मन्दबुद्धिपना
साठ साल से भी अधिक समय पहले कार्टूनिस्ट शंकर द्वारा बनाया गया कार्टून जिस पर न नेहरू को कभी आपत्ति हुई और न ही अम्बेडकर को। यह कार्टून सन् २००६ से पुस्तक में है पर अब यह समझ में आया कि इस पर आपत्ति उठाकर दुकानदारी कुछ जमायी जा सकती है। सो भाई लोग सक्रिय हो गये। लगे हाथ २ सलाहकारों ने सलाहकारी भी छोड़ दी...बहस भी जारी है।
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कार्टूनिस्ट शंकर |
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कार्टूनिस्ट चन्दर |
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कार्टूनिस्ट सुरेन्द्र |
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कार्टूनिस्ट सुधीरनाथ |
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कार्टूनिस्ट सतीश आचार्य |
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कार्टूनिस्ट हाडा |
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कार्टूनिस्ट काक |
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कार्टूनिस्ट सतीश आचार्य |
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कार्टूनिस्ट काक |
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कार्टूनिस्ट अभिषेक |
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कार्टूनिस्ट लहरी |
स्वर्णकाल
-कार्टूनों को बर्दाश्त करना लगातार मुश्किल होता जा रहा है, पूरी दुनिया में हो रही
क्रांतियों में आज कार्टूनिस्ट अहम भूमिका अदा कर रहे हैं। आज कार्टूनिस्ट
सिर्फ किसी मीडिया हाउस के कर्मचारी नहीं बल्कि क्रांति और परिवर्तन के
वाहक के रूप में सामने आ रहे हैं और इससे ज्यादा सम्मान क्या होगा कि अक्सर
हमारी संसद में कार्टूनों पर बहसें होने लगी हैं।
यकीन मानिए, मैं तो इसे
कार्टून की बढ़ती ताकत के रूप में देखता
हूँ। इस आधार पर देखा जाये तो शंकर के समय की अपेक्षा कार्टून्स आज ज्यादा
असरदार हैं और इसकी वज़ह है भारतीयों में लगातार घट रही सहनशीलता। आज लोग
अपने विचारों से अलग कुछ सुनना ही नहीं चाहते। पत्रकारिता उतना खुल कर बात
नहीं कर सकती, उसकी अपनी सीमाएं हैं। पर कार्टूनिंग में सीमाएं उतनी स्पष्ट
नही हैं और उन्हें तोड़ना भी अपेक्षाकृत कहीं आसान है। लोकतांत्रिक
तानाशाही और आम जन की आवाज़ के दमन का यह दौर सारी दुनिया के कार्टूनिस्टों
के लिए स्वर्ण काल है।
• कार्टूनिस्ट असीम त्रिवेदी /फ़ेसबुक में
बिलांद
कानून का हाथ एक बिलांद लम्बा कर दो!
-सुहास पल्सीकर (एनसीईआरटी सलाहकार जिन्होंने कार्टून मुद्दे पर अपने पद से इस्तीफा दे दिया) के कार्यालय में कथित तौर पर पुणे में हमला किया गया है
कितना शर्मनाक है यह!
• कार्टूनिस्ट सतीश आचार्य
खेद
-रोज
कई नेताओं पर कार्टून बनाता हूँ, पता नहीं आगे चलकर इनमें से कौन
देवी/देवता/मसीहा घोषित हो जाए और पता नहीं पच्चीस- पचास साल बाद किसी
की भावनाओं को अचानक ठेस पहुँचने लग जाए। लिहाजा अग्रिम खेद व्यक्त किये
देता हूँ। पता नहीं तब तक जिन्दा रहें ना रहें!!
-एनसीईआरटी की उस किताब में और भी कई कार्टून हैं...सारे नेता उन्हें भी समझने के प्रयास कर रहे हैं.
• कार्टूनिस्ट कीर्तीश भट्ट
आस्था
-हजारों
किमी दूर डेनमार्क में पैगम्बर का कार्टून बनता है तो यहाँ भारत में
भावनाएं आहत हो जाती हैं, आग लग जाती है। सरकार माफ़ी माँगती है, मरहम लगाती
है…60 साल पहले बनाए हुए कार्टून से भावनाएं आहत हो जाती हैं…। सरकार माफ़ी माँगती है, तड़ातड़ दो इस्तीफ़े भी हो जाते हैं…संदेश साफ़ है - "आस्थाओं" और "पूजनीयों" के साथ खिलवाड़ किया, तो तुम्हारी खैर नहीं…
क्या कहा? राम मन्दिर और रामसेतु?
अरे, आगे बढ़ो बाबा…!!! दब्बुओं, डरपोकों, लतखोरों और असंगठित वोट बैंकों
की भी भला कोई "आस्था" होती है? बात करते हो…! चलो निकलो यहाँ से।
• सुरेश चिपलूणकर
संसद में कार्टून
-चिन्ता की बात यह है कि फ़िलहाल
जगह-जगह से कार्टून हटाये जा रहे हैं अगली बारी कार्टूनिस्टों की..अब तो
कुछ करना चाहिए। यहां से भी ‘कार्टून’ हट गये तो...?
• कार्टूनिस्ट चन्दर
वही
-साला...६० साल पुराना एक कार्टून पूरी संसद को.......बना देता है!
• त्र्यम्बक शर्मा
-बढिया खबर है.. शंकर के कार्टून पर राजनीति का विरोध कार्टून जगत की और से होना ही चाहिए...लगो पीछे...
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कार्टूनिस्ट सुधीर गोस्वामी
शपथ
-सारे
कार्टूनिस्टों से शपथ पत्र लिया जायेगा कि वोह केवल नेताओं और सरकार की
प्रशंसा करने वाले कार्टून ही बनायेगें| उलंघना करने वाले कार्टूनिस्टों को
जेल में बंद कर दिया जायेगा और स्वर्गवासी हो चुके कार्टूनिस्टों की मिटटी
खराब की जायेगी।
-कार्टून
से ऐसा तो नहीं लगता कि किसी विशेष समुदाय की भावना को ठेस पहुंचायी गयी है।
इसमें तो आंबेडकर साहिब की महिमा और अच्छा व्यक्तित्व दिखाया गया है। अगर
महान कार्टूनिस्ट शंकर जी का १९४९ में बना कार्टून ठीक था तो अब इस पर
विवाद बहुत गलत है। परन्तु गन्दी राजनीती को क्या कहें?
• सुभाष मेहता
भारत छोड़ो