ट काक (प्रभासाक्षी), जयन्तो बनर्जी (हिन्दुस्तान टाइम्स), श्यामल बनर्जी (मिण्ट), चन्दर (कार्टूनपन्ना), जगजीत राणा (दै. जागरण), रोहनीत फ़ोर (इण्डियन एक्सप्रेस), सजीत कुमार (डेक्कन क्रॉनीकल), प्रसान्थ (भारतीय वर्तमान), शिजू जॉर्ज (स्वतन्त्र), मनोज कुरील (स्वतन्त्र) और सत्य गोविन्द (स्वतन्त्र) शामिल थे।
देखें- केरल कार्टून अकादमी केरल कार्टून अकादमी कार्टूनपन्ना

गुरुवार, 30 अगस्त 2012
राजधानी दिल्ली के कार्टूनिस्टों के लिए सूचना

प्रिय कार्टूनिस्ट बन्धु,
केरल कार्टून अकादमी ने भारत के माननीय राष्ट्रपति श्री प्रणव मुखर्जी से राष्ट्रपति भवन में जाकर भैंट का कार्यक्रम तय किया है। भैंटकर्त्ताओं में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में कार्य़्ररत/रह रहे कार्टूनिस्ट होंगे।
यह कार्यक्रम दिनांक १ सितम्बर, २०१२ (शनिवार), अपराह्न ११.४५ बजे का तय हुआ है। आप माननीय राष्ट्रपति से मिलने को सहमत हैं तो यह सन्देश मिलते ही कृपया सहमतिके साथ अपने बारे में संक्षिप्त विवरण ( पूरा नाम, पूरा पता, समाचार पत्र/पत्रिका/वेबसाइट का नाम, फ़ोन नम्बर, ई-मेल, ब्लॉग/वेबसाइट लिन्क आदि) भेज दें।
यह भैंट कार्यक्रम दो कारणों से तय किया गया है - नवनिर्वाचित राष्ट्रपति महोदय से भैंट कर उनका अभिनन्दन और सुप्रसिद्ध कार्टूनिस्ट कुट्टी की प्रथम पुण्य तिथि पर उनका स्मरण।
कृपया देर न करें। मेरी हार्दिक अभिलाषा है कि आप चलें। जानकारी के आदान-प्रदान के लिए फ़ोन और ई-मेल का उपयोग किया जा सकता है।
देखें-
कार्टून न्यूज़ हिन्दी Cartoon News Hindi-
केरल कार्टून अकादमी Kerala Cartoon Academy
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आपका साथी
कार्टूनिस्ट चन्दर
९८९१०८४७०७
9891084707
ई-मेल- tcchander@gmail.com cartoonistchander@gmail.com

प्रिय कार्टूनिस्ट बन्धु,

यह कार्यक्रम दिनांक १ सितम्बर, २०१२ (शनिवार), अपराह्न ११.४५ बजे का तय हुआ है। आप माननीय राष्ट्रपति से मिलने को सहमत हैं तो यह सन्देश मिलते ही कृपया सहमतिके साथ अपने बारे में संक्षिप्त विवरण ( पूरा नाम, पूरा पता, समाचार पत्र/पत्रिका/वेबसाइट का नाम, फ़ोन नम्बर, ई-मेल, ब्लॉग/वेबसाइट लिन्क आदि) भेज दें।
यह भैंट कार्यक्रम दो कारणों से तय किया गया है - नवनिर्वाचित राष्ट्रपति महोदय से भैंट कर उनका अभिनन्दन और सुप्रसिद्ध कार्टूनिस्ट कुट्टी की प्रथम पुण्य तिथि पर उनका स्मरण।
कृपया देर न करें। मेरी हार्दिक अभिलाषा है कि आप चलें। जानकारी के आदान-प्रदान के लिए फ़ोन और ई-मेल का उपयोग किया जा सकता है।
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शनिवार, 23 जून 2012
ई-कार्टून बुक
काक के कार्टूनों की ई-बुक इंटरनेट पर उपलब्ध

प्रसिद्ध हिंदी कार्टूनिस्ट ‘काक‘ के बनाए कार्टूनों की ई-पुस्तकें अमेजॉन.कॉम के जरिए इंटरनेट पर उपलब्ध कराई गई हैं। इन्हें ‘किंडल‘ नामक ई-बुक रीडर के साथ-साथ दूसरे ई-रीडर्स, टैबलेट और डेस्कटॉप कंप्यूटरों पर पढ़ा जा सकता है।


इस समय प्रभासाक्षी के व्यंग्य चित्रकार ‘काक‘ (पूरा नाम हरिश्चंद्र शुक्ला ‘काक‘), पिछले चालीस साल से हिंदी के प्रमुख अखबारों के साथ जुड़े रहे हैं और इस दौरान उन्होंने राजनैतिक, सामाजिक क्षेत्रों पर अपनी तीखी, भदेस टिप्पणियों से कार्टून विधा के क्षेत्र में अपनी अलग जगह बनायी है।
अमेजॉन के ‘किंडल स्टोर‘ पर उपलब्ध उनके कार्टून न सिर्फ अपनी तीखी और चुटीली टिप्पणियों के जरिए पाठकों का मनोरंजन करते हैं बल्कि भारतीय राजनीति तथा समाज की महत्वपूर्ण घटनाओं का डॉक्यूमेंटेशन भी करते हैं।
‘काक‘ की तरफ से पेश ई-बुक्स फिलहाल चार खंडों में उपलब्ध हैं। इन्हें उनके पुत्र तुषित शुक्ला ने संपादित कर पेश किया है। इन ई-बुक्स में ‘काक‘ के कार्टूनों के अंग्रेजी अनुवाद भी पढ़े जा सकते हैं ताकि अहिंदी भाषी पाठक भी उनका आनंद ले सकें।
‘काक‘ के कार्टूनों की खास बात है उनकी बेलाग टिप्पणियां, जो देसी भाषा और जमीनी अनुभवों से जुड़ी है। उनके पात्र समाज के पीड़ित, शोषित तबकों के लोग हैं और जब वे अपने आसपास की राजनैतिक-सामाजिक विषमताओं पर टिप्पणियां करते हैं तो उनका आक्रोश अनायास ही पाठक के मन को छू लेता है। जीवन के सातवें दशक में भी वे जिस तरह आधुनिक तकनीक के साथ तालमेल बिठाने में सफल रहे हैं, उसमें हिंदी के अन्य रचनाकर्मियों के लिए प्रेरणा सन्देश छिपा हुआ है।
‘काक‘ की लिखी ई-बुक्स यहां पर उपलब्ध हैं।
लिंक: http://www.amazon.com ( search books- kaaktoons series )
प्रस्तुति: कार्टूनिस्ट चन्दर
अमेजॉन के ‘किंडल स्टोर‘ पर उपलब्ध उनके कार्टून न सिर्फ अपनी तीखी और चुटीली टिप्पणियों के जरिए पाठकों का मनोरंजन करते हैं बल्कि भारतीय राजनीति तथा समाज की महत्वपूर्ण घटनाओं का डॉक्यूमेंटेशन भी करते हैं।

‘काक‘ के कार्टूनों की खास बात है उनकी बेलाग टिप्पणियां, जो देसी भाषा और जमीनी अनुभवों से जुड़ी है। उनके पात्र समाज के पीड़ित, शोषित तबकों के लोग हैं और जब वे अपने आसपास की राजनैतिक-सामाजिक विषमताओं पर टिप्पणियां करते हैं तो उनका आक्रोश अनायास ही पाठक के मन को छू लेता है। जीवन के सातवें दशक में भी वे जिस तरह आधुनिक तकनीक के साथ तालमेल बिठाने में सफल रहे हैं, उसमें हिंदी के अन्य रचनाकर्मियों के लिए प्रेरणा सन्देश छिपा हुआ है।
‘काक‘ की लिखी ई-बुक्स यहां पर उपलब्ध हैं।
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प्रस्तुति: कार्टूनिस्ट चन्दर
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सोमवार, 14 मई 2012
कार्टून विरोध
कार्टून और कार्टूनिस्टों का विरोध
साहित्य की तरह कार्टून भी समाज का दर्पण है। उससे डरना क्या, दर्पण तो वही दिखाएगा जो उसके सामने है! अच्छ यही है भद्रजनो, करने वाले काम कीजिए, वह मत कीजिए जो आपकी और इस पवित्र इमारत के सम्मान के अनुकूल नहीं। करना ही है तो इस देश का नाम सिर्फ़ भारत कर दो जो अभी तक ‘इण्डिया’ का अनुवाद बना हुआ है। गुलाम रहे देशों में उच्चायोग की जगह अपने देश का दूतावास बनाओ। इस देश की राष्ट्रभाषा हिन्दी का सभी जगह सम्मान हो, ऐसी व्यवस्था कर दो। देश और देशवासियों के हित में अनेक काम किये जा सकते हैं, उन्हें करने में अपनी ऊर्जा लगाइए। कार्टून और कार्टूनिस्टों के पीछे पड़ने से क्या हासिल होगा- कुछ और नये (अप्रिय) कार्टून!
‘कार्टून’ से डरना और उनको लेकर विवाद खड़े करना कोई नयी बात नहीं है। ऐसा कई बार हुआ है। ताज़ा मामला अम्बेडकर और नेहरू के कार्टून को लेकर सामने आया है। हाल ही में इस कार्टून पर सांसदों ने संसद में अपना क्रोध व्यक्त किया। पहले से ही विवादों में घिरे मानव संसाधन विकास मन्त्री कपिल सिब्बल का इस मामले में इस्तीफ़ा भी मांग लिया गया। कॉंग्रेसी सांसद पी.एल. पुनिया ने कहा कि वे अपने पद से त्याग पत्र दें या देश से माफ़ी मांगें। यह भी मांग उठी कि सभी सम्बधित अधिकारियों को उनके पद से हटा दिया जाए। सभी के एक सुर होने का लगभग एक ही अर्थ था। इसे भेड़चाल या भीड़चाल कहा जा सकता है।
उल्लेखनीय है कि आज विवादास्पद बना दिया गया यह कार्टून २८ अगस्त, १९४९ को विश्व प्रसिद्ध कार्टूनिस्ट शंकर पिल्लई (1902--1989) ने बनाया था। तब जवाहर लाल नेहरू देश के प्रधान मन्त्री थे। उन्होंने शंकर से कह रखा था कि उन्हें मित्र होने के नाते भी कार्टून बनाने में बख्शा नहीं जाए। कार्टूनिस्ट शंकर उनके प्रिय मित्र थे। इस कार्टून पर न नेहरू ने और न ही किसी अन्य व्यक्ति ने बीते ६३ सालों में कभी कोई आपत्ति की। अब अचानक कुछ लोगों को यह लगा कि यह कार्टून दलित विरोधी है। यानी इस कार्टून से अम्बेडकर और दलितों का अपमान हो रहा है या लोगों की भावनाएं आहत हो रही हैं। ऐसे कार्टून को एनसीईआरटी की सम्बन्धित पुस्तक से अविलम्ब हटा दिया जाना चाहिए। कार्टून विवाद के चलते एनसीईआरटी की पुस्तक प्रकाशन वाली समिति के सलाहकार योगेन्द्र यादव और सुहास पल्सीकर ने विरोधस्वरूप समिति से त्याग पत्र दे दिया।
किसी पुस्तक को एनसीईआरटी के पाठ्यक्रम में ऐसे ही शामिल नहीं कर लिया जाता है। अनेक जानकार और विद्वान लोग उसे ध्यान से देखते-पढ़ते हैं। इन लोगों के चयन पर ‘दलित विरोधी’ होने का आरोप लगाना ही गलत है। इनमें दलित अधिकारों के समर्थक और उनके लिए लड़ने वाले लोग शामिल हैं। दूसरी ओर हमारे ‘माननीय’ विद्वान सांसदों का कहना है कि कार्टून प्रकशन के जिम्मेदार लोगों को पदमुक्त किया जाए। उन लोगों को यह कार्टून समझने और अपने ढंग से उसकी व्याख्या करने में ही कई साल लग गए। इसके आगे कहने को कुछ बचता है क्या?
हमारे यहां अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता को लेकर विवाद-बहसें चलती रहती हैं। समर्थ, सम्पन्न और सत्ताधारी लोग लगभग हर चीज को अपने पक्ष में और अपने ढंग से रखना-चलाना चाहते हैं। ऊपर से विश्व के सबसे बड़े लोकतन्त्र होने का ढोंग भी ओढ़े रखना चाहते हैं। सहिष्णुता सिमटती जा रही है। स्वस्थ दृष्टिकोण मैला होता जा रहा है। हर चीज अपनी पसन्द की होनी चाहिए। हर काम अपने पक्ष में होना चाहिए। हर फ़ैसला अपने पाले में होना चाहिए। अपनी पसन्द से उलट जरा कुछ इधर-उधर हुआ नहीं कि भड़क गये। इसके अलावा अपनी दुकानदारी चलाये रखने के लिए भी भाई लोगों के उर्वर मस्तिष्क में नाना प्रकार के विचार आते रहते हैं। कई विचारों पर अमल करना खतरनाक भी हो सकता हैं। पर इससे उन्हें क्या, भुगतेंगे तो और लोग ही!
उत्तर प्रदेश में लोगों के गाढ़े पसीने की कमाई के करोड़ों रुपयों को एक ‘मूर्ति सनक’ के चलते बरबाद कर देने पर किसी की भावनाएं आहत नहीं हुईं। हमारे माननीय अपनी सुख-सुविधाओं-निवास नवीनीकरण पर मोटी राशि बरबाद कर देते हैं तब कोई चूं नहीं करता। विश्व के तमाम देशों से इलाज कराने लोग भारत आ रहे हैं और हमारे माननीय और महारानी छींक आते ही विदेश उड़ जाते हैं। स्विस बैकों में जमा धन और भ्रष्टाचार के मामले में जमुहाई आने लगती है। कितने लोग घपले-घोटाले करके अपने आसनों पर कुटिल मुस्कान के साथ विराजमान हैं। जिनकी बीड़ी खरीदने की औकात नहीं थी वे अब अरबों के मालिक हैं, रोजाना के शाही खर्च तो किसी गिनती में ही नहीं आते। देशभर में उपजाऊ और गैर उपजाऊ जमीनें खरीदकर या कब्जाकर किसने रखी हुई हैं। वगैरह। बाबू-इंसपैक्टर जैसी छोटी मछलियों के घर छापे में ही करोड़ों मिल रहे हैं फ़िर माहिर और सक्षम मगरमच्छों की बात ही कुछ और है। ऐसी तमाम बातें है जिनसे बेचारी भावनाएं आहत होने से प्राय: बच निकलती हैं। सार की बात यह है कि विषयान्तर होते हुए भी मुझे यह कहने में कोई झिझक नहीं कि करने को तमाम काम हैं, उन पर ध्यान केन्द्रित करने में मन लगाओ भाई!
इस कार्टून मुद्दे पर अभी तक किसी बड़े नेता ने किसी को समझाने का या वास्तविकता को सामने रखने का गम्भीर प्रयास नहीं किया। सभी छोटे-बड़े मगन हैं- जो हो रहा है होने दो। कार्टून दलित विरोधी है। बिल्कुल है। इससे अम्बेडकर और दलितों का अपमान होता है। होता है। कार्टून हटाना है, हटा देंगे। हमको डराओ तो, हम डर जाएंगे! वाह!! कितनी बहादुरी है सबसे बड़े लोकतन्त्र में जहां हर तरफ़ अभिव्यक्ति की पूरी स्वतन्त्रता है। कार्टून पसन्द नहीं, रोक लगा दो। वेबसाइट पसन्द नहीं। बन्द कर दो। कोई अप्रिय बात कहे- मुंह तोड़ दो! कभी अपने भीतर झांकने की हिम्मत दिखाई क्या! अरे विरोध करना है तो अपने उन साथियों का करो आपके बगल में बैठने लायक नहीं हैं। चुनाव के समय अनुपयुक्त और अयोग्य लोगों को टिकट देने का विरोध करो।
साहित्य की तरह कार्टून भी का दर्पण है। उससे डरना क्या, दर्पण तो वही दिखाएगा जो उसके सामने है! अच्छ यही है भद्रजनो, करने वाले काम कीजिए, वह मत कीजिए जो आपकी और इस पवित्र इमारत के सम्मान के अनुकूल नहीं। करना ही है तो इस देश का नाम सिर्फ़ भारत कर दो जो अभी तक ‘इण्डिया’ का अनुवाद बना हुआ है। गुलाम रहे देशों में उच्चायोग की जगह अपने देश का दूतावास बनाओ। इस देश की राष्ट्रभाषा हिन्दी का सभी जगह सम्मान हो, ऐसी व्यवस्था कर दो। देश और देशवासियों के हित में अनेक काम किये जा सकते हैं, उन्हें करने में अपनी ऊर्जा लगाइए। कार्टून और कार्टूनिस्टों के पीछे पड़ने से क्या हासिल होगा- कुछ और नये (अप्रिय) कार्टून!
• कार्टूनिस्ट चन्दर
क्लिक करें और देखें- कार्टून न्यूज़ हिन्दी
साहित्य की तरह कार्टून भी समाज का दर्पण है। उससे डरना क्या, दर्पण तो वही दिखाएगा जो उसके सामने है! अच्छ यही है भद्रजनो, करने वाले काम कीजिए, वह मत कीजिए जो आपकी और इस पवित्र इमारत के सम्मान के अनुकूल नहीं। करना ही है तो इस देश का नाम सिर्फ़ भारत कर दो जो अभी तक ‘इण्डिया’ का अनुवाद बना हुआ है। गुलाम रहे देशों में उच्चायोग की जगह अपने देश का दूतावास बनाओ। इस देश की राष्ट्रभाषा हिन्दी का सभी जगह सम्मान हो, ऐसी व्यवस्था कर दो। देश और देशवासियों के हित में अनेक काम किये जा सकते हैं, उन्हें करने में अपनी ऊर्जा लगाइए। कार्टून और कार्टूनिस्टों के पीछे पड़ने से क्या हासिल होगा- कुछ और नये (अप्रिय) कार्टून!
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सन् १९४९ में कार्टूनिस्ट शंकर द्वारा बनाया गया कार्टून |
‘कार्टून’ से डरना और उनको लेकर विवाद खड़े करना कोई नयी बात नहीं है। ऐसा कई बार हुआ है। ताज़ा मामला अम्बेडकर और नेहरू के कार्टून को लेकर सामने आया है। हाल ही में इस कार्टून पर सांसदों ने संसद में अपना क्रोध व्यक्त किया। पहले से ही विवादों में घिरे मानव संसाधन विकास मन्त्री कपिल सिब्बल का इस मामले में इस्तीफ़ा भी मांग लिया गया। कॉंग्रेसी सांसद पी.एल. पुनिया ने कहा कि वे अपने पद से त्याग पत्र दें या देश से माफ़ी मांगें। यह भी मांग उठी कि सभी सम्बधित अधिकारियों को उनके पद से हटा दिया जाए। सभी के एक सुर होने का लगभग एक ही अर्थ था। इसे भेड़चाल या भीड़चाल कहा जा सकता है।
उल्लेखनीय है कि आज विवादास्पद बना दिया गया यह कार्टून २८ अगस्त, १९४९ को विश्व प्रसिद्ध कार्टूनिस्ट शंकर पिल्लई (1902--1989) ने बनाया था। तब जवाहर लाल नेहरू देश के प्रधान मन्त्री थे। उन्होंने शंकर से कह रखा था कि उन्हें मित्र होने के नाते भी कार्टून बनाने में बख्शा नहीं जाए। कार्टूनिस्ट शंकर उनके प्रिय मित्र थे। इस कार्टून पर न नेहरू ने और न ही किसी अन्य व्यक्ति ने बीते ६३ सालों में कभी कोई आपत्ति की। अब अचानक कुछ लोगों को यह लगा कि यह कार्टून दलित विरोधी है। यानी इस कार्टून से अम्बेडकर और दलितों का अपमान हो रहा है या लोगों की भावनाएं आहत हो रही हैं। ऐसे कार्टून को एनसीईआरटी की सम्बन्धित पुस्तक से अविलम्ब हटा दिया जाना चाहिए। कार्टून विवाद के चलते एनसीईआरटी की पुस्तक प्रकाशन वाली समिति के सलाहकार योगेन्द्र यादव और सुहास पल्सीकर ने विरोधस्वरूप समिति से त्याग पत्र दे दिया।
किसी पुस्तक को एनसीईआरटी के पाठ्यक्रम में ऐसे ही शामिल नहीं कर लिया जाता है। अनेक जानकार और विद्वान लोग उसे ध्यान से देखते-पढ़ते हैं। इन लोगों के चयन पर ‘दलित विरोधी’ होने का आरोप लगाना ही गलत है। इनमें दलित अधिकारों के समर्थक और उनके लिए लड़ने वाले लोग शामिल हैं। दूसरी ओर हमारे ‘माननीय’ विद्वान सांसदों का कहना है कि कार्टून प्रकशन के जिम्मेदार लोगों को पदमुक्त किया जाए। उन लोगों को यह कार्टून समझने और अपने ढंग से उसकी व्याख्या करने में ही कई साल लग गए। इसके आगे कहने को कुछ बचता है क्या?
हमारे यहां अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता को लेकर विवाद-बहसें चलती रहती हैं। समर्थ, सम्पन्न और सत्ताधारी लोग लगभग हर चीज को अपने पक्ष में और अपने ढंग से रखना-चलाना चाहते हैं। ऊपर से विश्व के सबसे बड़े लोकतन्त्र होने का ढोंग भी ओढ़े रखना चाहते हैं। सहिष्णुता सिमटती जा रही है। स्वस्थ दृष्टिकोण मैला होता जा रहा है। हर चीज अपनी पसन्द की होनी चाहिए। हर काम अपने पक्ष में होना चाहिए। हर फ़ैसला अपने पाले में होना चाहिए। अपनी पसन्द से उलट जरा कुछ इधर-उधर हुआ नहीं कि भड़क गये। इसके अलावा अपनी दुकानदारी चलाये रखने के लिए भी भाई लोगों के उर्वर मस्तिष्क में नाना प्रकार के विचार आते रहते हैं। कई विचारों पर अमल करना खतरनाक भी हो सकता हैं। पर इससे उन्हें क्या, भुगतेंगे तो और लोग ही!
उत्तर प्रदेश में लोगों के गाढ़े पसीने की कमाई के करोड़ों रुपयों को एक ‘मूर्ति सनक’ के चलते बरबाद कर देने पर किसी की भावनाएं आहत नहीं हुईं। हमारे माननीय अपनी सुख-सुविधाओं-निवास नवीनीकरण पर मोटी राशि बरबाद कर देते हैं तब कोई चूं नहीं करता। विश्व के तमाम देशों से इलाज कराने लोग भारत आ रहे हैं और हमारे माननीय और महारानी छींक आते ही विदेश उड़ जाते हैं। स्विस बैकों में जमा धन और भ्रष्टाचार के मामले में जमुहाई आने लगती है। कितने लोग घपले-घोटाले करके अपने आसनों पर कुटिल मुस्कान के साथ विराजमान हैं। जिनकी बीड़ी खरीदने की औकात नहीं थी वे अब अरबों के मालिक हैं, रोजाना के शाही खर्च तो किसी गिनती में ही नहीं आते। देशभर में उपजाऊ और गैर उपजाऊ जमीनें खरीदकर या कब्जाकर किसने रखी हुई हैं। वगैरह। बाबू-इंसपैक्टर जैसी छोटी मछलियों के घर छापे में ही करोड़ों मिल रहे हैं फ़िर माहिर और सक्षम मगरमच्छों की बात ही कुछ और है। ऐसी तमाम बातें है जिनसे बेचारी भावनाएं आहत होने से प्राय: बच निकलती हैं। सार की बात यह है कि विषयान्तर होते हुए भी मुझे यह कहने में कोई झिझक नहीं कि करने को तमाम काम हैं, उन पर ध्यान केन्द्रित करने में मन लगाओ भाई!
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कार्टूनिस्ट चन्दर |
साहित्य की तरह कार्टून भी का दर्पण है। उससे डरना क्या, दर्पण तो वही दिखाएगा जो उसके सामने है! अच्छ यही है भद्रजनो, करने वाले काम कीजिए, वह मत कीजिए जो आपकी और इस पवित्र इमारत के सम्मान के अनुकूल नहीं। करना ही है तो इस देश का नाम सिर्फ़ भारत कर दो जो अभी तक ‘इण्डिया’ का अनुवाद बना हुआ है। गुलाम रहे देशों में उच्चायोग की जगह अपने देश का दूतावास बनाओ। इस देश की राष्ट्रभाषा हिन्दी का सभी जगह सम्मान हो, ऐसी व्यवस्था कर दो। देश और देशवासियों के हित में अनेक काम किये जा सकते हैं, उन्हें करने में अपनी ऊर्जा लगाइए। कार्टून और कार्टूनिस्टों के पीछे पड़ने से क्या हासिल होगा- कुछ और नये (अप्रिय) कार्टून!
• कार्टूनिस्ट चन्दर
कार्टून-कार्टून
मन्दबुद्धिपना
साठ साल से भी अधिक समय पहले कार्टूनिस्ट शंकर द्वारा बनाया गया कार्टून जिस पर न नेहरू को कभी आपत्ति हुई और न ही अम्बेडकर को। यह कार्टून सन् २००६ से पुस्तक में है पर अब यह समझ में आया कि इस पर आपत्ति उठाकर दुकानदारी कुछ जमायी जा सकती है। सो भाई लोग सक्रिय हो गये। लगे हाथ २ सलाहकारों ने सलाहकारी भी छोड़ दी...बहस भी जारी है।
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कार्टूनिस्ट शंकर |
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कार्टूनिस्ट चन्दर |
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कार्टूनिस्ट सुरेन्द्र |
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कार्टूनिस्ट सुधीरनाथ |
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कार्टूनिस्ट सतीश आचार्य |
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कार्टूनिस्ट हाडा |
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कार्टूनिस्ट काक |
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कार्टूनिस्ट सतीश आचार्य |
-कार्टूनों को बर्दाश्त करना लगातार मुश्किल होता जा रहा है, पूरी दुनिया में हो रही
क्रांतियों में आज कार्टूनिस्ट अहम भूमिका अदा कर रहे हैं। आज कार्टूनिस्ट
सिर्फ किसी मीडिया हाउस के कर्मचारी नहीं बल्कि क्रांति और परिवर्तन के
वाहक के रूप में सामने आ रहे हैं और इससे ज्यादा सम्मान क्या होगा कि अक्सर
हमारी संसद में कार्टूनों पर बहसें होने लगी हैं।
यकीन मानिए, मैं तो इसे
कार्टून की बढ़ती ताकत के रूप में देखता
हूँ। इस आधार पर देखा जाये तो शंकर के समय की अपेक्षा कार्टून्स आज ज्यादा
असरदार हैं और इसकी वज़ह है भारतीयों में लगातार घट रही सहनशीलता। आज लोग
अपने विचारों से अलग कुछ सुनना ही नहीं चाहते। पत्रकारिता उतना खुल कर बात
नहीं कर सकती, उसकी अपनी सीमाएं हैं। पर कार्टूनिंग में सीमाएं उतनी स्पष्ट
नही हैं और उन्हें तोड़ना भी अपेक्षाकृत कहीं आसान है। लोकतांत्रिक
तानाशाही और आम जन की आवाज़ के दमन का यह दौर सारी दुनिया के कार्टूनिस्टों
के लिए स्वर्ण काल है।
• कार्टूनिस्ट असीम त्रिवेदी /फ़ेसबुक में
बिलांद
कानून का हाथ एक बिलांद लम्बा कर दो!
-सुहास पल्सीकर (एनसीईआरटी सलाहकार जिन्होंने कार्टून मुद्दे पर अपने पद से इस्तीफा दे दिया) के कार्यालय में कथित तौर पर पुणे में हमला किया गया है
कितना शर्मनाक है यह!
कितना शर्मनाक है यह!
• कार्टूनिस्ट सतीश आचार्य
खेद
-रोज
कई नेताओं पर कार्टून बनाता हूँ, पता नहीं आगे चलकर इनमें से कौन
देवी/देवता/मसीहा घोषित हो जाए और पता नहीं पच्चीस- पचास साल बाद किसी
की भावनाओं को अचानक ठेस पहुँचने लग जाए। लिहाजा अग्रिम खेद व्यक्त किये
देता हूँ। पता नहीं तब तक जिन्दा रहें ना रहें!!
-एनसीईआरटी की उस किताब में और भी कई कार्टून हैं...सारे नेता उन्हें भी समझने के प्रयास कर रहे हैं.
• कार्टूनिस्ट कीर्तीश भट्ट
-एनसीईआरटी की उस किताब में और भी कई कार्टून हैं...सारे नेता उन्हें भी समझने के प्रयास कर रहे हैं.
आस्था
-हजारों किमी दूर डेनमार्क में पैगम्बर का कार्टून बनता है तो यहाँ भारत में भावनाएं आहत हो जाती हैं, आग लग जाती है। सरकार माफ़ी माँगती है, मरहम लगाती है…60 साल पहले बनाए हुए कार्टून से भावनाएं आहत हो जाती हैं…। सरकार माफ़ी माँगती है, तड़ातड़ दो इस्तीफ़े भी हो जाते हैं…संदेश साफ़ है - "आस्थाओं" और "पूजनीयों" के साथ खिलवाड़ किया, तो तुम्हारी खैर नहीं…
क्या कहा? राम मन्दिर और रामसेतु?
अरे, आगे बढ़ो बाबा…!!! दब्बुओं, डरपोकों, लतखोरों और असंगठित वोट बैंकों
की भी भला कोई "आस्था" होती है? बात करते हो…! चलो निकलो यहाँ से।
• सुरेश चिपलूणकर
संसद में कार्टून
-चिन्ता की बात यह है कि फ़िलहाल
जगह-जगह से कार्टून हटाये जा रहे हैं अगली बारी कार्टूनिस्टों की..अब तो
कुछ करना चाहिए। यहां से भी ‘कार्टून’ हट गये तो...?
• कार्टूनिस्ट चन्दर
संसद में कार्टून
-चिन्ता की बात यह है कि फ़िलहाल
जगह-जगह से कार्टून हटाये जा रहे हैं अगली बारी कार्टूनिस्टों की..अब तो
कुछ करना चाहिए। यहां से भी ‘कार्टून’ हट गये तो...? • कार्टूनिस्ट चन्दर
वही
-साला...६० साल पुराना एक कार्टून पूरी संसद को.......बना देता है!
• त्र्यम्बक शर्मा
-बढिया खबर है.. शंकर के कार्टून पर राजनीति का विरोध कार्टून जगत की और से होना ही चाहिए...लगो पीछे...
•
कार्टूनिस्ट सुधीर गोस्वामी
शपथ
-सारे
कार्टूनिस्टों से शपथ पत्र लिया जायेगा कि वोह केवल नेताओं और सरकार की
प्रशंसा करने वाले कार्टून ही बनायेगें| उलंघना करने वाले कार्टूनिस्टों को
जेल में बंद कर दिया जायेगा और स्वर्गवासी हो चुके कार्टूनिस्टों की मिटटी
खराब की जायेगी।
-कार्टून
से ऐसा तो नहीं लगता कि किसी विशेष समुदाय की भावना को ठेस पहुंचायी गयी है।
इसमें तो आंबेडकर साहिब की महिमा और अच्छा व्यक्तित्व दिखाया गया है। अगर
महान कार्टूनिस्ट शंकर जी का १९४९ में बना कार्टून ठीक था तो अब इस पर
विवाद बहुत गलत है। परन्तु गन्दी राजनीती को क्या कहें?
• सुभाष मेहता
भारत छोड़ो
-नेताओं का अगला नारा- कार्टूनिस्टो भारत छोड़ों....
• प्रकाश भावसार
शौक
-1949 में बने कार्टूनों पर अब विवाद...इसे कहते हैं 'बिज़ी विदाउट बिज़नेस' वाला शौक़!
• इष्टदेव सांकृत्यायन
कुछ और
ये है वो कार्टून जिसनें संसद को ठप्प कर रखा है..! आपकी क्या राय है? 2006 में छप गया था ये कार्टून किन्तु अभी एक महिनें पहले इसकी जानकारी एनसीईआरटी को दी गयी थी, एक महिनें में कुछ नहीं किया गया! मुझे ऐसा क्यूं लगता है की कहीं कुछ और पक रहा है? वैसे इस कार्टून में ये जो भी नेता जी कोड़ा मार रहे हैं वो किसको पड़ रहा है? क्योंकि तांगे में तो घोड़े को ही बेंत मारी जाती है..!!
• सचिन खरे
अप्रश्नेय कोई नहीं है- गांधी, नेहरू, अम्बेडकर, मार्क्स
जिस
किताब में छपे कार्टून पर विवाद हो रहा है, उसमें कुल बत्तीस कार्टून हैं।
इसके अतिरिक्त दो एनिमेटेड बाल चरित्र भी हैं - उन्नी और मुन्नी। मैं सबसे
पहले बड़े ही मशीनी ढंग से इनमें से कुछ कार्टूनों का कच्चा चिट्ठा आपके
सामने प्रस्तुत करूँगा, फिर अंत में थोड़ी सी अपनी बात।
# नेहरु पर
सबसे ज्यादा (पन्द्रह) कार्टून हैं। ये स्वाभाविक है क्योंकि किताब है :
भारत का संविधान : सिद्धांत और व्यवहार। # एक राज्यपालों की नियुक्ति पर
है। उसमें नेहरू जी किक मारकर एक नेता को राजभवन में पहुंचा रहे हैं। # एक
भाषा विवाद पर है, उसमें राजर्षि टंडन आदि चार नेता एक अहिन्दी भाषी पर
बैठे सवारी कर रहे हैं। # एक में संसद साहूकार की तरह बैठी है और नेहरू,
प्रसाद, मौलाना आज़ाद, जगजीवन राम, मोरारजी देसाई आदि भिखारी की तरह लाइन
लगाकर खड़े हैं। यह विभिन्न मंत्रालयों को धन आवंटित करने की एकमेव ताकत
संसद के पास होने पर व्यंग्य है। # एक में वयस्क मताधिकार का हाथी है जिसे
दुबले पतले नेहरू खींचने की असफल कोशिश कर रहे हैं। # एक में नोटों की
बारिश हो रही है या तूफ़ान सा आ रहा है जिसमें नेहरू, मौलाना आजाद, मोरारजी
आदि नेता, एक सरदार बलदेव सिंह, एक अन्य सरदार, एक शायद पन्त एक जगजीवन
राम और एक और प्रमुख नेता जो मैं भूल रहा हूँ कौन - तैर रहे हैं। टैगलाइन
है - इलेक्शन इन द एयर।
# एक में नेहरू हैरान परेशान म्यूजिक कंडक्टर
बने दो ओर गर्दन एक साथ घुमा रहे हैं। एक ओर जन-गण-मन बजा रहे आंबेडकर,
मौलाना, पन्त, शायद मेनन, और एक वही चरित्र जो पिछले कार्टून में भी मैं
पहचान नहीं पाया, हैं। ये लोग ट्रम्पेट, वायलिन आदि बजा रहे हैं जबकि दूसरी
ओर वंदे मातरम गा रहे दक्षिणपंथी समूह के लोग हैं। श्यामाप्रसाद मुखर्जी
बजाने वालों की मंडली से खिसककर गाने वालों की मंडली में जा रहे हैं। # एक
में चार राजनीतिज्ञ नेहरु, पटेल, प्रसाद और एक और नेता भीमकाय कॉंग्रेस का
प्रतिनिधित्त्व करते हुए एक लिलिपुटनुमा विपक्ष को घेरकर खड़े हैं। यह
चुनाव और प्रतिनिधित्त्व की दिक्कतें बताने वाले अध्याय में है। # ऊपरवाले
कार्टून के ठीक उलट है ये कार्टून जिसमें नेहरु को कुछ भीमकाय पहलवाननुमा
लोगों ने घेर रखा है, लग रहा है ये अखाड़ा है और नेहरु गिरे पड़े हैं। घेरे
खड़े लोगों के नाम हैं - विशाल आंध्रा, महा गुजरात, संयुक्त कर्नाटक,
बृहनमहाराष्ट्र। ये कार्टून नए राज्यों के निर्माण के लिए लगी होड़ के समय
का है।
### कवर पर बना कार्टून सबसे तीखा है। आश्चर्य है इससे किसी
की भावनाएं आहत क्यों नहीं हुईं। यह आर. के. लक्ष्मण का है। इसमें उनका
कॉमन मैन सो रहा है, दीवार पर तस्वीरें टंगी हैं - नेहरु, शास्त्री,
मोरारजी, इंदिरा, चरण सिंह, वी.पी.सिंह, चंद्रशेखर, राव, अटल बिहारी और
देवैगोडा... और टीवी से आवाजें आ रही हैं - "unity, democracy, secularism,
equality, industrial growth, economic progress, trade, foreign
collaboration, export increase, ...we have passenger cars, computers,
mobile phones, pagers etc... thus there has been spectacular progress...
and now we are determined to remove poverty, provide drinking water,
shelter, food, schools, hospitals...
कार्टून छोड़िये, इस किताब में
उन्नी और मुन्नी जो सवाल पूछते हैं, वे किसी को भी परेशान करने के लिए
काफी हैं। वे एकबारगी तो संविधान की संप्रभुता को चुनौती देते तक प्रतीत
होते हैं। मसलन, उन्नी का ये सवाल - क्या यह संविधान उधार का था? हम ऐसा
संविधान क्यों नहीं बना सके जिसमें कहीं से कुछ भी उधार न लिया गया हो? या
ये सवाल (किसकी भावनाएं आहत करेगा आप सोचें) - मुझे समझ में नहीं आता कि
खिलाड़ी, कलाकार और वैज्ञानिकों को मनोनीत करने का प्रावधान क्यों है? वे
किसका प्रतिनिधित्त्व करते हैं? और क्या वे वास्तव में राज्यसभा की
कार्यवाही में कुछ खास योगदान दे पाते हैं? या मुन्नी का ये सवाल देखें -
सर्वोच्च न्यायालय को अपने ही फैसले बदलने की इजाज़त क्यों दी गयी है? क्या
ऐसा यह मानकर किया गया है कि अदालत से भी चूक हो सकती है? एक जगह सरकार की
शक्ति और उस पर अंकुश के प्रावधान पढ़कर उन्नी पूछता है - ओह! तो पहले आप
एक राक्षस बनाएँ फिर खुद को उससे बचाने की चिंता करने लगे। मैं तो यही
कहूँगा कि फिर इस राक्षस जैसी सरकार को बनाया ही क्यों जाए?
किताब
में अनेक असुविधाजनक तथ्य शामिल किये गए हैं। उदाहरणार्थ, किताब में
बहुदलीय प्रणाली को समझाते हुए ये आंकड़े सहित उदाहरण दिया गया है कि
चौरासी में कॉंग्रेस को अड़तालीस फीसदी मत मिलने के बावजूद अस्सी फीसदी
सीटें मिलीं। इनमें से हर सवाल से टकराते हुए किताब उनका तार्किक कारण,
ज़रूरत और संगती समझाती है। यानी किताब अपने खिलाफ उठ सकने वाली हर असहमति
या आशंका को जगह देना लोकतंत्र का तकाजा मानती है। वह उनसे कतराती नहीं,
उन्हें दरी के नीचे छिपाती नहीं, बल्कि बच्चों को उन पर विचार करने और उस
आशंका का यथासंभव तार्किक समाधान करने की कोशिश करती है। उदाहरण के लिए जिस
कार्टून पर विवाद है, वह संविधान निर्माण में लगने वाली देरी के सन्दर्भ
में है। किताब में इस पर पूरे तीन पेज खर्च किये गए हैं, विस्तार से समझाया
गया है कि संविधान सभा में सभी वर्गों और विचारधाराओं के लोगों को शामिल
किया गया। उनके बीच हर मुद्दे पर गहराई से चर्चा हुई। संविधान सभा की
विवेकपूर्ण बहसें हमारे लिए गर्व का विषय हैं, किताब ये बताती है।
मानवाधिकार वाले अध्याय में सोमनाथ लाहिड़ी को (चित्र सहित) उद्धृत किया
गया है कि अनेक मौलिक अधिकार एक सिपाही के दृष्टिकोण से बनाए गए हैं यानी
अधिकार कम हैं, उन पर प्रतिबन्ध ज्यादा हैं। सरदार हुकुम सिंह को (चित्र
सहित) उद्धृत करते हुए अल्पसंख्यकों के अधिकारों का सवाल उठाया गया है।
किताब इन सब बहसों को छूती है।
सबसे महत्त्वपूर्ण बात ये है कि जहाँ
देर के कारण गिनाए गए हैं, वहाँ ये रेखांकित किया गया है कि संविधान में
केवल एक ही प्रावधान था जो बिना वाद-विवाद सर्वसम्मति से पास हो गया -
सार्वभौम मताधिकार। किताब में इस पर टिप्पणी है – “इस सभा की लोकतांत्रिक
मूल्यों के प्रति निष्ठा का इससे बढ़िया व्यावहारिक रूप कुछ और नहीं हो
सकता था।”
बच्चों को उपदेशों की खुराक नहीं चाहिए, उन्हें सहभागिता
की चुनौती चाहिए। उपदेशों का खोखलापन हर बच्चा जानता है। यह और दो हज़ार
पांच में बनी अन्य किताबें बच्चों को नियम/ सूत्र/ आंकड़े/ तथ्य रटाना नहीं
चाहतीं। प्रसंगवश पाठ्यचर्या दो हज़ार पांच की पृष्ठभूमि में यशपाल कमेटी
की रिपोर्ट थी। बच्चे आत्महत्या कर रहे थे, उनका बस्ता भारी होता जा रहा
था, पढ़ाई उनके लिए सूचनाओं का भण्डार हो गयी थी, जिसे उन्हें रटना और उगल
देना था। ऐसे में इस तरह के कार्टून और सवाल एक नयी बयार लेकर आये। ज्ञान
एक अनवरत प्रक्रिया है, यदि ज्ञान कोई पोटली में भरी चीज़ है जिसे बच्चे को
सिर्फ ‘पाना’ है तो पिछली पीढ़ी का ज्ञान अगली पीढ़ी की सीमा बन जाएगा।
किताब बच्चे को अंतिम सत्य की तरह नहीं मिलनी चाहिये, उसे उससे पार जाने,
नए क्षितिज छूने की आकांक्षा मिलनी चाहिए।
किताब अप्रश्नेय नहीं है
और न ही कोई महापुरुष। कोई भी - गांधी, नेहरु, अम्बेडकर, मार्क्स... अगर
कोई भी असुविधाजनक तथ्य छुपाएंगे तो कल जब वह जानेगा तो इस धोखे को महसूस
कर ज़रूर प्रतिपक्षी विचार के साथ जाएगा। उसे सवालों का सामना करना और अपनी
समझ/ विवेक से फैसला लेने दीजिए। यह किताब बच्चों को किताब के पार सोचने
के लिए लगातार सवाल देती चलती है, उदाहरणार्थ यह सवाल - (क्या आप इससे पहले
इस सवाल की कल्पना भी कर सकते थे?) क्या आप मानते हैं कि निम्न
परिस्थितियाँ स्वतंत्रता के अधिकार पर प्रतिबंधों की मांग करती हैं? अपने
उत्तर के समर्थन में तर्क दें – क* शहर में साम्प्रदायिक दंगों के बाद लोग
शान्ति मार्च के लिए एकत्र हुए हैं। ख* दलितों को मंदिर प्रवेश की मनाही
है। मंदिर में जबरदस्ती प्रवेश के लिए एक जुलूस का आयोजन किया जा रहा है।
ग* सैंकड़ों आदिवासियों ने अपने परम्परागत अस्त्रों तीर-कमान और कुल्हाड़ी
के साथ सड़क जाम कर रखा है। वे मांग कर रहे हैं कि एक उद्योग के लिए
अधिग्रहीत खाली जमीं उन्हें लौटाई जाए। घ* किसी जाती की पंचायत की बैठक यह
तय करने के लिए बुलाई गयी है कि जाती से बाहर विवाह करने के लिए एक
नवदंपत्ति को क्या दंड दिया जाए।
अब आखिर में, जिन्हें लगता है कि
बच्चे का बचपन बचाए रखना सबसे ज़रूरी है और वो कहीं दूषित न हो जाए, उन्हें
छान्दोग्य उपनिषद का रैक्व आख्यान पढ़ना चाहिए। मेरी विनम्र राय में बच्चे
को यथार्थ से दूर रखकर हम सामाजिक भेदों से बेपरवाह, मिथकीय राष्ट्रवाद से
बज्बजाई, संवादहीनता के टापू पर बैठी आत्मकेंद्रित पीढ़ी ही तैयार करेंगे।
तब, कहीं देर न हो जाए।
- हिमांशु पंड्या
(जानकारी हेतु, मैं हिन्दी की पाठ्यक्रम निर्माण समिति का सदस्य रहा हूँ।)
Himanshu Pandya द्वारा 12 मई 2012 को 13:17 बजे · पर
अप्रश्नेय कोई नहीं है- गांधी, नेहरू, अम्बेडकर, मार्क्स
# नेहरु पर सबसे ज्यादा (पन्द्रह) कार्टून हैं। ये स्वाभाविक है क्योंकि किताब है : भारत का संविधान : सिद्धांत और व्यवहार। # एक राज्यपालों की नियुक्ति पर है। उसमें नेहरू जी किक मारकर एक नेता को राजभवन में पहुंचा रहे हैं। # एक भाषा विवाद पर है, उसमें राजर्षि टंडन आदि चार नेता एक अहिन्दी भाषी पर बैठे सवारी कर रहे हैं। # एक में संसद साहूकार की तरह बैठी है और नेहरू, प्रसाद, मौलाना आज़ाद, जगजीवन राम, मोरारजी देसाई आदि भिखारी की तरह लाइन लगाकर खड़े हैं। यह विभिन्न मंत्रालयों को धन आवंटित करने की एकमेव ताकत संसद के पास होने पर व्यंग्य है। # एक में वयस्क मताधिकार का हाथी है जिसे दुबले पतले नेहरू खींचने की असफल कोशिश कर रहे हैं। # एक में नोटों की बारिश हो रही है या तूफ़ान सा आ रहा है जिसमें नेहरू, मौलाना आजाद, मोरारजी आदि नेता, एक सरदार बलदेव सिंह, एक अन्य सरदार, एक शायद पन्त एक जगजीवन राम और एक और प्रमुख नेता जो मैं भूल रहा हूँ कौन - तैर रहे हैं। टैगलाइन है - इलेक्शन इन द एयर।
# एक में नेहरू हैरान परेशान म्यूजिक कंडक्टर बने दो ओर गर्दन एक साथ घुमा रहे हैं। एक ओर जन-गण-मन बजा रहे आंबेडकर, मौलाना, पन्त, शायद मेनन, और एक वही चरित्र जो पिछले कार्टून में भी मैं पहचान नहीं पाया, हैं। ये लोग ट्रम्पेट, वायलिन आदि बजा रहे हैं जबकि दूसरी ओर वंदे मातरम गा रहे दक्षिणपंथी समूह के लोग हैं। श्यामाप्रसाद मुखर्जी बजाने वालों की मंडली से खिसककर गाने वालों की मंडली में जा रहे हैं। # एक में चार राजनीतिज्ञ नेहरु, पटेल, प्रसाद और एक और नेता भीमकाय कॉंग्रेस का प्रतिनिधित्त्व करते हुए एक लिलिपुटनुमा विपक्ष को घेरकर खड़े हैं। यह चुनाव और प्रतिनिधित्त्व की दिक्कतें बताने वाले अध्याय में है। # ऊपरवाले कार्टून के ठीक उलट है ये कार्टून जिसमें नेहरु को कुछ भीमकाय पहलवाननुमा लोगों ने घेर रखा है, लग रहा है ये अखाड़ा है और नेहरु गिरे पड़े हैं। घेरे खड़े लोगों के नाम हैं - विशाल आंध्रा, महा गुजरात, संयुक्त कर्नाटक, बृहनमहाराष्ट्र। ये कार्टून नए राज्यों के निर्माण के लिए लगी होड़ के समय का है।
### कवर पर बना कार्टून सबसे तीखा है। आश्चर्य है इससे किसी की भावनाएं आहत क्यों नहीं हुईं। यह आर. के. लक्ष्मण का है। इसमें उनका कॉमन मैन सो रहा है, दीवार पर तस्वीरें टंगी हैं - नेहरु, शास्त्री, मोरारजी, इंदिरा, चरण सिंह, वी.पी.सिंह, चंद्रशेखर, राव, अटल बिहारी और देवैगोडा... और टीवी से आवाजें आ रही हैं - "unity, democracy, secularism, equality, industrial growth, economic progress, trade, foreign collaboration, export increase, ...we have passenger cars, computers, mobile phones, pagers etc... thus there has been spectacular progress... and now we are determined to remove poverty, provide drinking water, shelter, food, schools, hospitals...
कार्टून छोड़िये, इस किताब में उन्नी और मुन्नी जो सवाल पूछते हैं, वे किसी को भी परेशान करने के लिए काफी हैं। वे एकबारगी तो संविधान की संप्रभुता को चुनौती देते तक प्रतीत होते हैं। मसलन, उन्नी का ये सवाल - क्या यह संविधान उधार का था? हम ऐसा संविधान क्यों नहीं बना सके जिसमें कहीं से कुछ भी उधार न लिया गया हो? या ये सवाल (किसकी भावनाएं आहत करेगा आप सोचें) - मुझे समझ में नहीं आता कि खिलाड़ी, कलाकार और वैज्ञानिकों को मनोनीत करने का प्रावधान क्यों है? वे किसका प्रतिनिधित्त्व करते हैं? और क्या वे वास्तव में राज्यसभा की कार्यवाही में कुछ खास योगदान दे पाते हैं? या मुन्नी का ये सवाल देखें - सर्वोच्च न्यायालय को अपने ही फैसले बदलने की इजाज़त क्यों दी गयी है? क्या ऐसा यह मानकर किया गया है कि अदालत से भी चूक हो सकती है? एक जगह सरकार की शक्ति और उस पर अंकुश के प्रावधान पढ़कर उन्नी पूछता है - ओह! तो पहले आप एक राक्षस बनाएँ फिर खुद को उससे बचाने की चिंता करने लगे। मैं तो यही कहूँगा कि फिर इस राक्षस जैसी सरकार को बनाया ही क्यों जाए?
किताब में अनेक असुविधाजनक तथ्य शामिल किये गए हैं। उदाहरणार्थ, किताब में बहुदलीय प्रणाली को समझाते हुए ये आंकड़े सहित उदाहरण दिया गया है कि चौरासी में कॉंग्रेस को अड़तालीस फीसदी मत मिलने के बावजूद अस्सी फीसदी सीटें मिलीं। इनमें से हर सवाल से टकराते हुए किताब उनका तार्किक कारण, ज़रूरत और संगती समझाती है। यानी किताब अपने खिलाफ उठ सकने वाली हर असहमति या आशंका को जगह देना लोकतंत्र का तकाजा मानती है। वह उनसे कतराती नहीं, उन्हें दरी के नीचे छिपाती नहीं, बल्कि बच्चों को उन पर विचार करने और उस आशंका का यथासंभव तार्किक समाधान करने की कोशिश करती है। उदाहरण के लिए जिस कार्टून पर विवाद है, वह संविधान निर्माण में लगने वाली देरी के सन्दर्भ में है। किताब में इस पर पूरे तीन पेज खर्च किये गए हैं, विस्तार से समझाया गया है कि संविधान सभा में सभी वर्गों और विचारधाराओं के लोगों को शामिल किया गया। उनके बीच हर मुद्दे पर गहराई से चर्चा हुई। संविधान सभा की विवेकपूर्ण बहसें हमारे लिए गर्व का विषय हैं, किताब ये बताती है। मानवाधिकार वाले अध्याय में सोमनाथ लाहिड़ी को (चित्र सहित) उद्धृत किया गया है कि अनेक मौलिक अधिकार एक सिपाही के दृष्टिकोण से बनाए गए हैं यानी अधिकार कम हैं, उन पर प्रतिबन्ध ज्यादा हैं। सरदार हुकुम सिंह को (चित्र सहित) उद्धृत करते हुए अल्पसंख्यकों के अधिकारों का सवाल उठाया गया है। किताब इन सब बहसों को छूती है।
सबसे महत्त्वपूर्ण बात ये है कि जहाँ देर के कारण गिनाए गए हैं, वहाँ ये रेखांकित किया गया है कि संविधान में केवल एक ही प्रावधान था जो बिना वाद-विवाद सर्वसम्मति से पास हो गया - सार्वभौम मताधिकार। किताब में इस पर टिप्पणी है – “इस सभा की लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति निष्ठा का इससे बढ़िया व्यावहारिक रूप कुछ और नहीं हो सकता था।”
बच्चों को उपदेशों की खुराक नहीं चाहिए, उन्हें सहभागिता की चुनौती चाहिए। उपदेशों का खोखलापन हर बच्चा जानता है। यह और दो हज़ार पांच में बनी अन्य किताबें बच्चों को नियम/ सूत्र/ आंकड़े/ तथ्य रटाना नहीं चाहतीं। प्रसंगवश पाठ्यचर्या दो हज़ार पांच की पृष्ठभूमि में यशपाल कमेटी की रिपोर्ट थी। बच्चे आत्महत्या कर रहे थे, उनका बस्ता भारी होता जा रहा था, पढ़ाई उनके लिए सूचनाओं का भण्डार हो गयी थी, जिसे उन्हें रटना और उगल देना था। ऐसे में इस तरह के कार्टून और सवाल एक नयी बयार लेकर आये। ज्ञान एक अनवरत प्रक्रिया है, यदि ज्ञान कोई पोटली में भरी चीज़ है जिसे बच्चे को सिर्फ ‘पाना’ है तो पिछली पीढ़ी का ज्ञान अगली पीढ़ी की सीमा बन जाएगा। किताब बच्चे को अंतिम सत्य की तरह नहीं मिलनी चाहिये, उसे उससे पार जाने, नए क्षितिज छूने की आकांक्षा मिलनी चाहिए।
किताब अप्रश्नेय नहीं है और न ही कोई महापुरुष। कोई भी - गांधी, नेहरु, अम्बेडकर, मार्क्स... अगर कोई भी असुविधाजनक तथ्य छुपाएंगे तो कल जब वह जानेगा तो इस धोखे को महसूस कर ज़रूर प्रतिपक्षी विचार के साथ जाएगा। उसे सवालों का सामना करना और अपनी समझ/ विवेक से फैसला लेने दीजिए। यह किताब बच्चों को किताब के पार सोचने के लिए लगातार सवाल देती चलती है, उदाहरणार्थ यह सवाल - (क्या आप इससे पहले इस सवाल की कल्पना भी कर सकते थे?) क्या आप मानते हैं कि निम्न परिस्थितियाँ स्वतंत्रता के अधिकार पर प्रतिबंधों की मांग करती हैं? अपने उत्तर के समर्थन में तर्क दें – क* शहर में साम्प्रदायिक दंगों के बाद लोग शान्ति मार्च के लिए एकत्र हुए हैं। ख* दलितों को मंदिर प्रवेश की मनाही है। मंदिर में जबरदस्ती प्रवेश के लिए एक जुलूस का आयोजन किया जा रहा है। ग* सैंकड़ों आदिवासियों ने अपने परम्परागत अस्त्रों तीर-कमान और कुल्हाड़ी के साथ सड़क जाम कर रखा है। वे मांग कर रहे हैं कि एक उद्योग के लिए अधिग्रहीत खाली जमीं उन्हें लौटाई जाए। घ* किसी जाती की पंचायत की बैठक यह तय करने के लिए बुलाई गयी है कि जाती से बाहर विवाह करने के लिए एक नवदंपत्ति को क्या दंड दिया जाए।
अब आखिर में, जिन्हें लगता है कि बच्चे का बचपन बचाए रखना सबसे ज़रूरी है और वो कहीं दूषित न हो जाए, उन्हें छान्दोग्य उपनिषद का रैक्व आख्यान पढ़ना चाहिए। मेरी विनम्र राय में बच्चे को यथार्थ से दूर रखकर हम सामाजिक भेदों से बेपरवाह, मिथकीय राष्ट्रवाद से बज्बजाई, संवादहीनता के टापू पर बैठी आत्मकेंद्रित पीढ़ी ही तैयार करेंगे। तब, कहीं देर न हो जाए।
- हिमांशु पंड्या
(जानकारी हेतु, मैं हिन्दी की पाठ्यक्रम निर्माण समिति का सदस्य रहा हूँ।)
Himanshu Pandya द्वारा 12 मई 2012 को 13:17 बजे · पर
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